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आज के दौर में अधिकांश भारतीय भाषाओं में आदिवासी पर लेखन हो रहा है। वर्तमान में आदिवासी साहित्य का दायरा बढ़ने की सम्भावना है। आधुनिक या समकालीन कविता की दृष्टि से आंचलिक भाषाओं में अवश्य कविता के माध्यम से आदिवासी जीवन के विभिन्न पक्षों पर विचार किया गया लेकिन हिन्दी... Read More
आज के दौर में अधिकांश भारतीय भाषाओं में आदिवासी पर लेखन हो रहा है। वर्तमान में आदिवासी साहित्य का दायरा बढ़ने की सम्भावना है। आधुनिक या समकालीन कविता की दृष्टि से आंचलिक भाषाओं में अवश्य कविता के माध्यम से आदिवासी जीवन के विभिन्न पक्षों पर विचार किया गया लेकिन हिन्दी भाषा में आदिवासी कविता अभी शुरुआती दौर में प्रवेश कर रही है। वैसे तो निर्मला पुतुल, रोज़ केरकट, रमणिका गुप्ता जैसों ने आदिवासी साहित्य की ओर आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया है। आज आदिवासी एवं गैर-आदिवासी लेखकों के द्वारा साहित्य में आदिवासी जीवन का गहन अनुभव, विषय के अनुरूप भाषा का मुहावरा, प्रकृति का ह्रास, मानवता के दुख-सुख, शोषण, विस्थापन आदि के सन्दर्भ आये हैं। विशेष रूप से आदिवासी अस्मिता के संकट को लेकर सभी साहित्यकार अपनी चिन्ता जाहिर करते हैं। यह सच है कि आदिवासी कविता, उपन्यास, कहानी या अन्य विधाओं में आदिवासी साहित्य अपनी अलग पहचान रखते हुए भी व्यापक लोक के यथार्थ के निकट रहा है। अतः आज आदिवासी लेखन अपने प्रारम्भिक दौर से आगे बढ़ रहा है। वह साहित्य की अन्य विधाओं में भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में आदिवासी-विमर्श से जुड़े कई पहलुओं को स्थान दिया गया है। आशा है कि प्रस्तुत पुस्तक में संकलित सामग्री हिन्दी जगत को पसन्द आयेगी।
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