Snow monkey ko pizza mat khilao
by Arun Pandey
Author | Arun Pandey |
Language | Hindi |
Publisher | Antika Prakashan |
Categories | Collection of Short Stories |
Pages | 96 |
ISBN | 978-93-91925-74-1 |
Item Weight | 0.4 kg |
Snow monkey ko pizza mat khilao
अरुण पाण्डेय के संदर्भ में यह एक अन्वेषण का विषय होना चाहिए कि कला संस्कार के अलग-अलग संकाय में हाथ आजमाते हुए वे संकाय विशेष के रचनात्मक कौशल को कैसे अर्जित करते हैं? हालाँकि वे अगर कहानियों के लिए संगतता के साथ सक्रिय रहते तो कहानी संसार में एक मुकम्मल नाम उनका होता। यह अस्थिरता उनकी बेचैनी से पैदा होती है। यह बेचैनी उन्हें जुनूनी भी बनाती है। दरअसल इस जुनून से ही वे सक्रिय होते हैं और परिणामस्वरूप एक ही रात में एक नाटक का लेखन या एक कहानी का नाट्य रूपांतरण कर डालते हैं। उनकी कहानियों का जन्म सम्भवत: इसी तरह हुआ है। अधिकांश लेखक की सृजनात्मकता से गुजरते हुए उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि का पता चल जाता है, ठीक इसी तरह अरुण पाण्डेय भी अपना पता 'दो पंक्तियों के बीच देते चलते हैं। उनकी रचनाओं से यह जानकारी मिलती है कि वे शोषितों की तरफदारी में खड़े हैं। इसे बहुत $करीब से देखना हो तो उनकी बेहद महत्त्वपूर्ण कहानी 'स्नो मंकी को पिज्जा मत खिलाओ' से गुजरना होगा। विलासी जीवन के लिए धन की चरम लोलुपता किस तरह किसी समाज को अपने शिकंजे में लेती है इसका प्रभावशाली बयान इस कहानी में मिलता है। उपभोक्तावाद इस समाज से एक 'मंकी की तरह व्यवहार करता है। वह चरणबद्ध तरी$के से भ्रम खड़ा करता है। यह भ्रम इतना तार्किक है कि उपभोक्ता अन्तत: फँस ही जाता है। लेकिन उपभोक्तावाद को यह पता नहीं रहता कि इस 'मंकी' की चाहतों में जो है वह न मिलने पर वह हिंसक हो सकता है। यह चेतना बिना राजनैतिक तर$फदारी के सम्भव नहीं है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में कहानी में इस तरह सक्रिय अरुण पाण्डेय के लिए हमें शुभाशा करनी चाहिए। यह शुभाशा उनका अभिनन्दन नहीं है बल्कि वे कहानी की दुनिया के लिए एक जरूरी रचनाकार हैं। —राजेन्द्र दानी
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