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AASMAN AUR BHI HAIN

ADITYA NIGAM

Rs. 325

About the Book:इस पुस्तक का सरोकार राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान के वि-उपनिवेशिकरण और वैचारिक स्वराज से है। यह पुस्तक पश्चिम से मिले दर्शन को सिद्धान्त-निर्माण के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकार करने के बजाय अपने तजुर्बों को प्राथमिकता देने पर जोर देती है।About the Author:आदित्य निगम लम्बे... Read More

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About the Book:
इस पुस्तक का सरोकार राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान के वि-उपनिवेशिकरण और वैचारिक स्वराज से है। यह पुस्तक पश्चिम से मिले दर्शन को सिद्धान्त-निर्माण के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकार करने के बजाय अपने तजुर्बों को प्राथमिकता देने पर जोर देती है।

About the Author:
आदित्य निगम लम्बे समय तक सेण्टर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सी.एस.डी.एस.), दिल्ली से जुड़े थे और एक राजनीतिक सिद्धान्तकार होने के अलावा संस्थान के भारतीय भाषा कार्यक्रम के सदस्य व उसके द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रतिमान के सम्पादक मण्डल के भी सदस्य थे।
Description

About the Book:
इस पुस्तक का सरोकार राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान के वि-उपनिवेशिकरण और वैचारिक स्वराज से है। यह पुस्तक पश्चिम से मिले दर्शन को सिद्धान्त-निर्माण के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकार करने के बजाय अपने तजुर्बों को प्राथमिकता देने पर जोर देती है।

About the Author:
आदित्य निगम लम्बे समय तक सेण्टर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सी.एस.डी.एस.), दिल्ली से जुड़े थे और एक राजनीतिक सिद्धान्तकार होने के अलावा संस्थान के भारतीय भाषा कार्यक्रम के सदस्य व उसके द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रतिमान के सम्पादक मण्डल के भी सदस्य थे।

Additional Information
Title

Default title

Publisher Setu Prakashan Pvt. Ltd.
Language Hindi
ISBN 9789395160919
Pages 264
Publishing Year 2023

AASMAN AUR BHI HAIN

About the Book:
इस पुस्तक का सरोकार राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान के वि-उपनिवेशिकरण और वैचारिक स्वराज से है। यह पुस्तक पश्चिम से मिले दर्शन को सिद्धान्त-निर्माण के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकार करने के बजाय अपने तजुर्बों को प्राथमिकता देने पर जोर देती है।

About the Author:
आदित्य निगम लम्बे समय तक सेण्टर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सी.एस.डी.एस.), दिल्ली से जुड़े थे और एक राजनीतिक सिद्धान्तकार होने के अलावा संस्थान के भारतीय भाषा कार्यक्रम के सदस्य व उसके द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रतिमान के सम्पादक मण्डल के भी सदस्य थे।