Sahitya Nirmann Ki Siksha
Item Weight | 250GM |
ISBN | 9788180000000 |
Author | Pandit Kishoridas Vajpai Shastri |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 88 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2011 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Sahitya Nirmann Ki Siksha
साहित्य निर्माण की शिक्षा - प्राणीमात्र अपने मन की बात प्रकट करने के लिए प्रायः शब्द का आश्रय लेता है। गौ अत्यन्त पीड़ित होने पर 'बाँ' करके पीड़ा प्रकट करती है, हुंकार भरकर वात्सल्य व्यजित करती है और वत्स के दूर होने पर जब वह रँभाती है, तो उस की चिन्ता प्रकट होती है। सिंह दहाड़कर अपना गर्व प्रकट करता है। कुत्ता भौककर अपना प्रतिरोधभाव व्यक्त करता है। शिशु रुदन-शब्द से अपना दुख बताता है और किलक कर प्रसन्नता प्रकट करता है। यह सब अव्यक्त या असंकेतितार्थ शब्द से होता है। मनुष्य ने अपनी बुद्धि से भाषा की रचना की। शब्दों में अर्थ-संकेत करके उन्हें सार्थक किया। सार्थक शब्द-समूह ही भाषा है। जिस समाज में संस्कृति जितनी ऊँची हुई, उसकी भाषा उतनी ही शक्तिशालिनी हुई। जो जितनी प्रतिभा रखता है, वह शब्द का उतना ही सुन्दर प्रयोग करता है। भाव को सबसे अच्छी तरह जो प्रकट कर सकता है, उसे 'कवि' कहते हैं।भाषा के द्वारा ज्ञान-विज्ञान का विस्तार होता है। लोग जो कुछ जानते हैं, दूसरों को भी बताना चाहते हैं। इसी प्रवृत्ति से उपयोगी साहित्य की रचना होती है। कवि अपने मन की बात अनेक तरह से कहता है। आलोचक जो कुछ या जैसा कुछ समझता है, दूसरों को बतलाता है। यों सर्वत्र आत्माभिव्यक्ति हो शब्द के द्वारा होती है-ज्ञान-प्रकाशन में भी, भाव-प्रकाशन में भी और व्याख्या करने में भी इस पुस्तक में भी लेखक की आत्माभिव्यक्ति ही है।
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