Ras-Purush Pt Vidyaniwas Mishra
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| Item Weight | 200 Grams |
| ISBN | 978-9380186245 |
| Author | Narmada Prasad Upadhyay |
| Language | Hindi |
| Publisher | Prabhat Prakashan |
| Book Type | Hardbound |
| Publishing year | 2010 |
| Edition | 1st |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Ras-Purush Pt Vidyaniwas Mishra
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महाप्रयाण का अर्थ उनके संदर्भ में मुझे यही लगता है कि कहीं उन्हें पाणिनि न मिल गए हों, जिनकी व्याकरण तकनीक की गलियों में अपने यौवन में वे उलझ गए थे। कहीं भवभूति न मिल गए हों, जिनके राम के मुकुट को बारिश में भीगते हुए देखकर वे कभी कठोर नहीं हो पाए। कहीं कालिदास न मिल गए हों, जिनसे साक्षात्कार करते हुए वे शकुंतला के उस श्रमसिंचित सौंदर्य को निहारने लगे हों, जिस पर कभी दुष्यंत इसलिए रीझ गए थे कि वह तपस्वी बाला अपने उपवन के वृक्षों को पानी देते ठिठककर एक हाथ से ढीले केशों में खोंसे हुए शिरीष के फूल को सँभाल रही थी और दूसरे हाथ से अपने मस्तक पर आई पसीने की बूँदों को पोंछने का यत्न कर रही थी। कहीं राहुल न मिल गए हों, जिनसे शब्दकोश की चर्चा चल पड़ी हो, कहीं नागार्जुन से मुलाकात न हो गई हो, जिनसे भोजपुरी में वे बतियाने बैठ गए हों। कहीं अज्ञेय न टकरा गए हों, जिनके सामने वे लौटने की जिद्द नहीं कर सकते, और कहीं अनिकेत नवीन न मिल गए हों, जिन्होंने कहा हो कि तुम भी अनिकेतन हो, क्या करोगे लौटकर?पं. विद्यानिवास मिश्र के अनन्य स्नेहभाजन और आलोक-पुत्र श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय द्वारा उनके जीवन के रस और भाव का दिग्दर्शन कराती भावपूर्ण पुस्तक। —इसी संग्रह से
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