Aao Apni Hindi Sudhare
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9384406448 |
Author | Narpat Singh Sayla |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |

Aao Apni Hindi Sudhare
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आओ, अपनी हिन्दी सुधारें के अवलोकन मात्र से यह विचार पुष्ठ होता है कि लेखक ने इसके निर्माण में अपने अनुभवों का, छात्रों की अनुभूत आवश्यकताओं के साथ युक्ति–युक्त सामंजस्य स्थापित किया है। व्याकरण निश्चिततः एक जटिल प्रकरण है और इसमें सिद्धान्तों का बाहुल्य कष्टकर भी होता है, पर ज्ञान के क्षेत्र में प्रविष्टि होने के लिए अनिवार्य व्यायाम से बचा नहीं जा सकता। व्याकरण के अन्तर्गत अनुस्वार और अनुनासिक पर विस्तृत विवेचन है, तो हिन्दी के वर्ण-क्रम और संयुक्त-व्यंजन पर भी अपने विचारों से छात्रों को लाभान्वित करने का प्रयास किया गया है। स्वर–संधि का सजातीय व विजातीय वर्गकरण तथा व्यंजन-संधि का गुणानुसार नामकरण करके विश्लेषण किया गया है, जिससे प्रकरण अधिक बोधगम्य हो सका। अयोगवाह-संधि के अन्तर्गत अनुस्वार-संधि (व्यंजन संधि में से निकालकर) और विसर्ग-संधि में सभी बिन्दुओं को समेटते हुए, छात्रोपयोगी तालिका भी प्रस्तुत की गई है। कारक के सम्बन्ध में, लीक से हटकर, अपने विचारों को नवीनता प्रदान की गई है। वाक्यांश (पद बन्ध और मुहावरे) और लोकोक्तियों को स्पष्ट करते हुए उनका चयन छात्रोपयोगी है और उनके अर्थ में लेखक का ज्ञान झलकता है। 8216;विरामादि8217; को नया नाम दिया है।8216;रचना8217; भाग में 8216;पल्लवन8217; व 8216;संक्षिप्तिकरण8217; का समावेश इस पुस्तक को उपयोगी तो बनाता ही है, प्रदत्त उदाहरण प्रकरण को बोधगम्य बनाते हुए ज्ञान-वर्धन भी करते हैं। तार-लेखन में लेखक ने प्रारम्भ में आवश्यक अनुदेश देकर इस विधा के मूल तत्वों से छात्रों को परिचित तो करवाया है ही, उदाहरणों व अभ्यास क्रम से उसे स्पष्टता प्रदान की है, जो उसे जीवनोपयोगी बना देती है। निबन्ध लेखन वस्तुतः गद्यकार के कौशल का निकष है और लेखक ने इस कथन को ध्यान में रखकर इसका सांगोपांग विवेचन करने के उपरांत उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। निबन्धों के चयन में विविधता, मौलिकता व उपयोगिता का विशेष ध्यान रखा है। 8216;नटखट न का नर्तन8217; लेख में 8216;न8217; की अनेक नृत्य भंगिमाए मौलिक रूप में साकार हुई हैं। 8216;स्वर्गाभिसारिका8217; में मौलिक व्यक्त हुई है। 8216;कम्प्यूटर8217; का चयन युग की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया गया है पर उसका सरल व समीचीन विवेचन असंदिग्धतः सतुत्य है। लेखक का खिलाड़ियों से सम्बन्ध रहा है, इसी कारण कुछ खिलाड़ी और आयोजक उसके उदय पटल पर छाए रहते हैं। समय का आवरण भी उनको धुंधला नहीं कर सका। उनको स्मरण कर, लेखक अपने विगत में खो गया है। खेल के प्रत्येक रूप की स्मृति, लेखक के हृदय में स्पष्ट रूप से चित्रित है।RelatedTRUE
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