अनुक्रम
अपनी बात
Pages: 11
1. शोध : अर्थ, अवधारणा और उद्देश्य (Meaning, Concept and Objectives)
o शोध का अर्थ (Meaning of Research)
o शोध के उद्देश्य (Objectives of Research)
o शोध के प्रकार (Types of Research)
o शोध दृष्टि या उपागम (Research Approaches)
o शोध प्रक्रिया (Research Process)
o शोध के महत्त्व (Significance of Research)
Pages: 15-26
2. शोध समस्या एवं उपकल्पना (Research Problem and Hypothesis)
o शोध समस्या का अर्थ (Meaning of Research Problem)
o शोध समस्या का चयन (Selection of Research Problem)
o उपकल्पना (Hypothesis)
o उपकल्पना की विशेषताएँ (Characteristics of Hypothesis)
o उपकल्पना के प्रकार (Types of Hypothesis)
o उपकल्पना के प्रकार्य (Functions of Hypothesis)
o उपकल्पना के स्रोत (Sources of Hypothesis)
Pages: 27-33
3. शोध अभिकल्प (Research Design)
o शोध अभिकल्प का अर्थ (Meaning of Research Design)
o शोध अभिकल्प की आवश्यकता (Need of Research Design)
o शोध अभिकल्प की विशेषताएँ (Characteristics of Research Design)
o शोध अभिकल्प के प्रकार (Types of Research Design)
Pages: 34-38
4. शोध की पद्धतियाँ (Methods of Research)
o जनगणना पद्धति (Census Method)
o सर्वेक्षण पद्धति (Survey Method)
o अन्तर्वस्तु विश्लेषण पद्धति (Content Analysis Method)
o वैयक्तिक अध्ययन पद्धति (Case Study Method)
o अवलोकन पद्धति (Observation Method)
o प्रयोगात्मक पद्धति (Experimental Method)
o साक्षात्कार पद्धति (Interview Method)
o निदर्शन पद्धति (Sampling)
o सांख्यिकीय पद्धति (Statistics Method)
Pages: 39-58
5. आँकड़ों के स्रोत, संग्रहण एवं संरक्षण (Sources, Collection, and Processing of Data)
o आँकड़ों के अर्थ (Meaning of Data)
o आँकड़ों के प्रकार (Types of Data)
o आँकड़ों के स्रोत (Sources of Data)
o आँकड़ा संग्रहण की प्रणालियाँ (Techniques of Data Collection)
o आँकड़ों का संरक्षण (Processing of Data)
Pages: 59-73
6. आँकड़ों के विश्लेषण में सांख्यिकी (Statistics in Analysis of Data)
o सांख्यिकी का अर्थ (Meaning of Statistics)
o सांख्यिकी के प्रयोग (Uses of Statistics)
o केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापक (Measures of Central Tendency)
o प्रकीर्णन के मापक (Measures of Dispersion)
o सम्बद्धता के मापक (Measures of Relationship)
o असममिति के मापक (Measures of Asymmetry)
o टी-टेस्ट, एफ-टेस्ट, जेड-टेस्ट एवं काई स्क्वायर टेस्ट (T-test, F-test, Z-test, Chi-square test)
o कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर द्वारा आँकड़ों का विश्लेषण (Data Analysis by Computer Software)
o आँकड़ों के विश्लेषण की चित्रमय प्रस्तुति (Pictorial Presentation of Data Analysis)
Pages: 74-98
7. शोध प्रतिवेदन और शोध पत्र (Research Report and Research Paper)
o शोध प्रतिवेदन क्या है (What is Research Report)
o प्रतिवेदन लेखन के विभिन्न चरण (Different Steps of Report Writing)
o शोध प्रतिवेदन का अभिन्यास (Layout of Research Report)
o शोध पत्र (Research Paper)
o शोध पत्र की संरचना (Construction of Research Paper)
o मौखिक प्रस्तुति (Oral Presentation)
Pages: 99-110
8. संचार शोधः प्रकृति, क्षेत्र एवं उपादेयता (Communication Research: Nature, Scope and Utility)
o संचार शोध की प्रकृति (Nature of Communication Research)
o संचार शोध के क्षेत्र (Scope of Communication Research)
o स्रोत विश्लेषण (Source Analysis)
o संदेश विश्लेषण (Message Analysis)
o माध्यम विश्लेषण (Channel Analysis)
o ऑडियन्स विश्लेषण (Audience Analysis)
o फीडबैक व फीड फारवर्ड विश्लेषण (Feedback and Feed-Forward Analysis)
o संचार शोध की उपादेयता (Utility of Communication Research)
o भारत में संचार शोध (Communication Research in India)
Pages: 111-121
9. मास मीडिया शोध (Mass Media Research)
o मास मीडिया शोध के विषय (Subjects of Mass Media Research)
o मीडिया उत्पादन पर आधारित शोध (Research Based on Media Production)
o मीडिया उपभोग पर आधारित शोध (Research Based on Media Consumption)
o प्रिण्ट मीडिया में शोध के क्षेत्र (Research Areas in Print Media)
o ब्रॉडकास्ट मीडिया में शोध के क्षेत्र (Research Areas in Broadcast Media)
o वेब मीडिया के शोध क्षेत्र (Research Areas in Web Media)
o फिल्म मीडिया में शोध क्षेत्र (Research Areas in Film Media)
Pages: 122-130
अपनी बात
लगातार बड़ी हो रही है संचार शोध की दुनिया
इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही बदलाव की बयार बह रही है। टेक्नोलॉजी के सहारे
बदलती दुनिया में सब कुछ बदलता नजर आ रहा है। समाज, संस्कृति, संस्कार, सरोकार
और शिक्षा के नये-नये मानक गढ़े जा रहे हैं तो राजनीति और सामाजिक व्यवस्थाओं के
संग बाजार की बदलती नातेदारी ने लोगों के रहन-सहन, खान-पान, सोच-विचार और हाव-
भाव को तेजी से बदल डाला है। टेक्नोलॉजी के उफान को इसी बात से समझा जा सकता
है कि मनुष्य के बरक्स रोबोट को और मनुष्य की वास्तविक बुद्धिमत्ता के बरक्स
मशीनी आर्टिफीशियल इण्टेलिजेन्स को प्रस्तुत किया जा रहा है। धीरे-धीरे हम सब
चिप-कम्युनिकेशन से भी आगे निकल जाने की होड़ में शामिल हो रहे हैं। इन सारे
बदलावों के केन्द्र में संचार और संचार के सभी नये-पुराने उपक्रम यानी मीडिया यानी
कास्टिंग के सभी सिस्टम हैं, कहीं बदलाव का माध्यम बनकर तो कहीं बदलाव का कारण
बनकर। यही वजह है कि संचारक, संचार के कथ्य और उनकी प्रस्तुति, संचार की प्रक्रिया,
संचार के माध्यम, संचार के प्रभाव और संचार के उपभोक्ताओं यानी ऑडियन्स को लेकर
नये-नये अध्ययन हो रहे हैं और नये-नये प्रतिमान गढे जा रहे हैं। तय है कि ऐसे में संचार
और मीडिया शोध की नयी-नयी सम्भावनाएँ सामने आ रही हैं और उनकी आवश्यकता
पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही हैं। बड़ी बात यह है कि संचार ही अकेला ऐसा
विषय है, जिसमें प्रत्येक दिन कुछ न कुछ नया जुड़ जाता है, जो किसी भी विषय की शोध
परम्परा को अद्यतन व जीवन्त बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है ।
सच तो यह है कि संचार और जीवन्तता एक-दूसरे के पर्याय भी हैं और पूरक भी। यह
अनायास ही था कि पृथ्वी पर जीवन की सम्भावना के साथ ही संचार की अवधारणा ने भी
जन्म ले लिया था। एक कोशिकीय प्राणि अमीबा से लेकर जटिलतम संरचना के प्राणि
मनुष्य तक संचार ने भी स्वयं को बेहतर बनाने का काम किया। शरीर के भीतर की संचार
प्रणाली अलग ढंग से विकसित हुई तो शरीर के बाहर का संचार तन्त्र अलग रंग-रूप में
आगे बढ़ता गया। प्रारम्भ तो आदि मानव ने ही कर दिया था। हम यह मान सकते हैं कि
संचार के लिए सबसे पहले आदि मानव ने आग का सहारा लिया होगा। सबसे पहले उसने
मशाल बनायी होगी और कबीले के टीले पर खड़े होकर कभी बायीं ओर तो कभी दायीं
ओर में घुमाया होगा। कभी सिर के ऊपर गोल-गोल नचाया होगा या कभी क्रॉस का चिह्न
बनाते हुए मशाल से हवा में रेखाएँ खींचने की कोशिश की होगी। हर घुमाव के मायने तय
कर दिये गये होंगे। दूर से घूमती मशालों की भाषा पढ़ लेने की कोशिश होती होगी और
संचार को हुआ मान लिया जाता होगा। आग की खोज के बाद मांस पकाकर खाने की
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शोध प्रतिवेदन और शोध पत्र
( Research Report and Research Paper )
आँकड़ा संग्रहण और विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्ष की सम्यक् विवेचना करके शोध
प्रतिवेदन (Reeearch Report) लिखने का कार्य पूरा करना होता है। यह कार्य अत्यन्त
चुनौतीपूर्ण होता है। इसे अत्यन्त सतर्कता व सजगता से पूरा करना चाहिए। शोधार्थी के
लिए यह आवश्यक होता है कि वह शोध के प्रारम्भ में तय की गयी शोध समस्या या
उपकल्पना से शोध प्रक्रिया व निष्कर्ष के बीच स्थापित रिश्ते को सम्यक ढंग से विवेचित करे ।
वास्तविक में संचित आँकड़े और उनके विश्लेषण से जो परिणाम प्राप्त होते हैं, वे
प्रामाणिकता, विश्वसनीयता तथा उपादेयता की दृष्टि से सम्यक विवेचना (Interpretation)
की माँग रखते हैं। यह विवेचना इसलिए भी जरूरी होती है कि इसके द्वारा शोधार्थी अपने
शोध परिणामों को बेहतर ढंग से समझता है तथा उसे उन सिद्धान्तों के आधार पर परखने
का प्रयास करता है जिन्हें शोध के प्रारम्भ में तय किया गया और जिन पर आधारित
अध्ययन पहले हो चुका है। विवेचना का उद्देश्य व्याख्यात्मक अवधारणा की अवस्थापना
करना भी होता है, ताकि भविष्य की शोध सम्भावनाएँ बनायी जा सकें। यह तय है कि
शोधार्थी जब तक शोध निष्कर्ष और उसे प्रभावित करनेवाले कारकों को ठीक-ठीक समझकर
उनकी यथोचित व्याख्या नहीं करेगा, तब तक वह अपने शोध को अन्तिम रूप नहीं दे
सकेगा। इसलिए यह जरूरी है कि वह विवेचना करते समय इस बात का पक्का विश्वास
कर ले कि आँकड़ा संग्रहण, विश्लेषण और निष्कर्ष प्राप्त करने की प्रक्रिया प्रामाणिक व
त्रुटिरहित है तथा उसमें कहीं भी चूक नहीं हुई है। शोधार्थी को यह हमेशा ध्यान में रखना
चाहिए कि प्रारम्भिक उपकल्पना (Initial Hypothesis), अनुभवजन्य अवलोकन
(Empirical Observation) तथा सैद्धान्तिक अवधारणाओं (Theoretical Conceptions)
के बीच पारस्परिक सम्प्रेषण (Reciprocal Interaction or Communication) अवश्य होना
चाहिए। विवेचना के दौरान इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर शोधार्थी यह सम्प्रेषित करने में
सफल हो पाता है कि उसका शोध परिणाम क्या है, क्यों है तथा इसकी उपादेयता या
महत्त्व क्या है। बेहतर विवेचना के उपरान्त ही शोधार्थी को प्रतिवेदन लेखन (Report
Writing) प्रारम्भ करना चाहिए।
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आँकड़ों के स्रोत, संग्रहण एवं संरक्षण
(Sources, Collection and Processing of Data )
शोध के क्षेत्र में आँकडों का अत्यन्त महत्त्व है । आँकड़ों की पहचान, उनके स्रोत तक
पहुँचना, उनका संग्रहण करना तथा उनका संरक्षण करना जितने सम्यक् व शुचितापूर्ण ढंग
से सम्पन्न होगा, उतना ही अधिक गुणवत्तायुक्त शोध होगा । आँकड़ों यानी डाटा की
रोचकता व रोमांचकता से जुड़नेवाला शोधार्थी लगातार कुछ-न-कुछ नया पाने और सृजित
करने में जुटा रहता है। वर्तमान समय में संचार की दुनिया में आँकड़ों का महत्त्व बढ़ता जा
रहा है। ‘डाटा जर्नलिज़्म' नाम की एक विधा ही विकसित हो गयी है। यही वजह है कि
आँकड़ों का सम्यक् अध्ययन किया जाना आवश्यक है।
आँकड़ों का अर्थ (Meaning of Data )
तथ्यों को सामूहिक रूप से जब संख्यात्मक सूचना के रूप में प्रस्तुत किया जाता है,
तब उन्हें आँकड़ा कहते हैं। ये तथ्य किसी भी रूप में हो सकते हैं, जैसे लिखित सामग्री,
दस्तावेज, चित्र, वीडियो, ऑडियो, जनश्रुतियाँ, मौखिक संवाद-स्मृतियाँ, समाचार-पत्र,
पत्रिकाएँ, अभिलेख, शोध ग्रन्थ इत्यादि । ये सब आँकड़ों के स्रोत हैं और हम इनसे
मात्रात्मक व गुणात्मक सूचनाएँ प्राप्त करके उन्हें आँकड़ों में परिवर्तित करते हैं तथा उनकी
व्याख्या व विश्लेषण के माध्यम से निष्कर्ष तक पहुँचने का प्रयास करते हैं।
आँकड़ों के प्रकार (Types of Data )
संग्रहण की दृष्टि से आँकड़ों को दो प्रकारों में विभेदित किया गया है—
1. प्राथमिक आँकड़े ( Primary Data ) - प्राथमिक आँकड़े वे होते हैं, जिन्हें
शोधार्थी स्वयं अवलोकन, प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार, सर्वेक्षण या अनुभव से प्राप्त
करते हैं। वास्तव में ये मौलिक सूचनाएँ होती हैं, जिन्हें नये सिरे से पहली बार एकत्र किया
जाता है। कभी-कभी प्राथमिक आँकड़ों की संज्ञा उन सूचनाओं को कहा जाता है, जो पहली
बार सांख्यिकीय विश्लेषण से होकर गुजर रही हों।
2. द्वितीयक आँकड़े ( Secondary Data ) – ये वे आँकड़े होते हैं, जिन्हें पहले
हुए शोध में प्राथमिक आँकड़ों की तरह प्राप्त किया जा चुका होता है। इनमें पूर्व में