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About Book

अजितकुमार की उपस्थिति और सक्रियता आधुनिक हिन्दी साहित्य की पिछली अधसदी से अधिक की लम्बी अवधि में शान्त, विनम्र और विविधवी रही है। विचारधारात्मक द्वन्द्र और ध्रुवीकरण के समय में वे विचार को समझते-परखते रहे, दृष्टियों की बहुलता को हिसाब में लेते रहे लेकिन धारा में बहने से दूर रहे आए। उनकी कविता और अन्य लेखन ने कभी किसी अतिरेक का सहारा नहीं लिया : वे बच्चन और अज्ञेय जैसे दो काफ़ी अलग कवियों के निकट और समझदार प्रशंसक रहे । उनमें यह बेबाकी भी थी कि इसरार कर सकें कि '...राजेन्द्र यादव के चिन्तन में आन्तरिक व्यवस्था या अनुशासन की कमी... है और... भले वह काफ़ी सोचते हैं, लेकिन काफ़ी देर तक और दूर तक नहीं सोचते हैं।' मूलतः कवि होते हुए अजितकुमार ने कहानी, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण आदि कई विधाओं को बखूबी साधा : वह सब एक स्तर पर उनके कविमन का विस्तार है तो दूसरे स्तर पर इन विधाओं की सम्भावनाओं का निजी अन्वेषण भी। बढ़ती विस्मृति के अभागे समय में युवा लेखक पल्लव द्वारा किया गया उनकी रचनाओं का यह संचयन एक तरह का कृतज्ञ स्मरण है। एक ऐसे लेखक का, जिसका साहित्य इस समय में, बिना किसी दावे या नाटकीयता के, लेखक और मनुष्य होने की ज़िद का गवाह है और जिसकी गवाही हमें अपने समय के साहित्य-संघर्ष और सौन्दर्य को समझने में हमारी मदद करती है।

About Author

पल्लव

राजस्थान के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी परिवार में 2 अक्टूबर को जन्म। शिक्षा-पी-एच. डी., एम.ए. हिन्दी। गद्य आलोचना में विशेष रुचि।

'कहानी का लोकतन्त्र' और 'लेखकों का संसार' शीर्षक से दो पुस्तकें।

'मीरा : एक पुनर्मूल्यांकन', 'गपोड़ी से गपशप', 'एक दो तीन' और 'अस्सी का काशी' शीर्षक से सम्पादित पुस्तकों का प्रकाशन। तीन खण्डों में असगर वजाहत रचना-संचयन का सम्पादन। 'मैं और मेरी कहानियाँ' शीर्षक से हिन्दी के दस प्रतिनिधि युवा कथाकारों के दस कहानी-संग्रहों एवं अजितकुमार रचना संचयन ‘अँजुरी भर फूल’ का सम्पादन।

साहित्य-संस्कृति के विशिष्ट संचयन ‘बनास जन' का विगत बारह वर्षों से सम्पादन।

भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का युवा साहित्य पुरस्कार, वनमाली सम्मान, आचार्य निरंजननाथ सम्मान, राजस्थान पत्रिका सृजन पुरस्कार, पाखी आलोचना सम्मान सहित कुछ और पुरस्कारसम्मान।

सम्प्रति-दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में अध्यापन।

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