Barhavi Sadi Ki Kannad Kavayitri Akkamahadevi Aur Stree Vimarsha
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Item Weight | 0.284 |
ISBN | 978-8183612296 |
Author | Kashinath Ambalge |
Language | Hindi |
Publisher | Rajkamal |
Pages | 115 |
Dimensions | 22*15*2 |
Edition | 1st |

Barhavi Sadi Ki Kannad Kavayitri Akkamahadevi Aur Stree Vimarsha
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सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में, विशेषकर बारहवीं शताब्दी के दौर में, स्त्री-विमर्श की अनुगूँज केवल कन्नड़ साहित्य में उपलब्ध होती है। जाति-प्रथा का निषेध, वर्ण और वर्ग की विषमता का प्रतिरोध बारहवीं शताब्दी में केवल कन्नड़ भाषा-साहित्य में प्राप्त होता है। 5वीं शताब्दी में तमिल भाषा-साहित्य में निम्न वर्ग और दलित वर्ग के रचनाकारों को महत्त्व प्राप्त होता है, नायनार और आलवार सम्प्रदाय में मनुष्य की वेदना और अस्मिता को सामाजिक स्वीकृति मिलती है पर स्त्री-समुदाय को, वह भी लगभग पैंतीस महिला रचनाकारों को, सामाजिक, आध्यात्मिक और वर्ग चेतना के स्तर पर स्वीकृति केवल कन्नड़ भाषा-साहित्य में बारहवीं शताब्दी में उपलब्ध होती है। अपभ्रंश और प्राकृत भाषा-साहित्य में चेरी गाथाओं के बाद सम्पूर्ण भारतीय स्तर पर स्त्री-विमर्श का यह श्रेय कन्नड़ की अक्कमहादेवी और अन्यान्य शिवशरणियों को जाता है। मुक्तायक्का और अल्लमप्रभु ने भी कला, साहित्य, संस्कृति और दर्शन के स्तर पर अप्रतिम योगदान दिया है। राहुल सांकृत्यायन, भगवतीशरण उपाध्याय, रामविलास शर्मा और डी.डी. कोसम्बी की परम्परा में डॉ. काशीनाथ अंबलगे ने एक प्रतिबद्ध समीक्षक और तत्त्ववेत्ता के रूप में इस अभूतपूर्व कृति की रचना की है। विश्वास है, इसका आकलन सुधी पाठक और समर्थ आलोचक सम्यक् रूप से करेंगे।—रोहिताश्व
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