Bhasha,Bhasha Vigyan Aur Rajbhasha Hindi
Item Weight | 500GM |
ISBN | 978-9350002230 |
Author | Dr. Mahendra Nath Dubey |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 292 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2017 |
Edition | 2nd |

Bhasha,Bhasha Vigyan Aur Rajbhasha Hindi
मानव मुखों से उच्चरित, मानव-श्रवणों से तदनुरूप सुनी हुई, और तद्धत् समझी जानेवाली एक विशेष सामाजिक-व्यवस्था की मान्यताओं के अनुरूप, व्यक्ति जो कहना चाहता है, प्रायः उस रूप में;-कभी-कभी जो उसी से कुछ छिपाना चाहता है; उस रूप में भी तथा यदा-कदा उसकी इच्छा के विरुद्ध भी; उच्चरित ध्वन्यात्मक-व्यवस्था से दूसरे मनुष्य-मनुष्यों, समुदाय-समुदायों-तक जो भाव-सम्प्रेषण और सम्प्रेषित भावों के ग्रहण करने की जो प्रक्रिया है, उसे भाषा कहते हैं। व्यक्ति से समूह की ओर बढ़ते भाषा के विविध रूप, मिश्रित भाषा जैसे कोई चीज नहीं । मानव-मेधा की सर्वश्रेष्ठ सर्जना-भाषा, लिपि के आधार पर भाषाओं में छोटी-बड़ी, अगड़ी-पिछड़ी की चर्चा बेमानी है।
कुछ लोगों के विचार से तो भारत की कोई जाति यहाँ की मूल निवासी नहीं है। भारत की सभी जातियों के बाहर से आने की बद्धमूल-धारणा से विपरीत तथ्य डॉ. दुबे के विचार से संभव है। पूरबी और पूर्वी हिन्दी की स्वतन्त्र सत्ता है, दोनों एक ही नहीं। डॉ. म.ना. दुबे द्वारा प्रस्तुत भाषाओं का वर्गीकरण । 'हिन्द, हिन्दु, हिन्दू तथा हिन्दी नामकरण की प्रामाणिक व्युत्पत्ति- 'हिम-सेतु' हिन्तु, शिन्तु, हिन्दु से हुई है, जो फारसी भाषियों के भारत आने से पहले से ही प्रचलित थी। आर्यत्व की श्रेष्ठता स्थापित करने की कोशिशें निहित अभिप्राय से की गईं। सरस्वती नदी कोई कल्पना भर नहीं है। हिन्दी राजभाषा बनी हिन्दीतर-राष्ट्रसेवियों के बल पर । 'भाषा' के पहले 'राज' विशेषण लगे 'राजभाषा' पद की आपत्तिजनक ध्वनि' ।
जैसे प्रखर, किन्तु तथ्याधारित विचारों से सम्पन्न यह कृति 'भाषा, भाषा-विज्ञान और राजभाषा हिन्दी' निश्चय ही भाषावैज्ञानिक क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध होगी।
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