फ़ेह्रिस्त
1 मज़्कूर तिरी बज़्म में किस का नहीं आता
2 वो कौन है जो मुझ प तअस्सुफ़ नहीं करता
3 नाला इस शोर से क्यों मेरा दुहाई देता
4 लिखये उसे ख़त में कि सितम उठ नहीं सकता
5 नाला है उनसे बयाँ दर्द-ए-जुदाई करता
6 हम हैं और साया तिरे कूचे की दीवारों का
7 पानी तबीब दे है हमें क्या बुझा हुआ
8 नाम मन्ज़ूर है तो फ़ैज़ के अस्बाब बना
9 हो तू आ’शिक़ सोच कर उस दुशमन-ए-ईमान का
10 कोह के चश्मों से अश्कों को निकलते देखा
11 मैं हमेशा आ’शिक़-ए-पेचीदा-मूयाँ1 ही रहा
12 नाला जब दिल से चला सीने में फोड़ा अटका
13 दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया
14 मैं कहाँ संग-ए-दर-ए-यार से टल जाऊँगा
15 उसे हम ने बहुत ढूँडा न पाया
16 माल जब उस ने बहुत रद्द-ओ-बदल में मारा
17 नाम यूँ पस्ती में बाला-तर हमारा हो गया
18 बड़े मूज़ी को मारा नफ़्स-ए-अम्मारा को गर मारा
19 आँखें मिरी तल्वों से वो मल जाए तो अच्छा
20 सुर्मा है सफ़्फ़ाक शोहरा है निगाह-ए-यार का
21 हर गाम पर रखे है वो ये होश-ए-नक़्श-ए-पा
22 जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
23 उनसे कुछ वस्ल का ज़िक्र अब नहीं लाना अच्छा
24 तुम चलो रख कर जो मेरा दीदा-ए-तर ज़ेर-ए-पा
25 मिरे ताले’ में है क्या काम ऐ गर्दूं सितारे का
26 बरसों हो हिज्र, वस्ल हो गर एक दम नसीब
27 दिल इ’बादत से चुराना और जन्नत की तलब
28 मा’लूम जो होता हमें अन्जाम-ए-मोहब्बत
29 है वो आज़ार-ए-मोहब्बत से दिल-ए-ज़ार को रन्ज
30 फ़ुर्क़त की रात जी चुके हम ता ज़मान-ए-सुब्ह
31 ठहरी है उनके आने की याँ कल प जा सलाह
32 क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बा’द
33 मुज़्दा-ए-क़त्ल है उस अ’ह्द-शिकन का काग़ज़
34 तिफ़्ल-ए-अश्क ऐसा गिरा दामान-ए-मिज़्गाँ छोड़ कर
35 मैं वो मज्नूँ हूँ जो निकलूँ कुन्ज-ए-ज़िन्दाँ छोड़ कर
36 बुलबुल हूँ सेह्न-ए-बाग़ से दूर और शिकस्ता-पर
37 बादाम दो जो भेजे हैं बटुवे में डाल कर
38 दम ज़ो’फ़ से उलटता है आ कर दहन के पास
39 सब मज़ाहिब में यही है नहीं इस्लाम में ख़ास
40 जो खुल कर उनका जूड़ा बाल आएँ सर से पाँवों तक
41 फँसा है हल्क़ा-ए-गेसू-ए-ताबदार में दिल
42 पाबन्द जूँ दुख़ाँ हैं परेशानियों में हम
43 गर तिरा नूर नहीं चश्म में क्या है इसमें
44 अ’न्क़ा की तरह ख़ल्क़ से उ’ज़्लत-गुज़ीं हूँ मैं
45 वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
46 गुज़रती उ’म्र है यूँ दौर-ए-आस्मानी में
47 मय मिला कर साक़ियान-ए-सामरी-फ़न आब में
48 मैं हूँ वो ख़िश्त-ए-कुहन मुद्दत से इस वीराने में
49 है जी मैं अपने ग़र्रा-ए-जौहर को तोड़ दूँ
50 सीने से जो मैं आह-ए-दिल-ए-तंग निकालूँ
51 मज़्मून-ए-पेच-ओ-ताब की ताब-ए-रक़म नहीं
52 इस गुलिस्तान-ए-जहाँ में क्या गुल-ए-इश्रत नहीं
53 हाँ तअम्मुल दम-ए-नावक-फ़िगनी ख़ूब नहीं
54 बलाएँ आँखों से उनकी मुदाम लेते हैं
ग़ज़लें
1
मज़्कूर1 तिरी बज़्म2 में किस का नहीं आता
पर ज़िक्र3 हमारा नहीं आता नहीं आता
1 चर्चा 2 महफ़िल 3 चर्चा
क्या जाने उसे वह्म1 है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता
1 शंका, संदेह
हम रोने प आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें
शबनम1 की तरह से हमें रोना नहीं आता
1 ओस
दुनिया है वो सय्याद1 कि सब दाम2 में उसके
आ जाते हैं लेकिन कोई दाना3 नहीं आता
1 शिकारी 2 जाल 3 ज्ञानी, दाना
मरने का मज़ा वो है तिरे कूचे1 में क़ातिल
जाता है वहाँ कोई तो जीता नहीं आता
1 गली
बेजा1 है दिला2 उसके न आने की शिकायत
क्या कीजेगा, फ़रमाइए3, अच्छा नहीं आता
1 अनुचित 2 ऐ दिल 3 कहिए
साथ उसके हैं हमसाए1 के मानिन्द2 वलेकिन3
इस पर भी जुदा हैं कि लिपटना नहीं आता
1 पड़ोसी 2 की तरह 3 लेकिन
जाती रहे ज़ुल्फ़ों की लटक दिल से हमारे
अफ़्सोस कुछ ऐसा हमें लटका नहीं आता
क़िस्मत ही से लाचार हूँ ऐ ‘ज़ौक़’ वगर्ना1
सब फ़न2 में हूँ मैं ताक़3 मुझे क्या नहीं आता
1 नहीं तो 2 कला 3 दक्ष
2
वो कौन है जो मुझ प तअस्सुफ़1 नहीं करता
पर मेरा जिगर देख कि मैं उफ़ नहीं करता
1 अफ़्सोस, दुख प्रकट करना
क्या क़ह्र1 है वक़्फ़ा2 है अभी आने में उसके
और मिरा जाने में तवक़्क़ुफ़4 नहीं करता
1 प्रकट 2 देर 3 जान 4 देर
पढ़ता नहीं ख़त ग़ैर1 मिरा वाँ2 किसी उ’न्वाँ3
जब तक कि वो मज़्मूँ4 में तसर्रुफ़5 नहीं करता
1 रक़ीब, मा’शूक़ का अन्य आ’शिक़ 2 वहाँ 3 तरह, शीर्षक 4 लेख 5 हेर-फेर
दिल फ़क़्र1 की दौलत से मिरा इतना ग़नी2 है
दुनिया के ज़र3-ओ-माल प मैं तुफ़4 नहीं करता
1 फ़क़ीरी, माया-मोह से दूर होना 2 निर्लिप्त, धनी 3 दौलत 4 धिक्कार
ता1 दिल न करे साफ़ मय-ए-साफ़2 से सूफ़ी
कुछ सूद-ओ-सफ़ा3 इ’ल्म-ए-तसव्वुफ़4 नहीं करता
1 जब तक 2 अध्यात्म की शराब 3 फ़ायदा और पवित्रता 4 अध्यात्म का ज्ञान
ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़1 में है तक्लीफ़2 सरासर3
आराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता
1 औपचारिकता, दिखावा 2 कष्ट 3 पूरी तरह
3
नाला1 इस शोर से क्यों मेरा दुहाई देता
ऐ फ़लक2 गर तुझे ऊँचा न सुनाई देता
1 फ़र्याद, रोना 2 आस्मान
देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
आस्माँ आँख के तिल में है दिखाई देता
रविश-ए-अश्क1 गिरा देंगे नज़र से इक दिन
है इन आँखों से यही मुझको दिखाई देता
1 आँसू की तरह
पन्जा-ए-मेह्र1 को भी ख़ून-ए-शफ़क़2 में हर रोज़3
ग़ोते क्या क्या है तिरा दस्त-ए-हिनाई4 देता
1 सूरज की किरनें 2 आस्मान की लालिमा 3 दिन 4 मेंहदी लगा हाथ
कौन घर आइने के आता अगर वो घर में
ख़ाकसारी1 से न जारूब2-ए-सफ़ाई देता
1 विनम्रता 2 झाड़ू
ख़ूगर-ए-नाज़1 हूँ किस का कि मुझे साग़र-ए-मय2
बोसा-ए-लब3 नहीं बे-चश्म-नुमाई4 देता
1 अभिमान का आ’दी 2 शराब का प्याला 3 होठों का चुंबन 4 आँखें तरेरे बिना
देख गर देखना है ‘ज़ौक़’ कि वो पर्दा-नशीं1
दीदाः-ए-रौज़न-ए-दिल2 से है दिखाई देता
1 पर्दे में रहने वाली / वाला 2 आँख जैसा दिल का झरोखा
4
लिखये उसे ख़त में कि सितम1 उठ नहीं सकता
पर ज़ो’फ़2 से हाथों में क़लम उठ नहीं सकता
1 अत्याचार 2 कमज़ोरी
आती है सदा-ए-जरस-ए-नाक़ा-ए-लैला1
सद-हैफ़2 कि मज्नूँ का क़दम उठ नहीं सकता
1 लैला की ऊँटनी की घंटियों की आवाज़ 2 बहुत दुख की बात है
जूँ दाना-ए-रूईदा-तह-ए-संग1, हमारा
सर ज़ेर-ए-गराँबार-ए-अलम2 उठ नहीं सकता
1 पत्थर तले दबा उगा हुआ दाना 2 दुखों के बोझ तले
जो दाग़-ए-मआ’सी1 है मिरे दामन-ए-तर में
जूँ हर्फ़-ए-सर-ए-काग़ज़-ए-नम2 उठ नहीं सकता
1 पापों का दाग़ 2 भीगे काग़ज़ पर लिखा अक्षर
क्यो इतना गराँ-बार1 है जो रख़्त-ए-सफ़र2 भी
ऐ राहरव-ए-राह-ए-अ’दम3 उठ नहीं सकता
1 बोझल 2 सफ़र का सामान 3 नश्वरता की राह का यात्री
पर्दा दर-ए-का’बा1 से उठाना तो है आसाँ2
पर पर्दा-ए-रुख़्सार-ए-सनम3 उठ नहीं सकता
1 का’बे का दरवाज़ा 2 आसान 3 मूर्ति / मा’शूक़ के गाल का पर्दा
दुनिया का ज़र1-ओ-माल किया जम्अ’2 तो क्या ‘ज़ौक़’
कुछ फ़ायदा बे-दस्त-ए-करम3 उठ नहीं सकता
1 दौलत 2 इकट्ठा 3 कृपाशील हाथ के बिना
5
नाला1 है उनसे बयाँ दर्द-ए-जुदाई करता
काम क़ासिद2 का है ये तीर-ए-हवाई3 करता
1 फ़र्याद, रोना 2 संदेश वाहक 3 हवाई तीर
बैठ रहिए तो कफ़स1 है अ’जब आराम की जा2
पर है बेचैन हमें शौक-ए-रिहाई3 करता
1 पिंजरा, क़ैदख़ाना 2 जगह 3 मुक्ति की चाहत
बन्द आँखें किए जाता है किधर तू कि तुझे
है तिरा नक़्श-ए-क़दम1 चश्म-नुमाई2 करता
1 पद चिन्ह 2 सावधान
सोज़-ए-दिल1 कौन बुझाए कि नहीं चश्म2 में अश्क3
पर है कुछ ख़ून-ए-जिगर4 काररवाई5 करता
1 दिल की आग 2 आँख 3 आँसू 4 दिल का ख़ून 5 काम दिखाना
नहीं गोश-ए-शुन्वा1 बाग़-ए-जहाँ2 में ग़ाफ़िल3
वर्ना4 हर बर्ग5 है याँ नग़्मा-सराई6 करता
1 सुनने वाला कान 2 संसार रूपी बाग़ 3 नासमझ 4 नहीं तो 5 पत्ता 6 गीत गाना
‘ज़ौक़’ उस पा-ए-निगारीं1 का जो है वस्फ़-निगार2
अश्क-ए-ख़ूनीं3 से है काग़ज़ को हिनाई4 करता
1 सजा हुआ पाँव 2 प्रशंसा लिखने वाला 3 ख़ून भरे आँसू 4 मेंहदी जैसा
6
हम हैं और साया1 तिरे कूचे2 की दीवारों का
काम जन्नत3 में है क्या हमसे गुनहगारों4 का
1 छाया 2 गली 3 स्वर्ग 4 पापियों
मुहतसिब1 दुश्मन-ए-जाँ गर्चे2 है मय-ख़्वारों3 का
दीजे इक जाम4 तो है यार अभी यारों का
1 धर्म अधिकारी 2 यद्दपि 3 शराब पीने वाले 4 प्याला
चर्ख़1 पर बैठ रहा जान बचा कर ई’सा2
हो सका जब न मुदावा3 तिरे बीमारों का
1 आस्मान 2 जो मुर्दों को जिला देते थे 3 इ’लाज
क्यों न हर तार में सौ दिल हों गिरफ़्तार कि ज़ुल्फ़
जेलख़ाना है मोहब्बत के गिरफ़्तारों का
‘ज़ौक़’ पेचीदा1 कहाँ ज़ुल्फ़ है उस काफ़िर2 की
है मगर नामा-ए-आ’माल3 सियहकारों4 का
1 पेचदार, उलझी हुई 2 ईमान लूटने वाला 3 कर्म पत्र 4 पापियों
बे-सियाही न चला काम क़लम का ऐ ‘ज़ौक़’
रू-सियाही1 सर-ओ-सामाँ2 है सियहकारों का
1 मुंह काला होना 2 पूँजी
7
पानी तबीब1 दे है हमें क्या बुझा2 हुआ
है दिल ही ज़िन्दगी से हमारा बुझा हुआ
1 चिकित्सक 2 मंत्र पढ़ा हुआ
कहते थे आफ़्ताब-ए-क़यामत1 जिसे तो वो
निकला चराग़-ए-दाग़-ए-दिल अपना बुझा हुआ
1 प्रलय के दिन का सूरज
फिर आह-ए-सर्द दिल में हुई मेरे मौजज़न1
तो फिर भड़क उठा ये फ़तीला2 बुझा हुआ
1 लहर लेना 2 चराग़ जलाने की बत्ती, फ़लीता
पहले निशाना करता वो बन्दूक़ का मुझे
पर था मिरे नसीब से तोड़ा1 बुझा हुआ
1 जिससे बन्दूक़ दाग़ी जाती थी
जल कर अगर बुझे भी दिल-ए-सोख़्ता1 मिरा
तो फिर जलेगा जैसे कि कोला1 बुझा हुआ
1 जला हुआ दिल 2 कोयला
हम आप जल बुझे मगर इस दिल की आग को
सीने में हमने ‘ज़ौक़’ न पाया बुझा हुआ
8
नाम1 मन्ज़ूर2 है तो फ़ैज़3 के अस्बाब4 बना
पुल बना चाह5 बना मस्जिद-आे-तालाब बना
1 प्रसिद्धि 2 चाहना, स्वीकार 3 भलाई 4 सामान 5 कुवाँ
चश्म-ए-मख़्मूर1 का हूँ किसकी मैं कुश्ता2 या-रब3
कि मिरी ख़ाक4 से भी जाम-ए-मय-ए-नाब5 बना
1 मस्त आँख 2 मारा हुआ 3 ऐ ख़ुदा 4 मिट्टी 5 ख़ालिस शराब का प्याला
हाय पछताता हूँ क्यों उससे किया मैंने बिगाड़
कि जो इस तर्ह से अब फिरता हूँ बेताब1 बना
1 बेचैन
सुर्मा-ए-चश्म-ए-अ’ज़ीज़ाँ1 न बना तू नादाँ2
क्या बना ख़ाक-ए-ग़ुबार-ए-दिल-ए-अहबाब3 बना
1 अपने प्यारों की आँख का सुर्मा 2 नासमझ 3 दोस्तों के दिल का मैल
तू अगर आप1 को देखे तो मिरी आँख से देख
अपना आइना मिरा दीदा-ए-पुर-आब2 बना
1 ख़ुद 2 आँसू भरी आँख
आयत-ए-सज्दा1 है हक़2 में मिरे हर जौहर-ए-तेग़3
है ख़म-ए-तेग़4 फ़क़त क्या ख़म-ए-महराब बना
1 क़ुरान की वो आयत जिसे पढ़ कर सर झुकाते हैं 2 पक्ष में 3 तल्वार की तेज़ी 4 तल्वर का घुमाव 5 केवल
जब किया इ’श्क़ के दरिया ने तलातुम1 ऐ ‘ज़ौक़’
तो कहीं मौज2 बनी और कहीं गिर्दाब3 बना
1 बाढ़ 2 लहर 3 भँवर