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सिनेमा पर भारतीय शास्त्रीय आलोचना परम्परा को आयद करने की कोशिश की शुरुआत करनेवाली ऐसी पुस्तक विश्व-सिने-समीक्षा इतिहास में पहली है। इसमें बहुत जोख़िम उठाया गया है।मतभेदों के बावजूद यह पुस्तक सही अर्थों में अपने क्षेत्र में एकदम नयी दृष्टि रखती और देती है, नूतन मार्ग बनाती है और अग्रगामी... Read More
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