Baapu(7 khando me)
Author | Madhukar upadhyay |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
ISBN | 978-93-89830-52-1 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.947 kg |
Edition | 1st |
Baapu(7 khando me)
About Book
'बापू' मोहनदास करमचंद गाँधी के 'महात्मा गाँधी' बनने की कहानी है। इस प्रक्रिया में यह गाँधी से इतर किसी आम व्यक्ति की भी कहानी हो सकती है।
2 अक्टूबर, 1869 को जन्मे मोहनदास करमचंद गाँधी का लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा सामान्य बालक की तरह होता है, फिर भी गाँधी औरों से अलग खड़े दिखते हैं। इसका कारण है निर्णय लेने और उसपर टिके रहने की उनकी क्षमता। गलती करना, उससे सीखना और आगे बढ़ना ही गाँधी की निर्मिति की प्रक्रिया है। सामान्य व्यवहार का यही सत्व उन्हें भविष्य में प्रभावी निर्णय लेने में सहायता प्रदान करता है।
गाँधी से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं एवं संबद्ध परिस्थितियों का उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है, जो पुस्तक को कथात्मक प्रवाह प्रदान करते हैं। यह इतिहास या ऐतिहासिक धारावाहिक से ज्यादा कथात्मक धारावाहिक है। यहाँ तिथियाँ नहीं हैं, गाँधी के जीवन की कथा है। इसलिए यह ऐतिहासिक जीवनी से ज्यादा कथात्मक जीवनी है। भाषाई सहजता इन पुस्तकों की पठनीयता को बढ़ाती हैं । इस पुस्तक को लिखते समय लेखक के समक्ष केवल वयस्क पाठक नहीं हैं। वे इन पुस्तकों के माध्यम से किशोरों को भी संबोधित करते हैं। ऐसा करते हुए लेखक संभवतः गाँधी, उनके जीवन और विचारों को, उनके माध्यम से किशोर और युवा भारत को नयी संभावनाओं की ओर ले जाने का स्वप्न देख रहा है। मधुकर जी की गहरी समझ, अध्यवसाय और परिश्रम का परिणाम है यह जीवनी।
About Author
लेखक और पत्रकार मधुकर उपाध्याय का जन्म 1956 में अयोध्या में हुआ और चार दशक पहले आपातकाल के दौरान उन्होंने वहीं से पढ़ाई के साथ पत्रकारिता शुरू की। दस वर्ष बीबीसी से जुड़े रहे तथा पीटीआई भाषा, लोकमत समाचार और आज समाज के संपादक रहे। वह जामिया मिलिया इस्लामिया के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में स्कॉलर-इन-रेजीडेंस भी रहे।
विज्ञान की पढ़ाई करने के बावजूद उनकी रुचि इतिहास और ख़ासकर ब्रितानी शासनकाल में रही। हिंदी और अंग्रेज़ी में उनकी चालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम पर उनकी पुस्तकें किस्सा पांडे सीताराम, विष्णुभट्ट की आत्मकथा और सितारा गिर पड़ेगा ख़ासी चर्चित रही हैं। 7 भागों में बापू की जीवनी, पंचतन्त्र पुनर्पाठ, फ़िफ्टी डेज टु फ़ीडम और पंचलाइन उनकी अन्य पुस्तकों में शामिल हैं, जिनका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
उन्होंने महात्मा गाँधी की दांडी यात्रा पर धुंधले पदचिह्न और दक्षिण अफ्रीका से उनकी वापसी पर एक ख़ामोश डायरीपुस्तक लिखी है। उन्होंने बीबीसी के लिए सड़क मार्ग से बासठ हजार किलोमीटर की यात्रा करते हुए चर्चित रेडियो कार्यक्रम भारतनामा तैयार किया। उन्होंने नाटक भी लिखे हैं, जिनमें से एक नाइजीरियाई मानवाधिकार कार्यकर्ता केन सारोवीवा पर है।
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