हिंदी साहित्य में एक उपन्यास है जो ख़ूब चर्चित हुआ. जिस पर ख़ूब बात हुई और जिसकी खूब आलोचना भी हुई.
नाम 'राग दरबारी'. लेखक श्रीलाल शुक्ल.
ये भी रोचक है कि श्रीलाल शुक्ल ने कुल 25 किताबें लिखी है लेकिन 'राग दरबारी' उनके लिए वो मील का पत्थर बन गई जो अब चाह के भी पाया नहीं जा सकता. उनकी पहली किताब ‘अंगद का पांव’ भी मशहूर हुई थी. इस उपन्यास में व्यंग्य के सहारे ग्रामीण भारत और सरकारी तंत्र का जो खाका श्रीलाल शुक्ल ने खींचा है, उसकी बराबरी नहीं हो सकती.
साल 2011 में जब श्रीलाल शुक्ल का निधन हुआ तो हिंदी के बड़े आलोचक और हिंदी के प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने कहा कि 'राग दरबारी' जैसे उपन्यास के लेखक श्रीलाल शुक्ल को इतनी देर से ज्ञानपीठ पुरस्कार देने के लिए ज्ञानपीठ अकादमी को पश्चात्ताप करना होगा.
श्रीलाल शुक्ल ने 'राग दरबारी' से पहले भी बहुत कुछ लिखा ही है और उसके बाद भी लिखते रहे लेकिन शुक्ल की दो दर्जन से ज्यादा की किताबों में भी कैसे 'राग दरबारी' अलग तरह से चीन्ही गयी , पहचानी गयी , ये उस किताब की ख़ूबी है. वक्त के साथ इसे सोलह भाषाओं में छापा गया और हर साल एक से ज्यादा संस्करण आए. यही इसकी सार्थकता है. इस एक उपन्यास पर ही इतनी ज़्यादा बात हुई चाहे वो आलोचना हो या तारीफ़ कि अगर उनका भी सँग्रह किया जाए तो कई किताबें बन जाएं.
अब आप सोचिए कि इतने लंबे समय तक अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने वाली इस किताब में ऐसा है क्या,जो आज भी पढ़ने वालों के लिए उतनी ही रोचक है. यहाँ तक की इसे दोबारा भी पढ़ो तो ये फिर से उतनी ही ताज़ी लगती है.
दरअसल राग दरबारी ने साहित्य की दुनिया में गांवों की उस छवि को तोड़ा कि गांव बहुत सभ्य होते हैं, भोले होते हैं. श्रीलाल शुक्ल ने कहा -नहीं,गांव ये हैं. आप शहर में रहने की खीझ और टीस को गांव को अच्छा बताकर नहीं मिटा सकते. उपन्यास के किरदार वैद्यजी, रुप्पन, सनीचर ,लंगड़, बड़े पहलवान, रंगनाथ, प्रिंसिपल साहब , रामाधीन भीखमखेड़वी- ये सब केवल शिवपालगंज के निवासी नहीं लगते. ये तब भी हर जगह दिखते थे जब 1968 में ये पहली बार उपन्यास में आए और आज भी प्रासंगिक हैं.
कोई किताब हमें क्यों पढ़नी चाहिए? ज़ाहिर है भाषाई नजरिये से और ज्ञान के नजरिये से हम समृद्ध हो सकें. लेकिन ये एक पहलू है. दूसरा ये भी है कि हम कहने का तरीका सीख सकें. 'राग दरबारी' आपको क्या नया देगी ये बता पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन इतना तय है कि आपके कहने के तरीके को विस्तार देगी. आप इससे खुद को जोड़ सकेंगे. आप इस किताब के जरिये समाज मे व्याप्त समस्याओं को क़रीब से देखेंगे जो लिखे जाने के पचास साल से भी ज्यादा समय गुज़र जाने के बाद भी ख़त्म नहीं हो पाई.
श्रीलाल शुक्ल ने ईमानदारी से गांवों की वास्तविक छवि दिखाई है- आप भी इस किताब के सहारे एक कहानी के कैरेक्टर्स से रूबरू होइए.
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