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पंडित दीनदयालजी ने भारतीय जीवन दर्शन का गहन अध्ययन कर 'एकात्म मानववाद' प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने पाश्चात्य से मानववाद और भारतीय संस्कृति से एकात्मता ग्रहण किया। अतः कहा जा सकता है कि पाश्चात्य मानववाद के भारतीयकरण की प्रक्रिया की फलश्रुति एकात्म मानववाद है।भारतीय संस्कृति समाजवादी नहीं है। वह किसी व्यक्ति या पुरुष को अंतिम प्रमाण नहीं मानती। इसका वैशिष्ट्य है वादे वादे जायते तत्त्वबोधः। तत्त्व का बोध विचारविमर्श से होता है। इसीलिए भारतीय परंपरा उपनिषदों और दर्शनों की परंपरा है। भारतीय संस्कृति पर-मत सत्कारवादी है। दूसरे के मत के प्रति असहिष्णुता अमरप्रियता है। भारत का विचार है एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति अर्थात् एक ही सत्य को विद्वान् लोग अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत करते हैं। भारतीय संस्कृति की अवधारणा चिति मूलक है। भारतीय संस्कृति जीवन का केंद्र राज्य को नहीं धर्म व संस्कृति को मानती है। भारतीय संस्कृति विश्ववादी, समन्वयवादी और संस्कारवादी है। भा��तीय संस्कृति यज्ञामयी है, यज्ञ का भाव है।एकात्म मानववाद समग्रता में सभी चीजों का विचार करता है। एकात्म मानववाद को सरल और सहज भाषा में इस विचार के अनेक पोषकों ने अपने शब्दों में इस पुस्तक में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। एकात्म मानववाद को संपूर्णता में, भारतीय संस्कृति में, अपने जीवनदर्शन में, समन्वय और सुगमता के साथ पूरकता में समझाने का प्रयास लेखकों द्वारा किया गया है। यह कृति एकात्म मानववाद को आमजन के लिए सरल और सुबोध प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयास है।____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमसंपादक की कलम से —Pgs. 51. सादगी की प्रतिपूर्ति --राजेंद्र सिंह 'रज्ज्‍ाू भैया' —Pgs. 112. वे एक समर्पित कार्यकर्ता थे --भाऊराव देवरस —Pgs. 143. घट टूटा, अमृत फूटा --हो.वे. शेषाद्रि —Pgs. 204. प्रसिद्धि पराङ्मुख थे दीनदयाल --जगदीश प्रसाद माथुर —Pgs. 265. साधारण सा दिखनेवाला, असाधारण महापुरुष --कुशाभाऊ ठाकरे —Pgs. 316. सरल भाषा-सरल विचार --राम नाईक —Pgs. 367. शब्द और कृति की एकात्मकता के सर्जक थे पंडितजी --हृदयनारायण दीक्षित —Pgs. 398. क्रांतिकारी आर्थिक चिंतन --महेश चंद्र शर्मा —Pgs. 459. भाषा-दृष्टि --देवेंद्र दीपक —Pgs. 5810. कुशल संगठक पं. दीनदयाल उपाध्याय --रघुनंदन शर्मा —Pgs. 6211. आर्थिक चिंतन --प्रभाकर श्रोत्रिय —Pgs. 6612. शाश्वत विचारों की गंगा लानेवाला भगीरथ --राजेंद्र शर्मा —Pgs. 7513. अर्थव्यवस्था का विकेंद्रीकरण : पं. दीनदयाल उपाध्याय --यशवंत अरगड़े —Pgs. 8214. एकात्म मानववाद : राजनीति का भारतीय दर्शन --गिरीश उपाध्याय —Pgs. 8915. एकात्म मानववाद के प्रणेता : पं. दीनदयाल उपाध्याय --रामभुवन सिंह कुशवाह —Pgs. 9916. देश की चिंता में डूबा एक दूरदृष्टा --राजेश सिरोठिया —Pgs. 10617. संस्कृति के संवाहक : पंडित दीनदयाल उपाध्याय --श्यामलाल चतुर्वेदी —Pgs. 11118. मध्य प्रदेश में पं. दीनदयाल उपाध्याय --मयंक चतुर्वेदी —Pgs. 11419. आज भी प्रासंगिक है, पं. उपाध्याय के विचारों की धरोहर --विनीता जायसवाल —Pgs. 12320. हर पहल, हर फैसला उनके नाम --मनोज कुमार —Pgs. 12921. एकात्म मानववाद : समावेशी विकास का दर्शन --अजय वर्मा —Pgs. 13222. विकास की आधारभूत संकल्पना --रंचना चितले —Pgs. 13523. एक विवेचन : एकात्म मानव-दर्शन --चंद्रप्रकाश वर्मा —Pgs. 13924. पं. दीनदयाल उपाध्याय व्यक्ति और कार्य --श्रीनिवास शुक्ल —Pgs. 14625. शुद्ध भारतीय विचारक --ओम नागपाल —Pgs. 15126. अमर हुतात्मा --ओमप्रकाश कुंद्रा —Pgs. 15427. एकात्म मानववाद : वैचारिक पृष्ठभूमि --यशवंत अरगरे —Pgs. 15928. श्रेष्ठ अर्थ चिंतक --पुष्पेंद्र वर्मा —Pgs. 16529. युगद्रष्टा --हरि मोहन शर्मा —Pgs. 17030. दीनदयाल उपाध्याय प्रसंग : राष्ट्र की आत्मा की पहचान --अंबाप्रसाद श्रीवास्तव —Pgs. 17331. गांधी, लोहिया और दीनदयाल --आर.एस. तिवारी —Pgs. 17832. आधुनिक भारतीय चिंतन में पं. उपाध्याय का योगदान --जगदीश तोमर —Pgs. 18533. राष्ट्रवाद के हामी --शैवाल सत्यार्थी —Pgs. 19134. वर्तमान संदर्भों में एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता —Pgs. 195

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