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Urdu Ki Aakhiree Kitab
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उर्दू में तेज़ निगारी (व्यंग्य) के जो बेहतरीन उदाहरण मौजूद हैं, उनमें इब्ने इंशा का अन्दाज़ सबसे अलहदा और प्रभाव में कहीं ज़्यादा तीक्ष्ण है। इसका कारण है उनकी यथार्थपरकता, उनकी स्वाभाविकता और उनकी बेतकल्लुफ़ी। उर्दू की आख़िरी किताब उनकी इन सभी ख़ूबियों का मुजस्सिम नमूना है।
...यह किताब पाठ्य-पुस्तक शैली में लिखी गई है और इसमें भूगोल, इतिहास, व्याकरण, गणित, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर व्यंग्यात्मक पाठ तथा प्रश्नावलियाँ दी गई हैं। इस ‘आख़िरी किताब’ जुम्ले में भी व्यंग्य है कि छात्रों को जिससे विद्यारम्भ कराया जाता है, वह प्राय: ‘पहली किताब’ होती है और यह ‘आख़िरी किताब’ है। इंशा का व्यंग्य यहीं से शुरू होता है और शब्द-ब-शब्द तीव्र होता चला जाता है।
इंशा के व्यंग्य में यहाँ जिन चीज़ों को लेकर चिढ़ दिखाई पड़ती है, वे छोटी-मोटी चीज़ें नहीं हैं। मसलन—विभाजन, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की अवधारणा, क़ायदे-आज़म जिन्ना, मुस्लिम बादशाहों का शासन, आज़ादी का छद्म, शिक्षा-व्यवस्था, थोथी नैतिकता, भ्रष्ट राजनीति आदि। और अपनी सारी चिढ़ को वे बहुत गहन-गम्भीर ढंग से व्यंग्य में ढालते हैं—इस तरह कि पाठक को लज़्ज़त भी मिले और लेखक की चिढ़ में वह ख़ुद को शामिल भी महसूस करे। Urdu mein tez nigari (vyangya) ke jo behatrin udahran maujud hain, unmen ibne insha ka andaz sabse alahda aur prbhav mein kahin zyada tikshn hai. Iska karan hai unki yatharthaparakta, unki svabhavikta aur unki betkallufi. Urdu ki aakhiri kitab unki in sabhi khubiyon ka mujassim namuna hai. . . . Ye kitab pathya-pustak shaili mein likhi gai hai aur ismen bhugol, itihas, vyakran, ganit, vigyan aadi vibhinn vishyon par vyangyatmak path tatha prashnavaliyan di gai hain. Is ‘akhiri kitab’ jumle mein bhi vyangya hai ki chhatron ko jisse vidyarambh karaya jata hai, vah pray: ‘pahli kitab’ hoti hai aur ye ‘akhiri kitab’ hai. Insha ka vyangya yahin se shuru hota hai aur shabd-ba-shabd tivr hota chala jata hai.
Insha ke vyangya mein yahan jin chizon ko lekar chidh dikhai padti hai, ve chhoti-moti chizen nahin hain. Maslan—vibhajan, hindustan aur pakistan ki avdharna, qayde-azam jinna, muslim badshahon ka shasan, aazadi ka chhadm, shiksha-vyvastha, thothi naitikta, bhrasht rajniti aadi. Aur apni sari chidh ko ve bahut gahan-gambhir dhang se vyangya mein dhalte hain—is tarah ki pathak ko lazzat bhi mile aur lekhak ki chidh mein vah khud ko shamil bhi mahsus kare.

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 Introduction

Page 5: भूमिका: अब्दुल बिस्मिल्लाह
Page 11: इंशाजी के नाम ख़त
Page 13: बाइसे- तहरीर आं कि (भूमिका इब्ने इंशा)
Page 17: एक दुआ
Page 17: हमारा मुल्क
Page 19: हमारा तुम्हारा खुदा बादशाह
Page 21: बरकाते हुकूमते गैर इंगलिशिया
Page 23: एक सबक जुगराफिये का
Page 25: पाकिस्तान
Page 26: भारत

तारीख

Page 31: तारीख़ के चन्द दौर
Page 37: रामायन और महाभारत
Page 37: रामायन
Page 39: महाभारत
Page 41: सिकन्दर-ए-आज़म
Page 45: ख़ानदान-ए-ग़ज़नवी से खानदान-ए-लोधी तक
Page 45: सुल्तान महमूद गजनवी
Page 50: खानदान-ए-गौरी
Page 50: ख़ानदान-ए-गुलामान (गुलाम वंश)
Page 52: खिलजी ख़ानदान
Page 52: तुगलक ख़ानदान
Page 54: लोधी ख़ानदान
Page 56: अहवाल ख़ानदान-ऐ-मुगलिया का
Page 56: बाबर
Page 58: हुमायूँ
Page 61: अकबर
Page 67: अकबर के नवरत्न
Page 75: जहाँगीर और बेबी नूरजहाँ
Page 77: एक ग़लतफहमी का इज़ाला
Page 77: शाहजहाँ और ताजमहल
Page 80: आलमगीर बादशाह
Page 82: सिराजुद्दीन ज़फ़र बहादुरशाह
Page 84: महाराजा रंजीतसिंह
Page 86: ठगी का इन्सेदाद कैसे हुआ
Page 88: एक सबक ग्रामर का
Page 95: इब्तेदाई हिसाब
Page 100: इब्तेदाई अल्ज़ब
Page 101: इब्तेदाई ज्योमेटरी

 इब्तेदाई साइंस

Page 111: माद्दे की किस्में

 दूसरी दफ़ा का ज़िक्र है

Page 123: चिड़ा और चिड़िया
Page 125: गुरु और चेले
Page 125: कछुआ और खरगोश

Page 129: प्यासा कौवा
Page 131: इत्तेफ़ाक में बरकत है

 बयान जानवरों का भैस

Page 135:भैस

Page 137: बकरी
Page 139: ऊँट
Page 141: आदमी
Page 143: शेर

 गिरदो-पेश (आसपास) की ख़बरें

Page 147: इल्म बड़ी दौलत है
Page 147: अख़बार
Page 151: कपड़वाले के यहाँ
Page 152: जूतेवाले के यहाँ
Page 154: खाने की चीजें
Page 154: मक्खन

वाला छठी मोरखा । 14.6.1971
मुहतरमी,
तस्लीम !
आपकी जदीद 2 उर्दू रीडर पर गहरा गौर व खोज़ किया गया । हमारी राय में यह तुलबा 4 को बाकी 566 दरसी कुतुब ' से बेनेयाज़ करने की एक ख़तरनाक कोशिश है।

ख़दशा ' है कि इसे पढ़कर उस्ताद तालिब-इल्म 7 और तालिब-इल्म उस्ताद
बन जायेंगे।

लिहाज़ा टैस्ट बुक बोर्ड इसे नामंजूर करने में मसर्रत 8 का इज़हार करता है ।

नेयाज़मन्द
मीर नसीम महमूद*
इब्ने इंशा साहब
चेयर मैन


*यह ख़त स्वयं इंशाजी का लिखा हुआ है।
1 तिथि
7. विद्यार्थी
2. आधुनिक
8. खुशी
3. विचार-विमर्श
4. विद्यार्थियों
5. पाठ्य पुस्तकों
6. आशंका

तारीख़ के चन्द दौर

राहों में पत्थर |
जलसों में पत्थर ।
सीनों में पत्थर ।
अक़लों में पत्थर |
आस्तानों में पत्थर |
दीवानों में पत्थर |
पत्थर ही पत्थर ।
यह ज़माना पत्थर का ज़माना कहलाता
देगें ही देगें।
चमचे ही चमचे ।
सिक्के ही सिक्कं ।
है
सोना ही सोना ।
पैसे ही पैसे ।
चाँदी ही चाँदी ।
यह ज़माना धातु का जमाना कहलाता है।

अकबर
आपने हज़रत मुल्ला दोप्याज़ा और बीरबल के मलफूतात' में इस बादशाह का हाल पढ़ा होगा। राजपूत मुसव्वरी' के शाहकारों में इसकी तस्वीर भी देखी होगी। इन तहरीरों और तस्वीरों से यह गुमान होता है कि यह बादशाह सारा वक्त दाढ़ी घुटवाए, मूँछें तरशवाए उकडूं बैठा फूल सूँघता रहता था, या लतीफे सुनता रहता था। ये बात नहीं, और काम भी करता था । अकबर क़िस्मत का धनी था । छोटा सा था कि बाप यानी हुमायूँ बादशाह सितारे देखने के शौक में कोठे से गिरकर जाँबहक़ हो गया और ताजो- तख़्त इसे मिल गया । एडवर्ड हफ़्तुम' की तरह चौसठ बरस वलीअहदी में नहीं गुज़ारने पड़े। वैसे उस
ज़माने में इतनी लम्बी वलीअहदी का रिवाज़ भी न था । वलीअहद लोग ज्योंही बाप की उम्र को माकूल मुद्दत से तजावुज़' करता देखते थे, उसे क़त्ल करके या ज्यादा रहमदिल होते तो कैद करके तख़्ते- हुकूमत पर जल्वा-अफ़रोज´ हो जाया करते थे, ताकि ज्यादा से ज्यादा दिन रिआया की ख़िदमत
का हक अदा कर सकें। अब हम अकबरी अह्र्द के कुछ अहम वाक़िआत का ज़िक्र करते हैं --
पानीपत की दूसरी लड़ाई पानीपत में उस वक़्त तक सिर्फ एक लड़ाई हुई थी। पानीपतवालों का इसरार था कि अब एक और होनी चाहिए। चुनांचे अकबर ने पहली फुरसत में भैरो बंगाह के साथ उधर का रुख किया। उधर से हेमूं बक़्क़ाल लश्करे-जर्रार' लेकर आया। उसके साथ तोपें भी थीं और हाथी भी थे - एक-से-एक सफेद । घमासान का रन पड़ा। हेमूं की जमीअत' ज्यादा थी, लेकिन अकबरी लश्कर ने ताबड़तोड़ हमले करके खलबली डाल दी ।
बाज हमदर्दों ने उसके जद्दी 10 वतन से पैगाम भिजवाया कि तुम और हेमूं दोनों यहाँ ताशकन्द आओ, सुलह कराए देते हैं, लेकिन अकबर न माना ।

 

 

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V
Vijay Tyagi
5-STAR✨✨✨✨✨

Bahut hi umda sanklan👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

R
R.s...
Urdu Ki Aakhiree Kitab

very nice

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