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मैंने संवत् 1933 में भाषा-कवियों के जीवनचरित्र-विषयक एक-दो ग्रंथ ऐसे देखे, जिनमें ग्रंथकर्ता ने मतिराम इत्यादि ब्राह्मणों को लिखा था कि वे असनी' के महापात्र भाट हैं। इसी तरह की बहुत-सी बातें देखकर मुझसे चुप न रहा गया। मैने सोचा, अब कोई ग्रंथ ऐसा बनाना चाहिए, जिसमें प्राचीन और अर्वाचीन कवियों के जीवनचरित्र, सन् संवत्, जाति, निवासस्थान आदि कविता के ग्रन्थों-समेत विस्तारपूर्वक लिखे हों। मैंने प्रथम संस्कृत, अरवी, फ़ारसी, भाषा, और अँगरेज़ी के ग्रन्थों से पूर्ण अपने पुस्तकालय का छः महीने तक यथावत् अवलोकन किया। फिर कवियों का एक सूचीपत्र बनाकर उनके ग्रन्थ, उनके विद्यमान होने के सन्-संवत् और उनके जीवनचरित्र, जहाँ तक प्रकट हुए, सब लिखे। पहले मैंने सोचा था कि एक छोटा-सा संग्रह बनाऊँगा; पर धीरे-धीरे ऐसा भारी ग्रन्थ हुआ कि 1000 कवियों के नामोंसहित जीवनचरित्र इकट्ठे हो गये, जिनमें 836 की कविता मैंने इस ग्रन्थ में लिखी, और विस्तार के भय से केवल इतने ही कवियों की कविता लिख चुकने पर ग्रंथ को समाप्त कर दिया। मुझको इस बात के प्रकट करने में कुछ संदेह नहीं कि ऐसा संग्रह कोई आज तक नहीं रचा गया। परंतु इस वात को प्रकट करना अपने मुँह मियाँ मिट्टू बनना है। इस कारण इस संग्रह की बुराई-भलाई देखने-पढ़ने वालों की राय पर छोड़ी जाती है। जिन कवियों के ग्रंथ मैने पाये, उनके सन्-संवत् बहुत ठीक ठीक लिखे हैं, और जिनके ग्रंथ नहीं मिले, उनके सन् संवत हमने अटकल से लिख दिये हैं। जो कहीं एक कवि का नाम दुवारा लिखा गया हो, अथवा एक कवि का कवित्त दूसरे कवि के नाम से लिखा हो, तो विद्वज्जन उसे सुधार लें, और मेरी भूल चूक को क्षमा करें। क्योंकि मुझे काव्य का कुछ भी वोध नहीं है। कविलोग इस ग्रंथ में प्रशंसा के बहुत कवित्त देखकर कहेंगे कि इतने कवित्त वीर-यश के क्यों लिखे? मैंने सन्-संवत् और उस कवि के समय-निर्माण करने को ऐसा किया है; क्योंकि इस संग्रह के बनाने का कारण केवल कवियों के समय, देश, सन्-संवत् वताना है।
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