Rajput Vanshawali
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Author | Ishwar Singh Madadh |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthaghar |
Pages | NA |
ISBN | 978-8186103272 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.4 kg |
Rajput Vanshawali
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राजपूत वंशावली : राजपूत ग्रन्थमाला में समस्त देश के राजपूतों की उत्पत्ति के 36 वंश, प्रत्येक वंश की शाखा, परशाखा आदि का विस्तृत विवेचन एवं प्रत्येक वंश के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता एवं पवित्र परम्पराओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। Rajput Vanshawaliराजपूत वंशावली ग्रन्थ से समस्त क्षत्रिय समाज को अपने विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जिसमें समाज में संगठनात्मक विचारधारा को बल मिलेगा।8220;दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,चार तासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण,भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान,चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण।8221;that is अर्थ : दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तीस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग-अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का प्रमाण मिलता है।Rajput Vanshawali (Rajput Vanshavali)also वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल, बौद्ध, मौर्य, गुप्त और हर्षवर्धन के शासन काल तक देश की रक्षक जाति 8216;क्षत्रिय8217; के नाम से अभिहित की जाती रही, किन्तु हर्षवर्धन के शासन काल के बाद इतिहास में एक नाटकीय मोड़ आता है और सारी क्षत्रिय जाति विलुप्त होकर एक नयी जाति 8216;राजपूत8217; आ जाती है। यह है इतिहासकारों की मिली भगत। यदि उनसे पूछा जाए कि वह सारी क्षत्रिय जाति एकदम से कहाँ चली गयी और राजपूत जाति एकदम कहाँ से आ गयी तो वहीं पर उनके पोल-पिटारे खुल जाते हैं और बुद्धि का दिवालियापन निकल जाता है।in fact हर्षवर्धन के शासन के बाद, क्योंकि देश में एकसूत्र राज्य का अभाव हो गया और सभी राज्य स्वतंत्र हो गये। इन राज्यों के अधिकांश शासक, क्योंकि राजपूत ही थे, अतः यह युग राजपूत युग कहा जाने लगा। इतिहासकारों की विडम्बना देखिए। उन्हीं क्षत्रिय शासकों के बंधाज राजपूतों को उन्होंने एक नयी जाति बना दिया और उन्हें शक, हणादि विदेशियों की सन्तान बना डाला। इस ज्वलन्त और जटिल गुन्थी को सुलझाने का मैंने इस पुस्तक में प्रयत्न किया है।indeed राजपूतों के वंश यद्यपि इतने अधिक है कि यदि सारी आयु भी इन्हें खोजते रहे. तो पूरे नहीं होते। यह विषय अत्यधिक जटिल है। कई वंश तो गाँवों, मुहल्लों और यहां तक कि घरों तक सीमित हो गये हैं। कई प्राचीन वंश लुप्त हो चुके हैं। कई वंश परिस्थितिवंश अन्य जातियों में मिल चुके हैं। कई वंशों की जातियां ही अलग बन चुकी हैं। फिर भी इस सारे विषय पर मैंने प्रकाश डालने की कोशिश की है।click >> अन्य सम्बन्धित पुस्तकेंclick >> YouTube कहानियाँRelatedTRUE
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