Vaad-Samvaad
Author | Ramesh Chandra Shah |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-8177213157 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1 |
Vaad-Samvaad
''...अनूठे शोधकर्ता और गांधी के सच्चे उत्तराधिकारी धर्मपाल की खोजों ने बखूबी दरशाया है कि किस तरह घोर पराधीनता के युग में तमाम जकड़बंदी और शरण के बावजूद हमारा समाज निःसत्त्व नहीं हुआ था। उसकी शैक्षिक और अन्न-जल संबंधी स्वावलंबी व्यवस्था भी जैसे-तैसे कायम रही आई थी। हाल के बरसों में अनुपम मिश्र और राजेंद्र सिंह सरीखे कर्मज्ञों ने भी इस खोज को आगे बढ़ाया है। सच्चा आत्मविश्वास पाने के लिए जाहिर है, हमें इस धारा को अपनाते हुए अपने कर्म और विचार की सही दिशा पकड़नी होगी।...''''...सवाल सिर्फ गांधी या श्री अरविंद के प्रति हमारे तथाकथित बौद्धिकों की उदासीनता का नहीं है। सवाल स्वयं इस 'बुद्धि' की स्वाधीनता और प्रामाणिकता का है। सवाल मानवता के भविष्य का है, जो धर्म-चेतना के बिना नहीं रह सकती, किंतु धर्मोन्माद से तथा उतनी ही मूल्यमूढ़ और सर्वग्रासी राजनीति से भी उबरना चाहती है।...''''...मुक्तिबोध को जो 'उदासी से पुती गायें' दिखाई दी थीं, क्या उनका सीधा संबंध निराला की इस कविता के 'मूक भाषा पशु सदृश' दीन-हीन कंकालों से ही नहीं है।...''''...हर वादी का यह स्वभाव है कि वे दूसरे को भी वादी के रूप में ही देख पाता है। वह नहीं सोचता कि वादी के ऊपर एक संवादी भी होता है। मैं वस्तुतः परंपरा-संवादी ही नहीं, नवनवोत्तरवादी-संवादी भी हूँ। परंपरा मुझे पीछे नहीं ले जाती, निरंतर आगे की ओर ठेलती है।...''
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