Look Inside
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
share-Icon
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)
Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)

Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)

Regular price ₹ 535
Sale price ₹ 535 Regular price ₹ 595
Unit price
Save 10%
10% off
Size guide
Icon

Pay On Delivery Available

Load-icon

Rekhta Certified

master-icon

7 Day Easy Return Policy

Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)

Vilayat Ke Ajoobe (Paperback)

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Rekhta-Certified

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

किताब के बारे में 18वीं शताब्दी मुग़ल साम्राज्य के पतन के साथ-साथ यूरोपीय शक्तियों विशेष रूप से अंग्रेज़ों के उत्थान की शताब्दी है। पतन और उत्थान की यह सदी हिन्दुस्तान के सामंती ढाँचे के टूटने और उपनिवेश विस्तार की भी सदी मानी जाती है। उपनिवेशवादी षड्यंत्र और विस्तारवादी नीति से पहली बार इस महाद्वीप का सामना हो रहा था। हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार सामाजिक ढाँचा छिन्न-भिन्न होने की प्रक्रिया आरम्भ हो गई थी। यह वही समय था जब मिर्ज़ा शेख़ एतेसामुद्दीन ने अपना सफ़रनामा ‘शिगुर्फ़नामा-ए-विलायत’ फारसी में लिखा था। यह यात्रा संस्मरण संभवतः किसी पहले हिन्दुस्तानी द्वारा लिखा गया यूरोप का पहला यात्रा संस्मरण है। इस सफ़रनामे का अध्ययन कई दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मिर्ज़ा शेख़ एतेसामुद्दीन ने यूरोप की यात्रा 1766 यानी राजा राममोहन राय से लगभग 65 साल पहले की थी। जबकि अब तक यही माना जाता था कि राजा राममोहन राय पहले पढ़े-लिखे व्यक्ति थे जिन्होंने यूरोप की यात्रा की थी। मिर्ज़ा प्रसिद्ध शायर मीर तकी मीर के समकक्ष हैं। 18वीं शताब्दी में जिस प्रकार मीर ने दिल्ली के उजड़ने का दर्द बयान किया है उसी प्रकार के अक्स इस सफ़रनामे में भी देखे जा सकते हैं। अपने धर्म और संस्कृति के प्रति दृढ़ विश्वास होने के बावजूद मिर्ज़ा साहब का अंग्रेज़ी संस्कृति से प्रभावित होने वाला प्रसंग हैरत पैदा करता है। इसके अतिरिक्त धर्म को लेकर वाद-विवाद प्रसंग भी बहुत रोचक और मज़ेदार है । दोनों संस्कृतियों में श्रेष्ठता का भाव भी देखने को मिलता है।

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 5% off your first order.


You can also Earn up to 10% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

क्रम

1.    प्रस्तावना - 9
2.    हम्द और नात – 17
3.    पुस्तक लेखन का कारण – 19
4.    व्यक्तिगत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – 21
5.    समुद्र और समुद्री यात्रा - 42
6.    मॉरीशस और दूसरी जगहें - 51
7.    केप टाउन का चक्कर - 59
8.    अन्त में विलायत - 67
9.    लन्दन - 73
10.    लन्दन का संग्रहालय - 82
11.    ऑक्सफ़ोर्ड का मदरसा - 90
12.    स्कॉटलैंड - 96
13.    कुछ हॉलैंड के बारे में - 102
14.    यूरोपीय इतिहास और धर्म के बारे में - 106
15.    धर्म के बारे में कुछ और - 118
16.    अंग्रेज़ों की राजनीति - 128
17.    शिक्षा और जीवन पद्धति - 145
18.    अमेरिका जिसको नई दुनिया कहते हैं - 157
19.    'विलायती विविधता' - 160
20.    अनुवाद के बारे में - 169
21.    अनुक्रमणिका - 172

प्रस्तावना

महान मुग़ल साम्राज्य की पतन गाथा औरंगज़ेब की मृत्यु (1707) के बाद ही शुरू
हो गई थी। 18वीं शताब्दी मुग़ल साम्राज्य के पतन के साथ-साथ यूरोपीय शक्तियों,
विशेष रूप से ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी' के उत्थान की शताब्दी है । पतन और उत्थान
की यह शताब्दी हिन्दुस्तान के सामन्ती ढाँचे के टूटने और उपनिवेश विस्तार की
शताब्दी भी है। हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार एक यूरोपीय शक्ति स्थापित
हो रही थी। उपनिवेशवादी षड्यंत्रों और विस्तारवादी नीति से पहली बार इस
महाद्वीप का सामना हो रहा था । इस संक्रमण काल ने शताब्दियों से यथावत् चले
आ रहे हिन्दुस्तान के सामाजिक ढाँचे को छिन्न-भिन्न करने की प्रक्रिया प्रारम्भ
कर दी थी। यह वही युग था जिसमें मिर्ज़ा शेख़ एतेसामुद्दीन (1730-1800 ई.) ने
अपना सफ़रनामा ‘शिगुर्फ़नामा-ए-विलायत' लिखा था। यह यात्रा संस्मरण किसी
हिन्दुस्तानी द्वारा लिखा गया यूरोप का पहला यात्रा संस्मरण है। इस सफ़रनामे का
अध्ययन कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इसके माध्यम से यह जानकारी मिलती है
कि 18वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान के लोग यूरोपीय प्रभाव के प्रति कितने सचेत थे।
सफ़रनामे के लेखक ने हिन्दुस्तानी दृष्टिकोण से यूरोपीय समाज को जाँचने और
परखने का काम भी किया है। सफ़रनामा कई ऐतिहासिक प्रसंगों का आँखों देखा
विवरण भी प्रस्तुत करता है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि मिर्ज़ा शेख एतेसामुद्दीन
ने यूरोप की यात्रा (1766-69) राजाराम मोहन राय की यूरोप यात्रा (1831-33)
से पैंसठ साल पहले की थी । राजाराम मोहन राय से पहले दो और हिन्दुस्तानी भी
यूरोप जाने का जोखिम उठा चुके थे। पटना के शेख़ दीन मोहम्मद (1759-1851)
अपने अंग्रेज़ संरक्षक गॉडफ्रे इवान बेकर के साथ 1782 में यूरोप गए थे, जहाँ
एक गोरी कन्या से उनका प्रेम भी हो गया था। उस समय के क़ानून के अनुसार
कोई ग़ैर क्रिश्चियन किसी क्रिश्चियन से शादी नहीं कर सकता था । इसलिए अपने

हम्द और नात

सारी प्रशंसा विश्व की रचना करने वाले के लिए है जो सर्वव्यापी
है, जिसका भेद जानने में दुनिया के बड़े-बड़े दार्शनिक और
बुद्धिजीवी भी असमर्थ रहे। यह नीला आकाश उस सर्वशक्तिमान
की असीम अनुकम्पा का एक अंशमात्र है। मनुष्य का समस्त
ज्ञान भी उसके आगे पानी के बुलबुले की भाँति है। साथ ही,
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की प्रशंसा अनिवार्य है, जिनके द्वारा
इनसानियत को सच्चाई की रौशनी (ज्ञान) प्राप्त हुई। आप दुनिया
के लिए रहमत बनाकर भेजे गए, नि:संदेह आप अन्तिम ईशदूत
(रसूल) और सभी ईशदूतों में श्रेष्ठ हैं। अब ज़रूरी यह लगता
है कि मैं हज़रत मुहम्मद को सलाम भेजने के बाद अपने मुख्य
उद्देश्य की ओर बढूँ तथा अपना हाल बयान करूँ।

स्कॉटलैंड

सर्दियों में कैप्टन स्विंटन के साथ मैं ऑक्सफ़ोर्ड से स्कॉटलैंड के लिए रवाना हुआ।
यही वह पहला मौक़ा था जब मुझे बर्फ़ देखने को मिली। यह बिलकुल होली में खेले.
जाने वाले अबीर की तरह थी। फ़र्क़ इतना ही था कि इसका रंग एकदम सफ़ेद था।
आसमान से यह ऐसे गिरती थी जैसे धूल के कण गिर रहे हों और ज़मीन, पहाड़,
मकान, पेड़, झाड़ी, नदी और झील पर पिघले हुए मोम की तरह फैल जाती थी।
ठंड बहुत तेज़ होने पर नदियों, झीलों और नहरों में पानी सख़्त बर्फ़ की तरह
जम जाता था जो संगमरमर या शीशे की तरह चिकना और सफ़ेद होता था । यह
बर्फ़ पाँच हाथ से लेकर दस हाथ नीचे तक जमी रहती थी, जिसकी वजह से पैदल
चलने वालों, घोड़ागाड़ियों या सामान लदी गाड़ियों और यहाँ तक कि हाथियों का
इस पर चलना भी आसान होता था ।
कभी-कभी इतना ज़बर्दस्त हिमपात होता था कि सड़कों और गलियों में रातभर
में ही घुटनों तक बर्फ़ जम जाती थी। इसके बाद सुबह-सुबह मकान मालिक लोग
कुदाल और बेल्चा लेकर अपने नौकरों को घर के सामने की बर्फ़ साफ़ करने के
काम में लगा देते थे। देहाती इलाक़ों में खाइयों और गड्ढों में बर्फ़ इस तरह से जमी
रहती थी कि ज़मीन से उसका फ़र्क़ कर पाना मुश्किल था। इसकी वजह से उन
इलाक़ों में यात्रा करना ख़तरनाक हो जाता था। जो आम सड़कें हैं, उन्हें तो गाड़ियों
के चलने से पड़ी लकीरों से पहचाना जा सकता था। अगर किसी कारणवश या
ग़लती से या नशे की हालत में कोई व्यक्ति सड़क और गड्ढे में पहचान नहीं कर
पाता तो उसे मुसीबत झेलनी पड़ती थी। बहुत ज़्यादा बर्फ़ पड़ने पर सड़कें, गड्ढे
और खेत सफ़ेद शीशे की चादर से ढक जाते थे, जिसकी वजह से कोई निशान न
होने के कारण गाड़ियाँ, घोड़े आदि गड्ढों में गिर जाते और उनकी मौत हो जाती।
उस साल ऑक्सफ़ोर्ड के निकट इस तरह की एक दुर्घटना हुई जब तेरह आदमियों

Customer Reviews

Based on 1 review
0%
(0)
100%
(1)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
V
Vijay Kumar Verma
संतोष जनक

अनुवाद के बारे में
ये किताब के आखरी पन्नों पर दिया गया है। यदि इसे पहले क्रम में रखें तो मेरे ख्याल से ठीक होगा। पाठकों को समझने में सुविधा होगी।
शुक्रिया
विजय कुमार वर्मा
गोंडा

Related Products

Recently Viewed Products