Antrang alok
Author | Tapas Sen (Transl. Suryanath Singh) |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 400 |
ISBN | 978-93-92228-31-5 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.473 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
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Antrang alok
About Book
तापस सेन की कीर्ति न सिर्फ़ एक श्रेष्ठ प्रकाश-व्यवस्थापक की है बल्कि वे प्रकाश-चिन्तक भी रहे हैं। उनके विशद अनुभवों को हिन्दी में लाना हिन्दी में रंगमंच सम्बन्धी वैचारिक सामग्री में एक मूल्यवान और ज़रूरी इज़ाफ़ा है। इस पुस्तक में रंगमंच की दुनिया के अनेक दुर्लभ प्रसंग और अनुभव दर्ज़ हैं। इन लेखों के माध्यम से पता चलता है किन-किन पड़ावों से गुज़रते हुए भारतीय रंगमंच का विकास हुआ।
About Author
तापस सेन (१९२४—२००६)
मूल निवास-स्थान—असम का धुबरी। पिता मतिलाल सेन, माता सुवर्णलता सेन सरस्वती। बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था के शुरुआती कुछ साल दिल्ली में ही गुज़रे। रायसीना बंगाली स्कूल से प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पॉलीटेक्नीक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। मगर रोशनी के प्रति आकर्षण के चलते पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी। यहाँ तक कि मध्यवर्गीय बंगाली परिवारों के लिए चरम काम्य स्थायी नौकरी की माया छोड़ कर मुम्बई चले गये ताकि $िफल्म जगत् में प्रकाश का कला-कौशल सीख सकें। उसके पहले दिल्ली में स्कूली जीवन से ही मंचों पर प्रकाश-प्रक्षेपण की वजह से स्वतन्त्र और विशिष्ट पहचान मिलनी शुरू हो गयी थी। मात्र पन्द्रह साल की उम्र में 'राजपथ’ (1939) नाटक में प्रकाश-व्यवस्था की जि़म्मेदारी सँभाली थी। उसके बाद से पचास से अधिक साल गुज़र गये। मुम्बई के फिल्म जगत् में प्रवेश की व्यर्थ चेष्टा के बाद कोलकाता आ गये। गणनाट्य संघ के 'नवान्न’ की प्रस्तुति उस वक्त की सुखद स्मृति बनी। नाना राजनीतिक विपर्ययों के बीच बाङ्ला थिएटर एक नयी सम्भावना से आलोकित हो उठा था। और इस प्रकाश-प्रक्षेपण में श्रेष्ठ शिल्पी के तौर पर तापस सेन का ही आत्मप्रकाश घटित हुआ था। कोलकाता में पहली बार काम करने का मौका, 1949 में, ऋत्विक घटक द्वारा निर्देशित नाटक 'ज्वाला’ में मिला था। पचास के दशक में कुछ समय तक गणनाट्य संघ के सदस्य रहे। एलटीजी के अध्यक्ष रहे। पश्चिमबंग नाट्य अकादेमी के सक्रिय सदस्य रहे। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, जिनमें संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड अन्यतम है।
सूर्यनाथ सिंह
जन्म : १४ जुलाई, १९६६ को गाजीपुर (उ.प्र.) के सवना गाँव में।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. तक और फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी तक की पढ़ाई की।
प्रकाशित कृतियाँ : 'कुछ रंग बेनूर’, 'धधक धुआँ धुआँ’, 'कोई बात नहीं’ (कहानी-संग्रह); 'चलती चाकी’, 'नींद क्यों रात भर नहीं आती’ (उपन्यास)।
बाल-साहित्य की पुस्तकें : 'शेर ङ्क्षसह को मिली कहानी’, 'तोड़ी कसम फिर से खायी’ (कहानी-संग्रह); 'ब$र्फ के आदमी’, 'बिजली के खम्भों जैसे लोग’, 'सात सूरज सत्तावन तारे’ और 'कौतुक ऐप’ (उपन्यास)।
बाङï्ला से हिन्दी में अनूदित पुस्तकें : 'आशापूर्णा देवी की श्रेष्ïठ कहानियाँ’, 'गाथा मफस्सिल : देवेश राय’, 'खोये का गुड्डा : अवनीन्द्रनाथ ठाकुर’, 'राजा राममोहन राय : विजित कुमार दत्त’।
पुरस्कार : कहानी-संग्रह 'धधक धुआँ धुआँ’ के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का यशपाल पुरस्कार और उपन्यास 'नींद क्यों रात भर नहीं आती’ के लिए प्रेमचन्द पुरस्कार और स्पन्दन पुरस्कार के अलावा सूचना प्रसारण विभाग का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार और हिन्दी अकादमी दिल्ली के बाल एवं किशोर पुरस्कार से सम्मानित।
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