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Pratinidhi Kahaniyan : Ismat Chugtai
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उर्दू कथा-साहित्य में इस्मत चुग़ताई एक ऐसा नुमाया नाम है, जिसने साहित्य और साहित्य से बाहर हर तरह की रूढ़ परम्परा को नामंजूर किया। जिस दौर और जिस समाज से उनकी क़लम का रिश्ता रहा है, एक महिला कथाकार के नाते उसे अपनी शर्तों पर निबाह ले जाना बेहद मुश्किल काम था।
इस संग्रह में चुग़ताई की चुनिन्दा कहानियाँ शामिल हैं। ये कहानियाँ हमारी दुनिया और उसकी समाजी सच्चाइयों का ऐसा बयान हैं जिनकी कड़वाहट पर भरोसा किया जा सकता है। इनके माध्यम से हम आज की उस जद्दोजहद से वाबस्ता होते हैं जो इनसानी वजूद और इनसानियत के हक़ में सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। आदमी द्वारा आदमी पर होनेवाला ज़ुल्म और ऐसे आदमी को पैदा करनेवाले निज़ाम की तीखी आलोचना इन कहानियों में पूरी कलात्मकता के साथ मौजूद है।
यथार्थ की गहरी पकड़, नए अर्थ खोलती अछूती उपमाएँ, बेबाकी-भरा व्यंग्यात्मक लहज़ा, चरित्रों का स्वाभाविक विकास और शब्दों का बेहद किफ़ायती इस्तेमाल इस्मत चुग़ताई के रचनाकर्म की कुछ ख़ास ख़ूबियाँ हैं। Urdu katha-sahitya mein ismat chugtai ek aisa numaya naam hai, jisne sahitya aur sahitya se bahar har tarah ki rudh parampra ko namanjur kiya. Jis daur aur jis samaj se unki qalam ka rishta raha hai, ek mahila kathakar ke nate use apni sharton par nibah le jana behad mushkil kaam tha. Is sangrah mein chugtai ki chuninda kahaniyan shamil hain. Ye kahaniyan hamari duniya aur uski samaji sachchaiyon ka aisa bayan hain jinki kadvahat par bharosa kiya ja sakta hai. Inke madhyam se hum aaj ki us jaddojhad se vabasta hote hain jo insani vajud aur insaniyat ke haq mein sabse zyada zaruri hai. Aadmi dvara aadmi par honevala zulm aur aise aadmi ko paida karnevale nizam ki tikhi aalochna in kahaniyon mein puri kalatmakta ke saath maujud hai.
Yatharth ki gahri pakad, ne arth kholti achhuti upmayen, bebaki-bhara vyangyatmak lahza, charitron ka svabhavik vikas aur shabdon ka behad kifayti istemal ismat chugtai ke rachnakarm ki kuchh khas khubiyan hain.

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क्रम


1.    दो हाथ - 17
2.    बच्छू फूफी - 23
3.    सास - 36
4.    छुईमुई - 39
5.    कच्चे धागे - 47
6.    चौथी का जोड़ा - 61
7.    जड़ें - 73
8.    मुग़ल बच्चा - 81
9.    लिहाफ़ - 91
10.    ज़रूरत - 106
11.    अजनबी - 115
12.    फ़िरदौस - 124
13.    नन्हीं सी जान - 133
14.    घरवाली - 139

दो हाथ


राम अवतार लाम पर से वापस आ रहा था । बूढ़ी मेहतरानी अब्बा मियाँ से
चिट्ठी पढ़वाने आयी थी । राम अवतार को छुट्टी मिल गयी । जंग खत्म हो
गयी थी न, इसलिए राम अवतार तीन साल बाद वापस आ रहा था । बूढ़ी
मेहतरानी की चीपड़-भरी आँखों में आँसू टिमटिमा रहे थे। मारे शुकरगुज़ारी
के वह दौड़-दौड़कर सबके पाँव छू रही थी; जैसे उन पैरों के मालिकों ने ही
उसका इकलौता पूत लाम से ज़िन्दा, सलामत मँगवा लिया ।

बुढ़िया पचास बरस की होगी, पर सत्तर की मालूम होती थी । दस-बारह
कच्चे-पक्के बच्चे जने, उनमें से बस रामअवतरवा बड़ी मन्नतों, मुरादों से
जिया था । अभी उसकी शादी रचाये साल भर भी नहीं बीता था कि राम
अवतार की पुकार आ गयी । मेहतरानी ने बहुत बावेला मचाया, मगर कुछ न
चली और जब राम अवतार वर्दी पहनकर आख़िरी बार उसके पैर छूने आया तो
वह उसकी शानो-शौकत से बेइन्तहा मरगूब हुई। जैसे वह करनल ही तो हो
गया था !
'शागिर्दपेशे में नौकर मुस्करा रहे थे । राम अवतार के आने के बाद जो ड्रामा
होने की उम्मीद थी, सब उसी पर आस लगाये बैठे थे। हालाँकि राम अवतार
लाम पर तोप-बन्दूक छोड़ने नहीं गया था, फिर भी सिपाहियों का मैला
उठाते-उठाते उसमें कुछ सिपाहियाना आन-बान और अकड़ पैदा हो गयी थी ।
भूरी वर्दी डाटकर वह पुराना रामअवतरवा वाक़ई न रहा होगा । नामुमकिन है,
वह गोरी की करतूत सुने और उसका जवान ख़ून हतक से खौल न उठे ।
ब्याहकर आयी तो क्या मुसमसी थी गोरी । जब तक राम अवतार रहा,

 

किस्मत की ख़ूबी देखिए टूटी कहाँ कमन्द
दो-चार हाथ जब के: लबे - बाम रह गया ।
नयी रूह दुनिया में क़दम रखते ही झिझक गयी और मुँह बिसूरकर लौट
गयी । मेरी पँचफुल्ला रानी ने जो तिलस्मे-होशरुबा क़िस्म की जच्चगी देखी तो
मारे हैबत के हमल गिर गया ।

कच्चे धागे

आज गाँधी-जयन्ती है। शहर में कितनी चहल-पहल है । फूलों और तिरंगे
झण्डों से आरास्ता-पैरास्ता मोटरें अपनी आगोश में नौदौलतिये सेठों को दबाये
फर्राटे भर रही हैं । बर्फ-जैसी सफ़ेद खद्दर में ये आबनूस-पुतले, काले-सफ़ेद
का चितकबरा मिलाप आँखों पर कैसी तकलीफदेह चोट करता है और उनके
पहलू में बैठी हुई बदज़ौक सेठानियाँ और गुल मचाते हुए बच्चे सोने पर सुहागा
का काम कर रहे हैं । दौलत बिना कहे - सुने उन पर टूट पड़ी है। मालूम होता है
कपड़े पहने हुए नहीं हैं, बल्कि बहुत-से बेहगम थान किसी ने उलझाकर मोटर
में ठूंस दिये हैं । सामाने आराइश रंगो-पाऊडर अन्नमारियों से कूदकर उन पर
आन पड़ा है । नाक बहते, तेल में चिपचिपाते बच्चे वाईट - अवे की अल्ट्रा मॉडर्न
फ्रॉकों के साथ झाँझन-कड़े पहने आँखों में मनों काजल उँडेले अजीब मज़हका-
ख़ेज़ हयूला बने हुए हैं । हाथों में तिरंगे झण्डे हैं और अमरीकन खिलौने । ऐसा
मालूम होता है, किसी सस्ते सरकस का इश्तहार चला जा रहा हो ।

आज बापू का जन्मदिन है । आज भारत के सपूत ने भारत के निवासियों को
गुलामी से आज़ाद कराने के लिए धरती पर पहला साँस लिया था । मगर परेल
औ' लाल बाग की चालों में ये कैसी मुर्दनी छायी हुई है ! जैसे आज उनका कोई न
पैदा हुआ हो, बल्कि हजारों मौतें हो गयी हों । लाखों उम्मीदें धुआँ बन गयी हों ।
उनके चेहरों की रौनक कहाँ गायब हो गयी है ? क्या ये कभी वापस न आयेगी ?
उनके कपड़ों में रंग क्यों नहीं, तिलये की चमक क्यों नहीं ? उनके हाथों में तिरंगे
गुब्बारे क्यों नहीं ?

 

काँपा । आज मैंने दिल में ठान लिया कि ज़रूर हिम्मत करके सिरहाने का लगा
हुआ बल्ब जला दूँ । हाथी फिर फड़फड़ा रहा था और जैसे उकडूं बैठने की
कोशिश कर रहा था। चपड़ - चपड़ कुछ खाने की आवाज़ें आ रही थीं-जैसे
कोई मज़ेदार चटनी चख रहा हो । अब मैं समझी ! यह बेगम जान ने आज कुछ
नहीं खाया । और रब्बो मुई तो है सदा की चट्टू ! ज़रूर यह तर माल उड़ा रही
है। मैंने नथुने फुलाकर सूँ-सूँ हवा को सूँघा । मगर सिवाय अतर, सन्दल और
हिना की गरम-गरम ख़ुशबू के और कुछ न महसूस हुआ ।
लिहाफ़ फिर उमँडना शुरू हुआ । मैंने बहुतेरा चाहा कि चुपकी पड़ी रहूँ,
मगर उस लिहाफ़ ने तो ऐसी अजीब-अजीब शक्लें बनानी शुरू कीं कि मैं लरज
गयी । मालूम होता था, ग़ों-ग़ों करके कोई बड़ा-सा मेंढक फूल रहा है और अब
उछलकर मेरे ऊपर आया !

'आन' अम्माँ !” मैं हिम्मत करके गुनगुनायी, मगर वहाँ कुछ सुनवाई
न हुई और लिहाफ़ मेरे दिमाग़ में घुसकर फूलना शुरू हुआ । मैंने डरते-डरते
पलँग के दूसरी तरफ पैर उतारे और टटोलकर बिजली का बटन दबाया । हाथी
ने लिहाफ़ के नीचे एक क़लाबाज़ी लगायी और पिचक गया । कलाबाज़ी लगाने
में लिहाफ़ का कोना फुट-भर उठा-
अल्लाह ! मैं गड़ाप से अपने बिछौने में ! ! !

ज़रूरत

मेरा दिल हथौड़े की चोटों की तरह धड़क रहा था। फूलों और अम्बर की
मदहोशकुन ख़ुशबू दिलो-दिमाग़ को बुरी तरह झिझोड़ रही थी । लड़कियाँ-
बालियाँ दूल्हा को अजला-ए-अरूसी की तरफ़ ला रही थीं । कुँवारियाँ चहक
रही थीं, ब्याहियाँ ज़ेरे-लब मुस्करा रही थीं ।
और मैं आनेवाली घड़ियों के इन्तज़ार में थरथर काँप रही थी । सुहागरात
हर दोशीजा के ख़्वाबों की ताबीर होती है । मेरे हाथ बर्फ़ की डलियों की तरह
सर्द हो रहे थे । पेशानी पर पसीना फूट रहा था ।
दरवाज़ा खुला और लड़कियों के कहक़हों के साथ ही वह एक झटके से

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P
Pranav Rai

Pratinidhi Kahaniyan : Ismat Chugtai

N
NIshu NIgam
Taaruuf Chugtai tai se

I found Ismat Chugtai to be a very prolific writer . She has written boldly on issues that are still treated as taboo in todays society. Every indian must read her to discover the true India that we live in. Her writing is timeless and very rich in content.

R
RAM AVTAR MEENA
Pratinidhi Kahaniyan : Ismat Chugtai

बेहद बेहतरीन उम्दा अफ़साने I

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