30 जनवरी 1948 को देश ने एक बड़े आदमी की नृशंस हत्या देखी. ये वही आदमी था जिसकी आँखों से हमने आज़ाद भारत का ख़्वाब देखा था. ये वही आदमी था जो उस ख़्वाब को पूरा करने के लिए हर जतन करता रहा. रविन्द्र नाथ टैगोर का यही महात्मा इस दिन मार दिया गया.
गांधी मार दिए गए. हमने निबंधों में पढ़ा था कि वो एक पागल आदमी था. बाद में पता चला वो कट्टरपंथी था, नफ़रती था. और देश की हर त्रासदी के लिए उस बूढ़े को ज़िम्मेदार मानता था जिसने किसी का बुरा नहीं चाहा.
इस घटना के समय भी और आज जब उस हत्या को 70 साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं. उस नृशंसता को सही ठहराने की कोशिश हो रही है. कई झूठ सच बनाने की कोशिश हो रही है. मारे जाने वाले को खलनायक और उस सनकी जिसका नाम नाथूराम गोडसे है उसे नायक कहा जा रहा है.
'विभाजन के लिए गांधी जिम्मेदार थे' ; 'गांधी ने मुसलमानों का पक्ष लिया और हिंदुओं को छोड़ दिया' ; 'हिंदू भारत को बचाने के लिए गांधी को मारना ही एकमात्र तरीका था'; 'गांधी की हत्या देशभक्ति थी' - ये हिंदू संगठनों और गोडसे के मानने वालों के बयान तब भी थे और आज भी यही फैलाया जाता है. ज़ाहिर है ऐसी बातें फैलने का एक मात्र कारण है. सच का ज्ञान न होना. लोगों को लगता है शायद यही सही है. लेकिन ऐसा है नहीं.
तुषार गांधी की पुस्तक 'Let's Kill Gandhi' इन्हीं झूठों का जवाब है. तुषार की इस किताब में केवल ऐसे तथ्य हैं जो पूरी तरह से प्रमाणित है. इसमें किताबों, उस समय के सरकारी कागज़ों, हत्या के मुकदमे की कॉपी , जांच की रिपोर्ट, उस समय के अखबारों की रिपोर्ट से, उस समय के जजों की लिखी किताब और बहुत सारे लोगों के मौखिक बयान से जुटाए गए तथ्य हैं. राजनीतिक हत्याओं के इतिहास में गांधी की हत्या पहली ऐसी हत्या थी जिसमें उनसे नफरत करने वालों ने बहुत आसानी से अपना एजेंडा फैला दिया. ज़ाहिर है इसमें सरकारों की भी उदासीनता शामिल है. ये किताब उन सब अफवाहों को जवाब है.
तुषार गांधी महात्मा गांधी के पड़पोते हैं. गांधी के कई निजी वस्तुओं और अनुभवों पर उनकी जानकारी उन सबसे ज्यादा है जो दूर बैठ कर गांधी को पढ़ते समझते हैं. उनकी लिखी ये किताब उस प्रोपेगैंडे को भी जवाब है जो गोडसे से शुरू हो कर वर्तमान राजनीति हमें दिखा रही है.
गांधी के बारे में अगर आपको भी तथ्यों की मदद से जानना है, समझना है और अफवाहों की दुनिया से परे जाना है तो ये किताब आपके लिए है.
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