Rajasthani Vyakaran aur Sahitya ka Itihas
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | NA |
Author | Padmashri Sitaram Lalas |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 0 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Rajasthani Vyakaran aur Sahitya ka Itihas
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राजस्थानी व्याकरण और साहित्य का इतिहास : ष्किसी भी भाष्षा की समपूष्ष्टता एवं सम्पूर्णता के लिए तीन घटक अतिआवश्यक माने जाते है। भाष्षा के साहित्य का इतिहास, उसकी व्याकरण तथा शब्द भंडार प्रमाणित करता भाष्षा का सबदकोस राजस्थानी भासा को पुनर्जीवन प्रदान करने वाले पातंजलि तथा पाणिनी के समकक्ष मान्यता प्राप्त पद्मश्री, मनीष्षी डा. सीताराम लालस ने अपने जीवन का एकमात्र ध्येय राजस्थानी भाष्षा को संजीवनी प्रदान करना ही बना लिया था। अतः अपनी साठ वष्र्षो की तपस्या से उद्यत राजस्थानी सबद कोस की रचना द्वारा उन्होने तीनों घटकों को प्रमाणित कर दिया। वृहद राजस्थानी सबद कोस में राजस्थानी भाष्षा के अथाह शब्द भंडार के अतिरिक्त-सबदकोस की प्रस्तावना में व्याकरण तथा साहित्य का इतिहास व भाष्षा की विवेचना द्वारा मूल-विशेष्षताओं तथा चरित्र को समझाते हुए वर्गीकृत भी किया है। पुस्तक में राजस्थानी भाष्षा के साहित्य की सम्पूर्ण प्रवृति एवं प्रकृति को समझा कर उसका विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया गया है। राजस्थानी साहित्य की तीन प्रमुख प्रवृतियों को स्पष्ष्ट किया गया है यथा जैन साहित्य, चारण साहित्य तथा लोक साहित्य इन तीनों प्रवृतियों की प्रकृति को भी समझाया गया है। गद्य तथा पद्य रूप में उपलब्ध पोराणिक, मध्यकालीन एवं नवीन साहित्य के विभाजन उप विभाजन द्वारा साहित्य के प्रकार को स्पष्ष्ट प्रमाणित किया गया तथा उसका विवेचन किया गया है। राजस्थानी भाष्षा मंे प्रयुक्त विभिन्न विधाओं यथा गद्य में-बात, ख्यात, गाथा, दवावेत रासौ, लोककथाओं आदि तथा पद्य में गीत, डींगल गीत, दोहा, सोरठा, झमाल, छंद एवं लोकगीत आदि को पुस्तक में प्रचुर स्थान देकर उपयोगी बनाया गया है। इसी तरह साहित्य के इतिहास को तीन कालों में विभाजित कर (आदिकाल-मध्यकाल तथा वर्तमान काल) तत्सम्बन्धी रचित साहित्य, ग्रंथ एवं प्रमुख रचनाकारों के जीवन वृत सहित उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त राजस्थानी भाष्षा तथा साहित्य, संस्कृति, व्याकरण पर देश विदेश के अधिकांश विद्वानों की प्रतिक्रिया एवं टिप्पणियां उद्यत कर उसके महत्व को दर्शाया गया है। प्रथमतः ‘‘राजस्थानी सबद कोस’’ की प्रस्तावना के रूप में उद्यत इन अवतरणों की महत्ता को समझाते हुए विश्वविद्यालय के हिंदी राजस्थानी के स्नात्तकोत्तर पाठ्यक्रम हेतु पाठय एवं संदर्भ रूप में सम्मिलित किया गया था। इसी बात को ध्यान में रखकर पूर्व में भी उपसमिति ने इसे पृथक पुस्तक के रूप में प्रकासित किया था। परन्तु वह अब अप्रायय है। अतः पुन भाष्षा के विद्वानों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों हेतु पृथ्क पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।षRelatedTRUE
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