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संधि-बेला - नवीनतम पीढ़ी के कवियों की कविताओं का संकलन 'संधि-बेला' नवीनतम पीढ़ी के उन कवियों की कविताओं का संकलन है, जिनका उदय हिन्दी कविता के क्षितिज पर तब हुआ है, जब बीसवीं शताब्दी अपने अन्त की और उन्मुख थी और इक्कीसवीं शताब्दी शुरू होने वाली थी। यह संक्रमण काल मानव सभ्यता पर नया संकट लेकर आया है। प्रस्तुत संकलन के कवि उस संकट को, जो अर्थव्यवस्था से लेकर संस्कृति तक पर व्याप्त है, अपनी कविताओं में वाणी दे रहे हैं, कभी प्रत्यक्ष रूप में और कभी अप्रत्यक्ष रूप में पिछले दिनों अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में जो घटनाएँ घटी है, उनसे एक ख़ास प्रकार की राजनीति से भी उनका मोहभंग हुआ है और अपने प्रतिरोध के स्वर को बिना दबाएँ वे उसे मानवीय रूप प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील हैं। एक बात यह भी है कि वे बड़ी ललक के साथ अपने समाज और घर-परिवार की ओर मुख़ातिब हुए हैं, जो राजनीति के तेज उजाले में कवियों की आँखों स बहुत कुछ ओझल हो थे। इसी का परिणाम उनकी प्रेम-भावना भी है, जो किसी भी निर्जीव परम्परा या फ़ैशन की देन न होकर अपनी निजी परिस्थितियों से उपजी है। ये कवि प्रायः बड़ी-बड़ी बातों में न फँसकर छोटे-छोटे विषय को लेकर कविता लिखते हैं और उसी के माध्यम से बड़े सत्य को उद्घाटित करते हैं। यह बड़ा सत्य सम्पूर्ण सभ्यता की समीक्षा तक जाता है। इन कवियों में गम्भीरता भी है, लेकिन वे हमेशा उसे ओढ़े हुए नहीं रहते, जिससे वे हँसते-हँसाते भी हैं और उसके माध्यम से अपने परिवेश के यथार्थ को बहुत दिलचस्प बनाकर पेश करते हैं। उनकी शैली में ग़ज़ब की विविधता है। वे गद्यात्मक भी हैं और प्रगीतात्मक भी यथार्थवादी भी हैं और रूमानी भी। इसी तरह ठोस भी हैं और अमूर्त भी उनकी भाषा में भी विविधता है। वे एक स्तर पर शब्द प्रयोग के प्रति सजग हैं, तो दूसरे स्तर पर कविता के पूरे शिल्प के प्रति प्रस्तुत संकलन इनके द्वारा रची जा रही उस कविता के नाक-नक्श को स्पष्ट करने की कोशिश करता है, जिसके बारे में दिनकर के शब्दों में कहा जा सकता है झाँकी उस नयी परिधि की जो है दीख रही कुछ थोड़ी-सी, क्षितिजों के पास पड़ी पतली चमचम सोने की डोरी-सी।-नंदकिशोर नवल

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