क्रम
1. अनारको का पहला दिन - 6
2. अनारको का दूसरा दिन - 18
3. अनारको का तीसरा दिन - 30
4. अनारको का चौथा दिन - 43
5. अनारको का पाँचवाँ दिन - 55
6. अनारको का छठा दिन - 71
7. अनारको का सातवाँ दिन - 82
8. अनारको का आठवाँ दिन - 93
अनारको का तीसरा दिन
(दो-दो दार्शनिक घड़ी)
आज सोए-सोए अनारको को मालूम हो गया कि पापा
बिस्तर पर बगल में बैठे उसके बाल सहला रहे हैं । सो उसने
आँखें बंद रखीं और उसे पापा खरगोश-जैसे दिखने लगे !
जैसे कोई खरगोश बगल में दुबका हो और अपनी टाँग आगे
बढ़ाकर छू रहा हो उसे । फिर वह सोचने लगी, पापा भी
कैसे-कैसे लगते हैं—कभी हाथी जैसा चलते हैं, कभी
कुत्ते-जैसा गुर्राते हैं, कभी बगुले-जैसा सोचते हैं और
कभी-कभी खरगोश-जैसा छूते हैं । फिर वह और अंदर
सोचने लगी । अच्छा, मैं भी तो अलग-अलग लगती
होऊँगी ! मेरे अंदर भी कोई है जो कभी कुछ करने को
कहती है और कोई और है जो कुछ और करने को कहती
है । अच्छा, अभी क्या करें ? फिर उसने मन ही मन कुछ
तय किया । तय करते-करते पापा जा चुके थे, सो वह उठी
अनारको का छठा दिन
सबको मालूम था कि भूतों के बारे में गोलू जितना जानता
है, उतना पूरी दुनिया में और कोई नहीं जानता । फुलपत्ती
तो यहाँ तक कहती कि गोलू भूतों के बारे में जितना
जानता है उतना तो भूत भी नहीं जानते । फुलपत्ती तो
खैर सबकुछ बढ़ा-चढ़ाकर कहती थी, खासकर जब वह
गोलू के बारे में हो । लेकिन बात तो सही थी— गोलू
वाकई भूतों के बारे में बहुत कुछ जानता था ।
आज खाने की छुट्टी में अनारको ने देखा कि गोलू उधर
मैदान के किनारे खड़े होकर खूब हाथ हिला-हिलाकर ढेर
खूब गोल-गोल सारे साथियों को कुछ बता रहा था । आँखें
घुमा रहा था । बीच-बीच में मुँह से कुछ आवाजें भी
निकाल रहा था । अनारको समझ गई कि गोलू सबको भूतों
के बारे में बता रहा है। उसने सोचा, आज गोलू से भूर्ती
के बारे में जरूर पूछेगी । पीछे से एक और सोच धीरे से