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Shrimad Bhagwad Gita - Hindi-Mahakavya
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भगवद्गीता देव संस्कृति का परम मुकुट है। इसमें दर्शन काव्य मनोविज्ञान शांति क्रांति वीरता योग और जीवन तथा जगत् के विविध आयाम समाहित हैं। गीता संसार के प्रत्येक व्यक्ति का हित साधन करती है। इसके द्वार से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौट सकता। अध्याय नौ में योगेश्वर ने दुराचारीसेदुराचारी व्यक्ति का भी कल्याण करने की घोषणा की है। इसके जीवनदायी सात सौ सूत्रों में विश्व की प्रत्येक समस्या का समाधान निहित है। भगवान् ने अर्जुन को निमित्त बनाकर समूची मानवजाति को विश्वहित में कर्म करने का संदेश दिया है। तलवारों की खनखनाहटों और युद्ध के ढोलनगाड़ों के बीच में योग जैसे गूढ़ विषय का उपदेश देना विश्वइतिहास की अनूठी घटना है।/&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs;&nbs; ‘योग कर्मसु कौशलम्’–कर्मों को कुशलतापूर्वक करना ही योग है। सबके हित को ध्यान में रखते हुए निष्काम भाव से कर्म करना ही कर्मयोग है। योग की इससे सरल परिभाषा कोई भी नहीं हो सकती। यह अपने हाथ का खेल है। इसमें किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है। किसी जंगल गुफा या आश्रम में जाने की भी जरूरत नहीं है। गीता में कर्मयोग का अर्थ अत्यंत व्यापक और सूक्ष्म है। कर्म तभी योग का रूप लेता है जब भगवद्भाव से किया जाए। ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण से ही हमारे अंदर भगवद्भाव पैदा होता है।//पुस्तक की लेखिका सरला देवी ने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। चौंतीस वर्षों तक उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय संगठन में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। दीर्घकाल तक ध्यान स्वाध्यायऔर आत्मनिरीक्षण से उन्होंने अनुभव किया कि धर्म मनुष्य को प्राकृतिक नियमों को धारण करने का संदेश देता है। अनुशासन शांति सत्यसंतोष शुद्धता निस्स्वार्थ प्रेम परस्पर सहयोगपरिवर्तनशीलता देते रहना आदि प्रकृति के मूलभूत नियम हैं। इस पुस्तक में लेखिका ने अपने निजी आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर अध्यात्म और प्रकृति के बीच गहरे संबंध को खोजने का प्रयास किया है। हिन्दी साहित्य में उनके द्वारा रचित यह अभूतपूर्व&nbs; कृति है। इस पुस्तक का भाष्य और काव्य अत्यंत सरलसरस और सुबोध है। लेखिका को आशा है कि इस पुस्तक के मनन अध्ययन से मनुष्य प्रकृति के नियमों को धारण करेगा और प्राकृतिक जीवन&nbs; शैली&nbs; की और उन्मुख होगा। //Sarla Hooda the author of the book attained her graduate degree from the University of Delhi and her ostgraduate degree from Maharshi Dayanand University. For thirtyfour years she worked as an educator in the Kendriya Vidyalaya Sangathan. She has been living a life with a meditative self introsective and healthy aroach since her early childhood days. A long and rigorous reflection uon thousands of books resulted in her discovery of the innate similarities in various religions and cultures. After meditating over a long eriod of time she felt that selfless love satisfaction disciline eace gratitude cooeration truth ersistent are fundamental laws of nature. This book is the first work by a female on Bhagavada Gita Eic in Hindi language literature. It resents fresh and unique Hindi oetry and also rovides a modern commentary. In the book the author has tried to find the dee relationshi between sirituality and nature. She sees this book as an ideal bridge for connecting our inner consciousness with universe and nature./
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