Introduction
Page 5: भूमिका: अब्दुल बिस्मिल्लाह
Page 11: इंशाजी के नाम ख़त
Page 13: बाइसे- तहरीर आं कि (भूमिका इब्ने इंशा)
Page 17: एक दुआ
Page 17: हमारा मुल्क
Page 19: हमारा तुम्हारा खुदा बादशाह
Page 21: बरकाते हुकूमते गैर इंगलिशिया
Page 23: एक सबक जुगराफिये का
Page 25: पाकिस्तान
Page 26: भारत
तारीख
Page 31: तारीख़ के चन्द दौर
Page 37: रामायन और महाभारत
Page 37: रामायन
Page 39: महाभारत
Page 41: सिकन्दर-ए-आज़म
Page 45: ख़ानदान-ए-ग़ज़नवी से खानदान-ए-लोधी तक
Page 45: सुल्तान महमूद गजनवी
Page 50: खानदान-ए-गौरी
Page 50: ख़ानदान-ए-गुलामान (गुलाम वंश)
Page 52: खिलजी ख़ानदान
Page 52: तुगलक ख़ानदान
Page 54: लोधी ख़ानदान
Page 56: अहवाल ख़ानदान-ऐ-मुगलिया का
Page 56: बाबर
Page 58: हुमायूँ
Page 61: अकबर
Page 67: अकबर के नवरत्न
Page 75: जहाँगीर और बेबी नूरजहाँ
Page 77: एक ग़लतफहमी का इज़ाला
Page 77: शाहजहाँ और ताजमहल
Page 80: आलमगीर बादशाह
Page 82: सिराजुद्दीन ज़फ़र बहादुरशाह
Page 84: महाराजा रंजीतसिंह
Page 86: ठगी का इन्सेदाद कैसे हुआ
Page 88: एक सबक ग्रामर का
Page 95: इब्तेदाई हिसाब
Page 100: इब्तेदाई अल्ज़ब
Page 101: इब्तेदाई ज्योमेटरी
इब्तेदाई साइंस
Page 111: माद्दे की किस्में
दूसरी दफ़ा का ज़िक्र है
Page 123: चिड़ा और चिड़िया
Page 125: गुरु और चेले
Page 125: कछुआ और खरगोश
Page 129: प्यासा कौवा
Page 131: इत्तेफ़ाक में बरकत है
बयान जानवरों का भैस
Page 135:भैस
Page 137: बकरी
Page 139: ऊँट
Page 141: आदमी
Page 143: शेर
गिरदो-पेश (आसपास) की ख़बरें
Page 147: इल्म बड़ी दौलत है
Page 147: अख़बार
Page 151: कपड़वाले के यहाँ
Page 152: जूतेवाले के यहाँ
Page 154: खाने की चीजें
Page 154: मक्खन
वाला छठी मोरखा । 14.6.1971
मुहतरमी,
तस्लीम !
आपकी जदीद 2 उर्दू रीडर पर गहरा गौर व खोज़ किया गया । हमारी राय में यह तुलबा 4 को बाकी 566 दरसी कुतुब ' से बेनेयाज़ करने की एक ख़तरनाक कोशिश है।
ख़दशा ' है कि इसे पढ़कर उस्ताद तालिब-इल्म 7 और तालिब-इल्म उस्ताद
बन जायेंगे।
लिहाज़ा टैस्ट बुक बोर्ड इसे नामंजूर करने में मसर्रत 8 का इज़हार करता है ।
नेयाज़मन्द
मीर नसीम महमूद*
इब्ने इंशा साहब
चेयर मैन
*यह ख़त स्वयं इंशाजी का लिखा हुआ है।
1 तिथि
7. विद्यार्थी
2. आधुनिक
8. खुशी
3. विचार-विमर्श
4. विद्यार्थियों
5. पाठ्य पुस्तकों
6. आशंका
तारीख़ के चन्द दौर
राहों में पत्थर |
जलसों में पत्थर ।
सीनों में पत्थर ।
अक़लों में पत्थर |
आस्तानों में पत्थर |
दीवानों में पत्थर |
पत्थर ही पत्थर ।
यह ज़माना पत्थर का ज़माना कहलाता
देगें ही देगें।
चमचे ही चमचे ।
सिक्के ही सिक्कं ।
है
सोना ही सोना ।
पैसे ही पैसे ।
चाँदी ही चाँदी ।
यह ज़माना धातु का जमाना कहलाता है।
अकबर
आपने हज़रत मुल्ला दोप्याज़ा और बीरबल के मलफूतात' में इस बादशाह का हाल पढ़ा होगा। राजपूत मुसव्वरी' के शाहकारों में इसकी तस्वीर भी देखी होगी। इन तहरीरों और तस्वीरों से यह गुमान होता है कि यह बादशाह सारा वक्त दाढ़ी घुटवाए, मूँछें तरशवाए उकडूं बैठा फूल सूँघता रहता था, या लतीफे सुनता रहता था। ये बात नहीं, और काम भी करता था । अकबर क़िस्मत का धनी था । छोटा सा था कि बाप यानी हुमायूँ बादशाह सितारे देखने के शौक में कोठे से गिरकर जाँबहक़ हो गया और ताजो- तख़्त इसे मिल गया । एडवर्ड हफ़्तुम' की तरह चौसठ बरस वलीअहदी में नहीं गुज़ारने पड़े। वैसे उस
ज़माने में इतनी लम्बी वलीअहदी का रिवाज़ भी न था । वलीअहद लोग ज्योंही बाप की उम्र को माकूल मुद्दत से तजावुज़' करता देखते थे, उसे क़त्ल करके या ज्यादा रहमदिल होते तो कैद करके तख़्ते- हुकूमत पर जल्वा-अफ़रोज´ हो जाया करते थे, ताकि ज्यादा से ज्यादा दिन रिआया की ख़िदमत
का हक अदा कर सकें। अब हम अकबरी अह्र्द के कुछ अहम वाक़िआत का ज़िक्र करते हैं --
पानीपत की दूसरी लड़ाई पानीपत में उस वक़्त तक सिर्फ एक लड़ाई हुई थी। पानीपतवालों का इसरार था कि अब एक और होनी चाहिए। चुनांचे अकबर ने पहली फुरसत में भैरो बंगाह के साथ उधर का रुख किया। उधर से हेमूं बक़्क़ाल लश्करे-जर्रार' लेकर आया। उसके साथ तोपें भी थीं और हाथी भी थे - एक-से-एक सफेद । घमासान का रन पड़ा। हेमूं की जमीअत' ज्यादा थी, लेकिन अकबरी लश्कर ने ताबड़तोड़ हमले करके खलबली डाल दी ।
बाज हमदर्दों ने उसके जद्दी 10 वतन से पैगाम भिजवाया कि तुम और हेमूं दोनों यहाँ ताशकन्द आओ, सुलह कराए देते हैं, लेकिन अकबर न माना ।