Bhartiye manas ka vi-aupniveshikaran
Author | Ambikadutt sharma |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 112 |
ISBN | 978-93-89830-44-6 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.21 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Bhartiye manas ka vi-aupniveshikaran
About Book
औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया और उत्तरऔपनिवेशिक प्रभाव में भारत का कम से कम तीन बार आत्मविभाजन हुआ है। भारत के वर्तमान को उसके गौरवशाली अतीत से काट दिया जाना पहला आत्मविभाजन था। इसका परिणाम यह हुआ कि हम अपनी ही संस्कृति और सभ्यता के प्रति हीन भावना से ग्रस्त हुए और इस तरह भारत के वर्तमान को आधुनिक यूरोप से प्रतिकृत होने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से विवश कर दिया गया। दूसरा आत्मविभाजन स्वातन्त्र्योत्तर काल में राजनीति और संस्कृति के बीच उतरोत्तर बढ़ते हुए पार्थक्य के कारण हुआ है। इसके चलते वह भारत जो एकात्मक गुण-सूत्रों वाला सांस्कृतिक राष्ट्र था, औपनिवेशिक प्राधिकरण से मुक्त होकर भी संस्कृतिविहीन एक राजनीतिक राष्ट्र-राज्य में रूपान्तरित होकर रह गया। भारत का तीसरा आत्मविभाजन भाषाई आधार पर हुआ है। इस देश में अंग्रेज़ी ने राष्ट्रीता की भाषा की पदवी को अख्तियार कर लिया और भारतीय भाषाएँ बहुविध उप-राष्ट्रीता की भाषाएँ बन कर रह गयीं। इस तरह राष्ट्रीयता और उप-राष्ट्रीयताओं में विभाजित भारत से राष्ट्रीयता विलुप्त कर दी गयी। इस पुस्तक में भारतीय मानस के औपनिवेशीकरण और वि-औपनिवेशीकरण को उपर्युक्त तीनों आत्मविभाजनों के व्यापक सन्दर्भ में समझने का मूल्यवान् वैचारिक उपक्रम साधा गया है।
About Author
प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा
प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा (जन्म : 1960) काशी की पाण्डित्य परम्परा और आचार्य कुल में दीक्षित दर्शनशास्त्री हैं। आपने दर्शनशास्त्र में एम.ए. (1985) एवं पी-एच.डी. (1988) की उपाधि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से तथा बौद्धदर्शनाचार्य (1995) की उपाधि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्राप्त की है।
आप भारतीय तत्त्वविद्या, प्रमाणशास्त्र, भाषादर्शन एवं साभ्यतिक अध्ययन के दीक्षित और शिक्षित परिपृच्छाधर्मी अध्येता हैं। दर्शन और संस्कृतिचिन्तन के क्षेत्र में आपके वैचारिक-विमर्शपरक लेखन समकालीन भारतीय दार्शनिकों में समादृत हैं। आपके द्वारा लिखित एवं सम्पादित बीस से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हैं। भारत के वैचारिक स्वराज और राष्ट्रभाषा के राजपथ पर दर्शन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान एवं प्रगत शोधपरक गवेषणाओं के लिए आपको अनेक सम्मानों से विभूषित किया गया है।
प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा सम्प्रति डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) में दर्शनशास्त्र के आचार्य, दर्शन प्रतिष्ठान, जयपुर से प्रकाशित पत्रिका 'उन्मीलन' के सम्पादक और डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की शोध-पत्रिका 'मध्य भारती' के प्रधान सम्पादक हैं।
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