Rajasthan Mein Prachalit Chikitsa Paddhatiyan
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Author | Seema Meena |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthaghar |
Pages | NA |
ISBN | -: 9789394649170 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.4 kg |
Rajasthan Mein Prachalit Chikitsa Paddhatiyan
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राजस्थान में प्रचलित चिकित्सा पद्धतियाँसृष्टि के आदिकाल से ही पुरूषार्थ की प्राप्ति के लिए मानव प्रयास करता रहा है। surely इसके लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है परन्तु इसके बाधक के रूप में मानव के समक्ष रोग उत्पन्न हुए। इन विघ्नों के निवारणार्थ मानव प्रयास करता रहा, जिसके फलस्वरूप आयुर्वेद के अवबोध की प्राप्ति हुई। आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा आतुर व्यक्ति के विकार का प्रशमन करना है। संसार के बदलते परिवेश में आधुनिक विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों के अनेक परिवर्तन आए परन्तु आज भी आयुर्वेद विज्ञान के सिद्धान्त अकाट्य बने हुए हैं। Rajasthan Prachalit Chikitsa Paddhatiyan (Medical Practices Prevalent In Rajasthan)शाश्वत और अनादि आयुर्वेद अवबोध परम्परा से अग्रिम संतति के रूप में पुष्ट होता रहा है। conversely सैद्धान्तिक रूप से नियत और सर्वकालिक होते हुए भी इसके व्यावहारिक स्वरूप में युगानुरूप संदर्भ में परिवर्तन आवश्यक रूप में होता रहा है समय-समय पर महर्षियों, ऋषियों और ऋषितुल्य विद्वानों और अनुसंधानकर्त्ताओं ने इसके प्रयोग में विविधता को अन्विष्ट किया है। इसके माध्यम से प्राप्त परिणामों को अपने-अपने ग्रंथों, व्याख्याओं या टिप्पणियों में उल्लिखित कर दिया है।Rajasthan Mein Prachalit Chikitsa Paddhatiyan (Medical Practices Prevalent In Rajasthan)also महर्षियों या आचार्यों द्वारा समय-समय पर अवबोध से प्राप्त एवं ग्रंथों में उपदिष्ट यह ज्ञान विभिन्न कारणों से तिरोहित भी होता रहा है। ऐसा ज्ञान उपयोगी होने के कारण लुप्त होता हुआ भी तात्कालीन विशिष्ट ग्रंथों, अन्य व्याख्याओं, पुरातात्विक अवशेष���ं, स्मृतिचिंहो, ताम्रपत्रों, शासकीय विवरणों, संस्मरणों, यात्रा वृतान्तों, विशिष्ट घटनाओं एवं मुद्राओं आदि अंशों को किसी न किसी रूप में छोड़ देता है। अत: इन सबसे प्राप्त छोटे-छोटे अशों को कड़ियों के रूप में जोड़कर श्रृंखलाबद्ध करने का कार्य इतिहास विशेषज्ञों ने किया।यदि मारवाड़ के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो यहाँ आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रचलन के प्रमाण प्राप्त होते है; यथा 8211; महारानियों को होने वाले उदर विकार, ग्रंथि रोग, मुंह से खून आना, खून की उल्टी होना, दाँत दर्द, महाराजाओं के होने वाले बुखार, फोड़ा 8211; फुन्सी, खूनी दस्त आदि के उपचार के लिए पाली, सोजत, भीनमाल, परबतसर, ब्यावर व मंदसौर से वैद्य बुलाए जाते थे। जो कि जड़ी बूटीयों के माध्यम से इलाज करते थे। (Medical Practices Prevalent In Rajasthan)click >> अन्य सम्बंधित किताबेंfor updates >> Facebookclick >> YouTube कहानियाँRelatedTRUE
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