Priya Ram, Priya Nirmal
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Item Weight | 350 |
ISBN | 978-9360867041 |
Author | Nirmal Verma, Ed. Gagan Gill |
Language | Hindi |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Pages | 200 |
Dimensions | 21*13*2 |
Publishing year | 2024 |
Edition | 1st |

Priya Ram, Priya Nirmal
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निर्मल वर्मा और रामकुमार के बीच सहोदर होने के अलावा जो एक साझा सूत्र रहा, वह है जीवन और संसार को देखने का उनका ढंग। प्रकृति से किंचित अलग होने के बावजूद रचना और अनुभव के सत्य को पहचानने और अर्जित करने की उनकी आकांक्षा एक ही मूल से जुड़ी लगती है। देश-विदेश के विभिन्न स्थानों से लिखे गए ये पत्र दोनों भाइयों के बचपन तक भी जाते हैं, और उनके स्वप्नों के अन्तस्तल तक भी। इन्हें पढ़ते हुए हम महसूस कर पाते हैं कि निर्मल वर्मा के रूप में हम जिस कथाकार को जानते हैं, उसके बनने की प्रक्रिया क्या रही होगी।ये पत्र निर्मल वर्मा के जीवन के उन पहलुओं से भी हमें परिचित कराते हैं, जिनसे साधारण पाठक परिचित नहीं है। एक संघर्षरत युवा लेखक, विदेश में भटकता एक कलाप्रेमी, एक बच्ची के नये-नये बने पिता, पहली पत्नी के साथ उनका जीवन, कम्युनिज़्म से उनके बदलते रिश्ते, और लेखक के रूप में उनके आत्म का विकास, यह सब एक फ़िल्म की तरह इन पत्रों में हमारे सामने आता है।पुस्तक में इन पत्रों के अलावा भी कुछ संग्रहणीय सामग्री संकलित है जिसमें निधनोपरांत निर्मल वर्मा को लिखा रामकुमार का एक मार्मिक पत्र भी है। इस पुस्तक से गुज़रना अपने प्रिय लेखक को और नज़दीक से जानना है।
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