द्रविड़-द नाइस गाइ हू फिनिश्ड फर्स्ट :- देवेन्द्र प्रभुदेसाई
(Dravid - The Nice Guy Who Finished First :- Devendra Prabhudesai)
राहुल द्रविड़ की पत्नी विजेता द्रविड़ ने कई बार अपने इंटरव्यू में कहा है कि द्रविड़ खुद की तारीफ़ या ख़ुद के बारे ने बात करने को लेकर सहज नहीं रहते। आगे उन्होंने कहा कि शादी से पहले राहुल द्रविड़ एक बार मेरे घर खाना खाने आए थे।उस दौरान कभी नहीं लगा कि वे भारतीय क्रिकेट टीम के स्टार हैं. वो अपने बारे में कुछ बोल ही नहीं रहे थे, वे क्रिकेट से ज़्यादा मेरी मेडिकल की पढ़ाई और मेरी इंटर्नशिप के बारे में जानना चाहते थे. राहुल हमेशा से दूसरों के काम और उन्हें महत्व देने वाले व्यक्ति हैं खुद को बहुत महत्व देने में वो यकीन नहीं रखते।
2004 में इस खिलाड़ी को जब पदम् श्री मिला तब उन्हें अखबारों ने हीरो कहा। इस खिलाड़ी को इस से भी आपत्ति थी। विजेता के अनुसार द्रविड़ ने कहा कि और भी लोग हैं जो बहुत ज़रूरी काम कर रहे हैं। उन्हें हीरो कहना चाहिए।
राहुल के बारे में कहा जाता है कि वो पर्दे के पीछे रह कर अपना काम करने में ज्यादा यकीन रखते हैं. ऐसे लोग ऐसे खिलाड़ी और ऐसे हीरोज़ को फिर हम भी कम ही जान पाते हैं. हालांकि जानना सब चाहते हैं. कौन नहीं चाहेगा कि अपने सुपरस्टार की ज़िंदगी के बारे में उसे सब पता हो. तो राहुल द्रविड़ की ज़िंदगी कैसी बीती और उनके राहुल द्रविड़ बनने की कहानी जानने का एक उपाय ले आए हैं हम.
देवेन्द्र प्रभुदेसाई ने राहुल द्रविड़ की बायोग्राफी लिखी है. नाम है ' द्रविड़-द नाइस गाइ हू फिनिश्ड फर्स्ट'.
किताब में राहुल द्रविड़ के राहुल द्रविड़ बनने से लेकर और दीवार कहे जाने तक का सफर है. उनके जीवन की छोटी, मोटी बड़ी जो भी घटनाएं हैं उन्हें देवेन्द्र सरदेसाई ने क्रम में
सजा दिया है.
ये किताब उस महान खिलाड़ी को ट्रिब्यूट ही है जिसने प्रशंसा पर गर्वित होने से इनकार किया. जो चालीस साल की उम्र में भी उतनी ही मेहनत से काम करता है जितना वो 16 साल में करता था.
किताब में राहुल द्रविड़ की बतौर कप्तान, बतौर खिलाड़ी उपलब्धियों का ज़िक्र है. उनकी ख़ुद से ही की गई लड़ाइयों का ज़िक्र है. मुश्किल दिनों में द्रविड़ ने खुद को कैसे सम्हाला, इसका जिक्र है. इसके साथ ही किताब में राहुल द्रविड़ के शारीरिक, मानसिक और क्रिकेट के तकनीकी विशेषताओं के बारे में भी बताया है जिन्होंने राहुल को 'द वॉल' बनाया. उनके निजी जिंदगी की कहानी भी ये किताब उतने ही ईमानदारी से कहती है.
राहुल द्रविड़ की कहानी को फिर से सुनाने के इस प्रयास में लेखक ने द्रविड़ के सीनियर्स, टीम के साथियों और यहां तक कि विरोधियों की भी यादों का सहारा लिया है, उनसे बात की. इसलिए किताब में अलग-अलग पहलुओं से कई बार कहानी चलती दिखती है. फिर आख़िर में कुछ बेहतरीन तस्वीरें हैं, जो वास्तव में, भारत के सर्वकालिक महानों में से एक की इस खिलाड़ी की प्रतिभा को दिखाती हैं.
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