गीतांजलि श्री को उनकी किताब रेत समाधि के लिए बुकर पुरस्कार मिलने के बाद हिंदी के वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी की प्रतिक्रिया आई। उन्होंने कहा कि गीतांजलि श्री की किताब रेत समाधि को बुकर मिलना हिंदी के लिए बड़ी और ऐतिहासिक घटना है। उनका मानना है कि इससे हिंदी का मन और मज़बूत होगा।
आज से क़रीब तीस साल पहले गीतांजलि के उपन्यास 'हमारा शहर उस बरस' आया था। फिर “माई” आया। रेत समाधि समेत इन सबको पढ़ते हुए ये लगता है कि गीतांजलि बतौर लेखिका कितनी परिपूर्ण हैं। माई में ग्रामीण परिवेश को दिखाती गीतांजलि ने “हमारा शहर उस बरस” में राजनीतिक विषयों को भी छुआ है। और इन सब के केंद्र में है स्त्री। कितनी सहजता से स्त्रियों की समकालीन स्थिति को उपन्यास की कहानी के साथ दर्ज की जा सकती है,ये आपको इनके उपन्यास पढ़ कर दिखेगी।
रेत समाधि ने गीतांजलि के इस सफ़र में एक अहम मोड़ का काम किया। इसमें स्त्री-पुरुष से लेकर थर्ड जेंडर और उनसे जुड़ी समस्याएं सब हैं। एक बूढ़ी महिला के इर्द घूमती कहानी गीतांजलि श्री के इस उपन्यास में बेहद रोचक तरीक़े से आगे बढती है।
गीतांजलि ने उपन्यासों के इस सफ़र में कुछ कहानियां भी लिखी हैं। फक्कड़पन और दार्शनिकता से भरपूर इन कहानियों को पढ़ते हुए आप इनसे यूँ ही बंधते चले जाएंगे।
रेख़्ता बुक्स पर पढ़िए गीतांजलि श्री की ऐसी ही कुछ प्रतिनिधि कहानियां।