Swatantrata Andolan Aur RSS (Hindi) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और आरएसएस: Ek daastaan ghaddaari ki
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Language | Hindi |
Publisher | Pharos Media |
Pages | 81 |
ISBN | 978-8172211028 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.11 kg |
Edition | 1st |
शम्सुल इस्लाम दिल्ली विश्यविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्यापक रहे हैं और प्रख्यात नुक्कड़ नाट्यकर्मी हैं। शम्सुल इस्लाम ने एक लेखक, पत्रकार और स्तम्भकार के तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में धार्मिक कट्टरता, अमानवीयकरण साम्राज्यवादी मंसूबों, महिलाओं और दलितों के दमन के खि़लाफ़ हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में लगातार लिखा है। वे राष्ट्रवाद के उदय और उसके विकास पर मौलिक शोध कार्यों के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। Dr Shamsul Islam taught political science at the University of Delhi. As an author, columnist and dramatist he has been writing against religious bigotry, dehumanization, totalitarianism, persecution of women, Dalits and minorities. He is known globally for fundamental research work on the rise of nationalism and its development in India and the world.
Swatantrata Andolan Aur RSS (Hindi) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और आरएसएस: Ek daastaan ghaddaari ki
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आरएसएस के संस्थापक के. बी. हेडगेवार ने आरएसएस कैडर्स को स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने से यह कहकर रोक दिया थाः ‘‘संघ को क्षणिक उत्साह और उद्वेलित भावनाओं से उत्पन्न हर कार्यक्रम से स्वयं को हर हालत में अलग रखना होगा, क्योंकि ऐसे किसी कार्यक्रम का सहयोग करना संघ के स्थायित्व के लिए केवल घातक सिद्ध होगा।’’ आरएसएस के दूसरे सर-संघचालक एम एस गोलवलकर ने ब्रिटिश-विरोधी स्वतंत्रता आन्दोलन की इस तरह निंदा की थीः ‘‘प्रादेशिक राष्ट्रवाद और आम ख़तरे के सिद्धान्तों ने, जो हमारी राष्ट्र कल्पना के आधार बने थे, हमें अपने भावनात्मक एवं प्रेरक सच्चे हिन्दूराष्ट्र के भाव से वंचित कर दिया और अनेक स्वतंत्रता आन्दोलनों को वस्तुतः अंग्रेज़-विरोधी आन्दोलन बना दिया। अंग्रेज़ों के विरोध को देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता का समानार्थी माना गया। हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन की सम्पूर्ण गतिविधयों पर उसके नेताओं एवं आम समाज पर इस प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण के विनाशकारी प्रभाव हुए।’’ लेखक का भरसक प्रयास यह रहा है कि आरएसएस के दस्तावेज़ स्वयं उसके बारे में बताएँ। यह पुस्तक आरएसएस के इस दावे को जाँचने का एक प्रयास है कि वह एक राष्ट्रवादी संगठन है। आज़ादी से पहले आरएसएस के अभिलेखों से मिले ये चैंकानेवाले दस्तावेज़ इस तथ्य को स्पष्ट कर देते हैं कि आरएसएस विदेशी सरकार की बुराइयों पर न केवल चुप्पी साधे रहा था, बल्कि उसके सारे प्रयास ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध साझी लड़ाई को विफल करने के लिए थे।
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