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बीकानेर न केवल साहित्य की उर्वर भूमि है बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए पूरे भारत में जाना जाता है।रंगकर्म से लेकर आर्ट गैलरी में समय समय पर लगने वाली प्रदर्शनियों को मैंने निकट से देखा है।एक दर्ज़न से अधिक साहित्यकारों की ख्याति अखिल भारतीय स्तर की है।हिंदी साहित्य वास्तव में बीकानेर का ऋणी है। फ़िलहाल वहाँ के तेजी से उभर रहे व्यंग्य लेखक नीरज दइया की दूसरे व्यंग्य सन्ग्रह”टायं टायं फिस्स” के बारे में कुछ टिप्पणियाँ लिखने का मन है। बीकानेर वह धरा है जहाँ मालीराम शर्मा,डॉ मदन केवलिया,बुलाकी शर्मा,हरदर्शन सहगल जैसे दिग्गज व्यंग्यकारों ने व्यंग्य साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।मालीराम शर्मा का स्तम्भ लेखन बेहद पठनीय और लोकप्रिय रहा है। ऐसे वातावरण वाले शहर में व्यंग्यकारों का उभरना सामान्य बात है।नए व्यंग्यकारों के लिए अपने इन दिग्गजों से सीखने के विपुल अवसर रहते हैं।चुनौतियाँ भी इन्हीं के लेखन से हैं। नीरज दइया के दूसरे व्यंग्य सन्ग्रह “टायं टायं फिस्स”में कुल 40 व्यंग्य संकलित हैं।उनका शुरुआती व्यंग्य सन्ग्रह से यह व्यंग्य सन्ग्रह काफी परिपक्व है। वैसे अन्य अनुशासनों में नीरज दइया का नाम बेहद जाना पहचाना है,खासकर राजस्थानी साहित्य में।उनके पिताजी स्व सांवर दइया राजस्थानी साहित्य के चर्चित साहित्यकार हुए हैं। नीरज दइया ने यह संकलन राजस्थानी और हिंदी के साहित्यकार मंगत बादल को समर्पित किया है।मंगत जी व्यंग्य भी लिखते हैं।भूमिका जाने माने व्यंग्य कवि भवानीशंकर व्यास विनोद ने बेहद भावुक होकर लिखी है।प्रशन्सात्मक भूमिका नीरज जी को अच्छा और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेगी। ‘ये मन बड़ा पंगा कर रहा है’ व्यंग्य में लेखक कहता है’एक दिन सोचा मन की फ़ोटो प्रति कर ली जाय मगर मन है कि पकड़ में नहीं आता।’फन्ने खाँ लेखक नहीं’में लेखक कहता है-लेखक होना अपने आप में अमर होना है।इस अमरता के लिए ही लेखक मरे जा रहे हैं।”सबकी अपनी अपनी दुकानदारी”में नीरज जी लिखते हैं’अच्छे दिन हैं कि सभी घास खाएं और सोएँ’ ।वी आईं पी की खान व्यंग्य में वी आईं पी कल्चर पर प्रहार किया गया है।साहित्य माफिया में वह लिखते हैं-साहित्य भी एक धंधा बन चुका है।आज किसके पास समय है कि साहित्य जैसे फक्कड़ धंधे में हाथ आजमाए।चीं चपड़….व्यंग्य में कहा गया है-पिंजरा केवल चूहों के लिए ,हम सभी के लिए अलग अलग रूपों में कहीं न कहीं किसी न किसी ने निर्मित कर रखा है। इस व्यंग्य सन्ग्रह में आक्षेप,भर्त्सना,कटाक्ष आदि व्यंग्य रूपप्रचुरता में विद्यमान हैं लेकिन विट,आइरनी,ह्यूमर आदि न के बराबर है।विद्रूप चित्रण से ज्यादा प्रभावी प्रहार हैं।यदि इन सशक्त प्रहारों के साथ विद्रूपता को साध लिया जाय तो नीरज जी का लेखन ऐतिहासिक हो जायेगा।भाषा साधारण किन्तु प्रवाहमयी है। पंच काका की हर व्यंग्य में उपस्थिति से शैलीगत प्रयोग नहीं हो पाये हैं। इस सन्दर्भ में मुझे अपना प्रतिदिन का नवज्योति में कॉलम लिखना याद आ गया।ढाई साल तक मैंने रोजाना व्यंग्य कॉलम लिखा था”गयी भैंस पानी में”शीर्षक से। शुरुआती दिनों में मैं हर व्यंग्य में भैंस को ले आता था,जिससे व्यंग्य की धार कुंद हो जाती।दस दिनों बाद संपादक और मित्रों के टोकने पर मैने शैली बदल दी थी। बहरहाल इस संग्रह के बाद व्यंग्य जगत को नीरज जी से उम्मीदें बढ़ गयीं हैं। - अरविंद तिवारी (वरिष्ठ व्यंग्यकार)

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