Samkaleen Marathi Anudit Kavita
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Author | Sunil Baburao Kulkarni |
Language | Hindi |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Pages | 144p |
ISBN | 978-9393768834 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.35 kg |
Dimensions | 14.61*22.22cm*1.2 |
Edition | 1st |
Samkaleen Marathi Anudit Kavita
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यह किताब क्यों खरीदें?
• ‘समकालीन मराठी अनूदित कविता’ आठवें-नौवें दशक से अब तक के दौर में अपनी अलग पहचान बनाने वाले मराठी कवियों की चुनिन्दा कविताओं का संकलन है।
• आधुनिक मराठी कविता और उसके जरिए भारतीय कविता के समकालीन परिदृश्य को जानने-समझने के लिए यह एक जरूरी किताब है। इसमें दलित-वंचित समाज और आदिवासी समाज का विद्रोह और आत्माभिव्यक्ति विशेष रूप से लक्षित है। वैश्वीकरण से उपजी असमानता और दुर्व्यवस्था भी इन कविताओं में उपस्थित है।
• ‘समकालीन मराठी अनूदित कविता’ कविता प्रेमियों के लिए पसन्दीदा किताब है ही, अनूदित साहित्य के रूप में तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी बहुत उपयोगी सन्दर्भ पुस्तक है।
किताब के बारे में
मराठी कविता की 1100 वर्षों की समृद्ध और दीर्घ परंपरा है। हर काव्य प्रवाह में उत्थान, ठहराव और अवसान के बाद पुनरुत्थान यह कालक्रम निरन्तर चलता रहता है। मध्यकाल में भक्ति परम्परा के माध्यम से निर्मित हुआ श्रेष्ठ संत काव्य मराठी कविता का महत्त्वपूर्ण उत्थान पर्व रहा है। 1920 से 1945 का काल एक अर्थ में थोपे गए रोमांटिसिज्म के कारण अवनति के काल के रूप में जाना जाता है। इस सांकेतिक शरणागतता तथा उसके कारण निर्मित तत्कालीन परिस्थिति को पहला आघात बा.सी. मर्ढेकर ने दिया।
स्वातंत्र्योत्तर काल के पहले दशक की कविताओं को नई कविता कहा जाता है। इस काल में बा.सी. मर्ढेकर और वि.दा. करन्दीकर की कविताओं में परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती हुई कविताओं की परिपाटी पर चलने वाली कविताओं के सृजन का प्रयास दिखाई देता है। वैश्वीकरण के कारण होने वाले बदलावों का अप्रत्यक्ष प्रभाव 1990 के बाद की कविताओं पर रहा है। इस काल के कवियों पर आसपास के परिवेश, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा भाषिक पर्यावरण का प्रभाव होता है।
प्रस्तुत उपक्रम में इस काल में आकार लेने वाले नये सामाजिक, आर्थिक, राजकीय, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवेश के माध्यम से मराठी कविता में आए नव प्रवाहों पर संक्षिप्त रूप में प्रकाश डालते हुए हिन्दी भाषिक विद्यार्थियों को मराठी कविता का परिचय कराने का प्रयास इस विषय पत्रिका का प्रमुख उद्देश्य रहा है।
इस दृष्टि से कविता का सृजन करने वाले पिछले तीन दशकों में मराठी कवियों की संख्या विशेष लक्षणीय है। ये कवि महाराष्ट्र के कोने-कोने में व्याप्त हैं। ग्रामों से शहरों तक में निवास करने वाले ये कवि अपने परिवेश की सुगंध को कायम रख कविताएँ लिख रहे हैं।
संकलन की कविताओं और कवियों का चयन करते समय यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखी गई है कि चयनित कवि मूलत: मराठवाड़ा प्रांत से ही सम्बन्धित हों। इन सभी कवियों के मराठवाड़ा की मिट्टी में पले-बढ़े होने के कारण इनकी कविताओं में मिट्टी की सोंधी सुगन्ध के साथ-साथ मराठवाड़ा की भूमि पर घटित सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का यथार्थ चित्र अंकित हुआ है। उसे जानने और समझने में छात्रों को निश्चित रूप से सहायता मिलेगी, ऐसा हमें पूरा विश्वास है।
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