'बातें ग़ज़ल की' किताब पढ़ कर ग़ज़ल की संरचना का अच्छा खासा ज्ञान हुआ, इस तरह की किताब की काफी टाइम से तलाश थी, वैसे तो शेरो शायरी पढ़ते/सुनते ही रहते हैं। काफिया, रदीफ़ वगैरह को तफ़सील से समझाया हुआ है।
रेख्ता द्वारा प्रकाशित किताबों की एक और खूबी बहुत अच्छी लगती है-इसकी प्रिंटिंग, हर्फ बहुत ही अच्छी तरह से पढें जाते हैं।
पढ़ते पढ़ते कुछ प्रिटिंग गलतियाँ सामने आयीं (प्रथम संस्करण: 2022) सोचा बता दूँ ताकि अगले संस्करण में सही कर दी जायें। गुस्ताखी मुआफ।
सफ्हा 68 - 5 वीं लाइन में प्रतीकों के नए पहलुओं- 'को'- छूट गया है।
सफ्हा 147 - नासेह का मतलब विरह की रात दिया गया गलत मालूम पड़ता है।
सफ्हा 163 - आखिरी पैरा में 'इस इस ' दो बार आ गया।
सफ्हा 196 - तीसरे शेर में रिफाकत में 1 पूरा लिखा गया जबकि ऊपर asterick होना चाहिये था।
सफ्हा 204- दूसरे शेर में फरार पर asterick 3 दिया गया है पर उसके मायने रह गये हैं।
शुक्रिया रेख्ता 🙏
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