Raat Ka Reporter
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9387155558 |
Author | Nirmal Verma |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 184 |
Book Type | Hardbound |
Edition | 2nd |

Raat Ka Reporter
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निर्मल वर्मा हिन्दी के उन गिने-चुने साहित्यकारों में से हैं, जिन्हें अपने जीवन-काल में ही अपनी कतियों को 'क्लासिक' बनते देखने का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ है। प्रायः सभी आलोचक इस बात पर सहमत हैं कि हिन्दी की वर्तमान कहानीदिशा को एक निर्णायक मोड़ देने का श्रेय उन्हेंवे दिन, लाल टीन की छत और एक चिथड़ा सख जैसी कालजयी कृतियों के बाद उनका उपन्यास रात का रिपोर्टर सम्भवतः आपातकाल के दिनों को लेकर लिखा गया हिन्दी में पहला उपन्यास है। और, उनके कथा लेखन में नये मोड़ का सूचक भी। उपन्यास का कथा-नायक रिशी यहाँ एक ऐसे पत्रकार के रूप में सामने है, जिसका आन्तरिक संकट उसके बाह्य सामाजिक यथार्थ से उपजा है... हालात ने उसे जैसे अस्वस्थ और शंकालु बना दिया है। बाहर का डर अन्दर के डर से घुलमिल कर रिशी के जीवन में तूफान खड़ा कर देता है, जिससे न भागा जा सकता है और न ही जिसे भोगा जा सकता है। वस्तुतः यह एक ऐसी कथाकृति है, जो एक बुद्धिजीवी की चेतना पर पड़ने वाले युगीन दबावों को रेखांकित करती है और उन्हें उसके व्यवहार में घटित होते हए दिखाती है। इससे होते हुए हम जिस माहौल से गुजरते हैं, वह चाहे हमारे अनुभव से बाहर रहा हो या हम उससे बाहर रहे हों, लेकिन वह हमारी दुनिया की आज़ादी के बनियादी सवालों से परे नहीं है।
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