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Pratinidhi Kavitayen : Vishnu Khare
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विष्णु खरे एक विलक्षण कवि हैं—लगभग लासानी। एक ऐसा कवि जो गद्य को कविता की ऊँचाई तक ले जाता है और हम पाते हैं कि अरे, यह तो कविता है! ऐसा वे जान-बूझकर करते हैं—कुछ इस तरह कि कविता बनती जाती है—कि गद्य छूटता जाता है। पर शायद वह छूटता नहीं—कविता में समा जाता है। ...वे लम्बी कविताओं के कवि हैं—जैसे मुक्तिबोध लम्बी कविताओं के कवि हैं। पर दोनों में अन्तर है। मुक्तिबोध की लम्बाई लय के आधार को छोड़ती नहीं—धीरे-धीरे वह कम ज़रूर होता गया है। विष्णु खरे गद्य की पूरी ताक़त को लिए-दिए चलते हैं—उसे तोड़ते-बिखेरते हुए, बीच-बीच में संवाद का सहारा लेते और जहाँ-तहाँ उसे डालते हुए चलते हैं और लय को न आने देते हुए।
किसी चीज़ को शब्दों में ज़िन्दा कर देना एक कवि की सिफ़त है और विष्णु खरे के पास वह जादू है।
—केदारनाथ सिंह Vishnu khare ek vilakshan kavi hain—lagbhag lasani. Ek aisa kavi jo gadya ko kavita ki uunchai tak le jata hai aur hum pate hain ki are, ye to kavita hai! aisa ve jan-bujhkar karte hain—kuchh is tarah ki kavita banti jati hai—ki gadya chhutta jata hai. Par shayad vah chhutta nahin—kavita mein sama jata hai. . . . Ve lambi kavitaon ke kavi hain—jaise muktibodh lambi kavitaon ke kavi hain. Par donon mein antar hai. Muktibodh ki lambai lay ke aadhar ko chhodti nahin—dhire-dhire vah kam zarur hota gaya hai. Vishnu khare gadya ki puri taqat ko liye-diye chalte hain—use todte-bikherte hue, bich-bich mein sanvad ka sahara lete aur jahan-tahan use dalte hue chalte hain aur lay ko na aane dete hue. Kisi chiz ko shabdon mein zinda kar dena ek kavi ki sifat hai aur vishnu khare ke paas vah jadu hai.
—kedarnath sinh

 

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अनुक्रम 

1. टेबिल -11

2. अकेला आदमी -14 

3. कोशिश -18

4. चे -19 

5. डरो -19

6. उल्लू -20 

7. देर से आने वाले लोग -22

8. गूँगा -24 

9. लड़कियों के बाप -27

10. द्रौपदी के विषय में कृष्ण -30

11. गीध-32

12. हमारी पत्नियाँ -33

13. दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है -36

14. लालटेन जलाना -39

15. लापता -43

16. चौथे भाई के बारे में -46 

17. एक कम -49

18. बेटी -50

19. सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा -51

20. सिंगल विकेट सीरीज़ -60

21. जो टेम्पो में घर बदलते हैं -61

22. नेहरू-गाँधी परिवार के साथ -66

23. अपने आप और बेकार-72

24. हन्यते-75

25. गुंग महल-78

26. ज़िल्लत -82

27. हर शहर में एक बदनाम औरत होती है-85

28. वृंदावन की विधवाएँ -91

29.1991 के एक दिन  -92

30. वाक्यपदीय-95

31. प्रतिसंसार-97

32. आवाजाही -99

33. नई रोशनी -101

34. विलोम-102

35. उसी तरह-104

36. तीन पत्ते/पत्ती उर्फ़ फ्लश या फलास खेलते वक़्त बरती जानेवाली कुछ एहतियात - 105 

37. आख़िरी - 110

38. आलैन -111

39. उनसे पहले  -113

40. दूरियाँ-114

41. बरअक्स - 116 

42. संकेत - 117 

43. सुन्दरता - 118 

44. कल्पनातीत - 120 

45. किन्तु - 122 

46. झूठे तार - 122 

47. बजाए-ग़ज़ल - 126 

48. तुम्हें - 127

 

टेबिल
उन्नीस सौ अड़तीस के आसपास
जब चीजें सस्ती थीं और फ़र्नीचर की दो-तीन शैलियाँ ही प्रचलित थीं
मुरलीधर नाज़िर ने एक फ़ोल्डिंग टेबिल बनवाई
जिसका ऊपरी तख़्ता निकल आता था
और पाये अंदर की तरफ़ मुड़ जाते थे
जिस पर उन्होंने डिप्टी कमिश्नर जनाब गिल्मोर साहब बहादुर को
अपनी ख़ास अंग्रेज़ी में अर्ज़ियाँ लिखीं
छोटे बाज़ार की रामलीला में हिस्सा लेने वालों की पोशाक
चेहरों और हथियारों का हिसाब रखा
और गेहुएँ रंग की महाराजिन को मुहब्बतनामा लिखने की सोची
लेकिन चूँकि वह उनके घर में ही नीचे रहती थी
और उसे उर्दू नहीं आती थी
इसलिए दिल ही दिल में मुहब्बतनामे लिख-लिखकर फाड़ते रहे
और एक चिलचिलाती शाम जाने क्या हुआ कि घर लौट
बिस्तर पर यूँ लेटे कि अगली सुबह उन्हें देख सकी
और इस तरह अपने एक नौजवान शादीशुदा लड़के
दो जवान अनब्याही लड़कियों और बहू और पोते को
मुहावरे के मुताबिक रोता-बिलखता लेकिन असलियत में मुफ़लिस
छोड़ गए
टेबिल, जिस पर नाज़िर मरहूम काम करते थे
और जो क़रीब क़रीब नई थी.
मिली उनके बेटे सुंदरलाल को

यहाँ रहो इसे बसाओ

अभी यह सिर्फ़ एक मकान है एक शहर की चीज़ एक फ़्लैट
जिसमें ड्राइंग रूम डाइनिंग स्पेस बैडरूम किचन
जैसी अनबरती बेपहचानी ग़ैर चीजें हैं
आओ और इन्हें उस घर में बदलो जिसमें यह नहीं थीं
फिर भी सब था और तुम्हारे पास मैं रहता था
जिसके सपने अब भी मुझे आते हैं
कुछ ऐसा करो कि इस नए घर के सपने पुराने होकर दिखें
और उनमें मुझे दिखो
बाबू भौजी बड़ी बुआ छोटी बुआ तुम
 
लालटेन जलाना
लालटेन जलाना उतना आसान बिलकुल नहीं है
जितना उसे समझ लिया गया है
अव्वल तो तीन-चार सँकरे कमरों वाले छोटे-से मकान में भी
कम से कम तीन लालटेनों की ज़रूरत पड़ती है
और रोज़ किसी को भी राजी करना मुश्किल है कि
वह तीनों को तैयार करे और
एक ही आदमी से हर शाम
यह काम करवा लेना तो असंभव है
घर में भले ही कोई औरत हो
सिर्फ़ एक बाप और तीन संतानें हों तो भी न्यायोचित ढंग से
बारी-बारी तीनों से लालटेनें जलवाना कठिन नहीं
यह ज़रूर है कि जब दिया- बत्ती की बेला आए

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