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हिन्दी भासा रै ‘चौथा सप्तक’ रा ख्यातनाम कवि नन्दकिशोर आचार्य री अब तांई छपियोड़ी चवदै काव्य पोथ्यां सूं टाळवीं कवितावां रो ओ महताऊ अनुसिरजण ‘ऊंडै अंधारै कठैई’ जठै डॉ. नीरज दइया री अेक सांतरी उपलब्धि है, बठै ई मायड़ भासा रै अनूदित साहित्य रो अेक गीरबै जोग ग्रन्थ ई है। डॉ. दइया जैड़ै आगीवाण आधुनिक कवि रै, ऊंडै अंधारै कठैई, पूगण रो अैसास आचार्य जी जैड़ै कवि-रिख री आंगळी थाम’र ई संभव हो, क्यूं कै ‘अलेखू उणियारां रै बीच अदीठ’ (इतनी शक्लों में अदृश्य, आचार्य जी रो काव्य संकलन) रो छणिक दीठाव ई नीठ साधना-संभव हुवै है। किणी भी अनुवादक री पैली कसौटी, उण री अनुवाद सारू टाळ्योड़ी रचना हुवै। आंग्ल भासा रै ख्यातनाम अनुवादक ‘फिट्जेराल्ड’ री ऊंचाई, जेकर उण रो खैयाम री रूबायां रो अनुवाद है, तो उण सूं पैली उण री वा दीठ है जिकी खैयाम री प्रज्ञा तांई पूग’र पाछी बावड़ै। वां नै अनुवाद सारू टाळै। वां री महत्ता नै पिछाणै। डॉ. आचार्य जैड़ै सिध अर सारगर्भित कवि री कवितावां नै आपरै अनुवाद सारू टाळ’र डॉ. दइया आपरी चयन-प्रतिभा रो परिचय दियो है। ‘ऊंडै अंधारै कठैई’ अनुवाद नै किणी भावानुवाद या अनुसिरजण री कसौटी माथै कसां तो आ इण अनुवाद री सिरैता ई कही जावैला कै ओ अनुवाद जठै मूळ कवि रै भावां नै ज्यूं रा त्यूं प्रगटै बठैई केई कवितावां रो तो शब्दश: अनुवाद ई पाठक रै साम्हीं राखै। आप सारू इण अनूदित कृति ‘ऊंडै अंधारै कठैई’ मांय आचार्य जी रै अब तांई प्रकाशित चवदै काव्य संकलनां- जल है जहाँ, वह एक समुद्र था, शब्द भूले हुए, आती है जैसे मृत्यु, कविता में नहीं है जो, अन्य होते हुए, चाँद आकाश गाता है, उडऩा सम्भव करता आकाश, गाना चाहता पतझड़, केवल एक पत्ती ने, इतनी शक्लों में अदृश्य, छीलते हुए अपने को, मुरझाने को खिलाते हुए अर आकाश भटका हुआ सूं वां री टाळवी कवितावां लिरीजी है। बै कवितावां जिकी मांय ‘अज्ञेय’ रै सबदां मांय— ‘आंगन के पार द्वार खुलै, द्वार के पार आंगन’ अनै फेर खुलता ई चल्या जावै, अेक अधुनातन अध्यात्म री भासा मांय। - मोहन आलोक राजस्थानी के वरिष्ठ कवि

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