Ardhvrit :Shilapriya Srijan Samgra
Item Weight | 700GM |
ISBN | 978-9387409828 |
Author | Edited by Vidyabhooshan |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 472 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2019 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Ardhvrit :Shilapriya Srijan Samgra
इस पुस्तक में स्मृतिशेष शैलप्रिया की विविध अनुशासनों में लिखी गयी रचनाओं की यथासम्भव सम्पूर्ण उपस्थिति संचित हुई है। रचनाओं का अनुक्रम वही है जो उनके प्रकाशित संग्रहों का है। उनका पहला कविता संग्रह 'अपने लिए' 1983 में आया था, दूसरा कविता संग्रह 'चाँदनी आग है' 1991 में। 1995 में उनका तीसरा कविता संग्रह 'घर की तलाश में यात्रा' उनके देहावसान के बाद आया। 'शेष है अवशेष 1995 में और 'जो अनकहा रहा' 1999 में आये जिनमें उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित शेष रचनाओं का संचयन-प्रकाशन हुआ। इनमें कुछ रचनाएँ बिल्कुल प्रारम्भिक दौर की हैं जिन्हें शैलप्रिया ने सम्भवतः अपने जीवन काल में प्रकाशन योग्य नहीं पाया और कुछ रचनाएँ वे हो सकती हैं जो लिखी तो बाद में की गयीं लेकिन जिन पर काम करना शायद शेष रह गया था। इन्हें इन संकलनों में शामिल करने का उद्देश्य एक कवयित्री की रचना-प्रक्रिया को और उसकी विकास यात्रा को समग्रता में देखने और समझने का अवसर सुलभ कराना है।
इसके अलावा इस समग्र में वे समीक्षात्मक, आलोचनात्मक और संस्मरणात्मक आलेख भी हैं जो शैलप्रिया और उनकी रचनाओं पर उनके जीवन काल में या उनके न रहने के बाद लिखे गये। ये रचनाएँ बताती हैं कि शैलप्रिया को एक व्यक्ति और लेखिका के तौर पर किस तरह देखा जाता रहा। ये सब कहीं न कहीं प्रकाशित आलेख हैं। कई रचनाएँ शैलप्रिया के समकालीन और अव स्मृतिशेष सहयात्रियों के हैं, इस नाते उन सबका कृतज्ञ स्मरण भी हैं।
उनके अप्रत्याशित अवसान के बाद दो दशक से अधिक समय बीत चुका है। विगत वर्षों में शैलप्रिया स्मृति सम्मान के अलग-अलग आयोजनों के दौरान यह अनुभव होता रहा कि एक अरसे के बाद लेखकीय कृतियाँ समाज के बीच दुर्लभ होती चली जाती हैं और स्मृति उत्सवों में चर्चा की रस्मअदायगी के बावजूद लेखक धीरे-धीरे परिदृश्य से अदृश्य होता चला जाता है। इसीलिए यह तय किया गया कि शैलप्रिया की जहाँ-तहाँ बिखरी रचनाओं और कृतिचर्चाओं को एक पुस्तक खण्ड में प्रस्तुत किया जाये, ताकि उनकी लेखनीय समग्रता का अनुभव बचा रहे। तो प्रस्तुत है 'अर्द्धवृत्त : शैलप्रिया सृजन समग्र ।'
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