BOOK REVIEW: तल्खियां - साहिर लुधियानवी
(Talkhiyan - Sahir Ludhianvi)
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर, ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा बताने की ज़रूरत नहीं कि ये कलाम साहिर लुधियानवी का है. एक नहीं कई ऐसे नगमे हैं जो साहिर ने लिखे और दुनिया ने उन नग्मों में एक नया नजरिया पाया. कहने वाले उन्हें गीतों का बादशाह कहते हैं और गीत भी ऐसे कि सारे मानकों पर खरे. स्त्री विमर्श हो या प्रगतिशीलता के दूसरे आयाम - सब साहिर के गीत अपने अंदर समाए रखते थे. सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी हो या एक आम भारतीय महिला की सबको साहिर ने बड़े साफगोई से लिखा. आज जब बॉलीवुड की लिरिक्स को लेकर सवाल उठते हैं. बिना सिर और पैर के गाने सुनाई देते हैं तो फिर साहिर की ही शरण मे जाने का मन होता है. साहिर कहते थे बिना जिये, देखे कोई हक़ीक़त नहीं लिख सकता. शायद यही कारण था कि साहिर अपने गीतों के कैरेक्टर्स ढूंढते थे.यूं तो साहिर के कई रूप हैं. वो आम ज़बान और आम लोगों के शायर हैं, वो इंकलाब के भी शायर हैं. साहिर ने ही लिखा था कि
मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हम्जिन्स, राधा की बेटी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं?
ज़रा इस मुल्क़ के रहबरों को बुलाओ
ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं?
और मोहब्बत के गीतों के तो साहिर उस्ताद ही हैं. लेकिन प्रेमिका की अनुमति के साथ.
हज़ार ख़्वाब हक़ीक़त का रूप ले लेंगे,
मगर ये शर्त है कि तुम मुस्करा के हाँ कह दो साहिर का प्रेम ये है. साहिर का लिखा पाच्य है. बड़ी बात कहने को उन्हें भारी भरकम शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती. शायद इसीलिए वो गीतकार के तौर पर मुक़म्मल भी हैं.
पहली किताब जिससे साहिर की पहचान में चार चांद लगे वो थी 'तल्खियां'. तल्ख़ियां साहिर लुधियानवी की सबसे पहली किताब थी जिसमें क़रीब 67 गीत और ग़ज़लें हैं।
बचपन से लेकर जवानी तक जीवन में आईं तल्खियों को उन्होंने पहले गीतों-ग़ज़लों का रूप दिया और फिर किताब में. वो कहते भी तो हैं कि-
दुनिया ने तर्जुबात-ओ-हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूं मैं.
वैसे तो साहिर ने शायरी बहुत पहले से शुरू कर दी थी और लोग इसे पसन्द भी करने लगे थे, लेकिन उनकी अलग पहचान 'तल्ख़ियां' के प्रकाशन से ही बनी. उर्दू में लिखी यह किताब बहुत लोकप्रिय हुई. बाद में फिर इसे राजकमल प्रकाशन ने हिंदी में भी छापा. 'तल्खियां' के इस नए संस्करण को पढ़ने का मज़ा आप भी ज़रूर उठाना चाहेंगे.
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