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Awara Sajde

Kaifi Azmi, Tr. Zeya Fatima Zaidi

Rs. 500

‘आवारा सज्दे’ मेरा तीसरा काव्य–संकलन है, जो पहली बार उर्दू में 1973 में छपा था । यह मेरी नयी नज्“मों का संकलन है । भारत में इसका स्वागत मेरी आशाओं से भी बढ़कर हुआ । इसकी कुछ नज्“मों को तोड़–मरोड़कर, उनको अपनी तरफ’ से गलत–सलत मानी पहनाकर, कुछ फिरकापरस्तों ने... Read More

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‘आवारा सज्दे’ मेरा तीसरा काव्य–संकलन है, जो पहली बार उर्दू में 1973 में छपा था । यह मेरी नयी नज्“मों का संकलन है । भारत में इसका स्वागत मेरी आशाओं से भी बढ़कर हुआ । इसकी कुछ नज्“मों को तोड़–मरोड़कर, उनको अपनी तरफ’ से गलत–सलत मानी पहनाकर, कुछ फिरकापरस्तों ने शायर को बदनाम करने की बदबख़्त कोशिश की, लेकिन रुस्वा हुई उनकी अपनी समझ! पढ़े–लिखे वर्ग ने इसे हाथों–हाथ लिया । इसी वजह से इस संस्करण में तमाम नयी नज्में और ग“ज“लें शामिल करने से अपने को रोक न सका । मैं बारह–तेरह बरस की उम्र से शेर कहने लगा था । मेरा माहौल शायराना था । घर में उर्दू–फारसी के सभी नामवर शायरों के काव्य–संकलन मौजूद थे । खास–खास मौको पर घर में क’सीदे की महफि’लें होती थीं । कभी–कभार तरही–मुशायरे भी होते । आजकल छ:–छ: महीने मुझसे एक मिसरा भी नहीं होता । उस ज“माने में रोज“ ही कुछ न कुछ लिख लिया करता था । कोई नौहा, कोई सलाम, कोई गजल । उस ज“माने की सब चीजें अगर समेटकर रखने लायक’ न थीं, तो मिटा देने लायक’ भी नहीं । मुझे उनकी बर्बादी का अफसोस भी नहीं है । इसलिए कि उस समय तक न मैं शायरी की सामाजिक जिम्मेदारी से वाकिफ’ हुआ था, न शे’र की अच्छाई–बुराई से । 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के जन्म लेने और उसके असर से पैदा होने वाले अदब ने मुझे बहुत जल्द अपनी पकड़ में ले लिया । मैंने इस नये साहित्यिक आन्दोलन और कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध होकर जो कुछ कहा, उनसे मेरे तीन काव्य–संकलन तैयार हुए । प्रस्तुत संकलन देवनागरी लिपि में मेरा पहला प्रकाशन है । यह मेरी कविताओं का प्रतिनिधित्व करता है । इसमें ‘झंकार’ की चुनी हुई चीजें भी हैं और ‘आखिरे–शब’ की भी । ‘आवारा सज्दे’ मुकम्मल है । मेरी नज्मों और गजलों के इस भरपूर संकलन के जरिए मेरे दिल की धड़कन उन लोगों तक पहुँचती है, जिनके लिए वह अब तक अजनबी थी ।.
Description
‘आवारा सज्दे’ मेरा तीसरा काव्य–संकलन है, जो पहली बार उर्दू में 1973 में छपा था । यह मेरी नयी नज्“मों का संकलन है । भारत में इसका स्वागत मेरी आशाओं से भी बढ़कर हुआ । इसकी कुछ नज्“मों को तोड़–मरोड़कर, उनको अपनी तरफ’ से गलत–सलत मानी पहनाकर, कुछ फिरकापरस्तों ने शायर को बदनाम करने की बदबख़्त कोशिश की, लेकिन रुस्वा हुई उनकी अपनी समझ! पढ़े–लिखे वर्ग ने इसे हाथों–हाथ लिया । इसी वजह से इस संस्करण में तमाम नयी नज्में और ग“ज“लें शामिल करने से अपने को रोक न सका । मैं बारह–तेरह बरस की उम्र से शेर कहने लगा था । मेरा माहौल शायराना था । घर में उर्दू–फारसी के सभी नामवर शायरों के काव्य–संकलन मौजूद थे । खास–खास मौको पर घर में क’सीदे की महफि’लें होती थीं । कभी–कभार तरही–मुशायरे भी होते । आजकल छ:–छ: महीने मुझसे एक मिसरा भी नहीं होता । उस ज“माने में रोज“ ही कुछ न कुछ लिख लिया करता था । कोई नौहा, कोई सलाम, कोई गजल । उस ज“माने की सब चीजें अगर समेटकर रखने लायक’ न थीं, तो मिटा देने लायक’ भी नहीं । मुझे उनकी बर्बादी का अफसोस भी नहीं है । इसलिए कि उस समय तक न मैं शायरी की सामाजिक जिम्मेदारी से वाकिफ’ हुआ था, न शे’र की अच्छाई–बुराई से । 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के जन्म लेने और उसके असर से पैदा होने वाले अदब ने मुझे बहुत जल्द अपनी पकड़ में ले लिया । मैंने इस नये साहित्यिक आन्दोलन और कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध होकर जो कुछ कहा, उनसे मेरे तीन काव्य–संकलन तैयार हुए । प्रस्तुत संकलन देवनागरी लिपि में मेरा पहला प्रकाशन है । यह मेरी कविताओं का प्रतिनिधित्व करता है । इसमें ‘झंकार’ की चुनी हुई चीजें भी हैं और ‘आखिरे–शब’ की भी । ‘आवारा सज्दे’ मुकम्मल है । मेरी नज्मों और गजलों के इस भरपूर संकलन के जरिए मेरे दिल की धड़कन उन लोगों तक पहुँचती है, जिनके लिए वह अब तक अजनबी थी ।.

Additional Information
Color

Hardbound

Book Type

Paperback

Publisher Lokbharti Prakashan
Language Hindi
ISBN 9.78818E+12
Pages 224p
Publishing Year 2008

Awara Sajde

‘आवारा सज्दे’ मेरा तीसरा काव्य–संकलन है, जो पहली बार उर्दू में 1973 में छपा था । यह मेरी नयी नज्“मों का संकलन है । भारत में इसका स्वागत मेरी आशाओं से भी बढ़कर हुआ । इसकी कुछ नज्“मों को तोड़–मरोड़कर, उनको अपनी तरफ’ से गलत–सलत मानी पहनाकर, कुछ फिरकापरस्तों ने शायर को बदनाम करने की बदबख़्त कोशिश की, लेकिन रुस्वा हुई उनकी अपनी समझ! पढ़े–लिखे वर्ग ने इसे हाथों–हाथ लिया । इसी वजह से इस संस्करण में तमाम नयी नज्में और ग“ज“लें शामिल करने से अपने को रोक न सका । मैं बारह–तेरह बरस की उम्र से शेर कहने लगा था । मेरा माहौल शायराना था । घर में उर्दू–फारसी के सभी नामवर शायरों के काव्य–संकलन मौजूद थे । खास–खास मौको पर घर में क’सीदे की महफि’लें होती थीं । कभी–कभार तरही–मुशायरे भी होते । आजकल छ:–छ: महीने मुझसे एक मिसरा भी नहीं होता । उस ज“माने में रोज“ ही कुछ न कुछ लिख लिया करता था । कोई नौहा, कोई सलाम, कोई गजल । उस ज“माने की सब चीजें अगर समेटकर रखने लायक’ न थीं, तो मिटा देने लायक’ भी नहीं । मुझे उनकी बर्बादी का अफसोस भी नहीं है । इसलिए कि उस समय तक न मैं शायरी की सामाजिक जिम्मेदारी से वाकिफ’ हुआ था, न शे’र की अच्छाई–बुराई से । 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के जन्म लेने और उसके असर से पैदा होने वाले अदब ने मुझे बहुत जल्द अपनी पकड़ में ले लिया । मैंने इस नये साहित्यिक आन्दोलन और कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध होकर जो कुछ कहा, उनसे मेरे तीन काव्य–संकलन तैयार हुए । प्रस्तुत संकलन देवनागरी लिपि में मेरा पहला प्रकाशन है । यह मेरी कविताओं का प्रतिनिधित्व करता है । इसमें ‘झंकार’ की चुनी हुई चीजें भी हैं और ‘आखिरे–शब’ की भी । ‘आवारा सज्दे’ मुकम्मल है । मेरी नज्मों और गजलों के इस भरपूर संकलन के जरिए मेरे दिल की धड़कन उन लोगों तक पहुँचती है, जिनके लिए वह अब तक अजनबी थी ।.