Best Of Allama Iqbal - Combo Set
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Author | Rekhta Books |
Language | hindi |
Publisher | NA |
ISBN | NA |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.0 kg |
Best Of Allama Iqbal - Combo Set
Best of Iqbal
अल्लामा इकबाल द्वारा लिखित चार-पुस्तक सेट गहन विचारों की खजानी है जो सुंदरता से व्यक्त किए गए हैं। इकबाल की रचनाएं अपने विचारों की गहराई के लिए जानी जाती हैं, और यह संग्रह इससे अलग नहीं है। ये पुस्तकें धर्म, दर्शन और मानव स्थिति पर इकबाल के अनूठे दृष्टिकोण की झलक देती हैं। चूंकि उनकी तीक्ष्ण बुद्धि और विस्तृत ज्ञान है, इकबाल की रचनाएं आधुनिक जीवन के जटिलताओं को निपटने के लिए एक रोडमैप प्रदान करती हैं। चाहे आप विद्वान, छात्र या एक जिज्ञासु पाठक हों, यह संग्रह आपको प्रेरित और ज्ञानवर्धक अवश्य छोड़ देगा।
बेस्ट ऑफ़ इकबाल" नामक किताब एक संपूर्ण संग्रह है जो उपन्यासकार और दार्शनिक अल्लामा इकबाल के सबसे श्रेष्ठ रचनाओं का चयन करती है। यह पुस्तक इकबाल की साहित्यिक उत्कृष्टता का एक अनोखा और आकर्षक अंदाज पेश करती है, जिसमें उनकी सबसे प्रेरणादायक और चिंतनशील कविताएं, निबंध और भाषण शामिल हैं।
यह पुस्तक आध्यात्मिकता, प्रेम, देशभक्ति और सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा करती है। इकबाल की रचनाओं में उनकी सुंदर भाषा और छवियों का ज़बरदस्त उपयोग होता है, जो इस पुस्तक को पढ़ने और विचार करने के लिए खूबसूरत बनाता है। हर एक रचना का चयन इकबाल की विविधता और लेखन कौशल का प्रदर्शन करने के लिए सावधानीपूर्वक किया गया है।
चाहे आप उर्दू कविता के प्रशंसक हों, साहित्य के छात्र हों या सिर्फ प्रेरणा और ज्ञान की तलाश में हों, "बेस्ट ऑफ़ इकबाल" आपकी पुस्तकालय में एक अहम योगदान
मशहूर शायर 'मनुव्वर राना' का कहना है कि इक़बाल के जेहन में हमेशा वह हिन्दुस्तान था, जो किसी सरहद में नहीं बँटा था। सर मुहम्मद इक़बाल अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है। इक़बाल को ग़ज़लों की तरह नज़्में लिखने में बड़ी महारत हासिल थी। उनकी दर्दभरी नज़्में सुनकर लोग रोने लगते थे।तेरे इश्क़ की इन्तिहा चाहता हूंमिरी सादगी देख क्या चाहता हूं सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को कि मैं आप का सामना चाहता हूँ ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
इस अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक-माला की शुरुआत 1960 के दशक में हुई जब पहली बार नागरी लिपि में उर्दू की चुनी हुई शायरी के संकलन प्रकाशित कर राजपाल एंड सन्स ने हिंदी पाठकों को उर्दू शायरी का लुत्फ़ उठाने का अवसर प्रदान किया। इस पुस्तक-माला का संपादन उर्दू के सुप्रसिद्ध संपादक प्रकाश पंडित ने किया था। हर पुस्तक में शायर के संपूर्ण लेखन में से बेहतरीन शायरी का चयन है और पाठकों की सुविधा के लिए कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए हैं। प्रकाश पंडित ने हर शायर के जीवन और लेखन पर- जिनमें से कुछ समकालीन शायर उनके परिचित भी थे- रोचक और चुटीली भूमिकाएं लिखी हैं।आज तक इस पुस्तक-माला के अनगिनतसंस्करण छप चुके हैं। अब इसे एक नई साज-सज्जा में प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें उर्दू शायरी के जानकार सुरेश सलिल ने हर पुस्तक में अतिरिक्त सामग्री जोड़ी है।
इक़बाल की ज़िन्दगी और शायरी - हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा। न सिर्फ़ उर्दू शाहरी, बल्कि बीसवीं सदी के समग्र भरतीय चिन्तन और साहित्य में इक़बाल का स्थान बहुत ऊँचा है। उर्दू अदब के पायेदार आलोचक डॉ. मोहम्मद अहसन फ़ारूको के शब्दों में "गहराई और ऊँचाई में वह ग़ालिब के समकक्ष थे, चिन्तन और अध्यात्म में वह मौलाना सूफी के सदृश थे, परन्तु पश्चिम के आधुनिक चिन्तन में रच-बस जाने के कारण वह अपने उन दोनों उस्तादों से आगे दिखाई देते हैं।"
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