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Pratinidhi Kavitayen : Jaishankar Prasad
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प्रसाद का कवि-कर्म 'आन्तर हेतु' की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि वे मूलत: सूक्ष्म अनुभूतियों के कवि हैं। इनकी अभिव्यक्ति के लिए वे रूप, रस, स्पर्श, शब्द और गंध को पकड़ते हैं—कहीं एक की प्रमुखता है तो कहीं सभी का रासायनिक घोल। ...वे अनेक विधियों से संवेगों को आहूत करते हैं। ...प्रसाद ने करुणा का आह्वान अनेक स्थलों पर किया है। मूल्य रूप में इसकी महत्ता को आज भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि आज तो इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है। ...'ले चल मुझे भुलावा देकर' में पलायन का मूड है तो 'अपलक जागती हो एक रात' में रहस्य का। किन्तु इन क्षणों को प्रसाद की मूल चेतना नहीं कहा जा सकता। वे समग्रत: जागरण के कवि हैं और उनकी प्रतिनिधि कविता है—'बीती विभावरी जाग री।'
इस संग्रह में प्रसाद की उपरिवर्णित कविताओं के साथ 'लहर' से कुछ और कविताएँ, तथा इसके अलावा 'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'स्कन्दगुप्त', 'चन्द्रगुप्त' व 'ध्रुवस्वामिनी' नाटकों में प्रयुक्त कविताओं को भी संकलित किया गया है। Prsad ka kavi-karm antar hetu ki or agrsar hota hai, kyonki ve mulat: sukshm anubhutiyon ke kavi hain. Inki abhivyakti ke liye ve rup, ras, sparsh, shabd aur gandh ko pakadte hain—kahin ek ki pramukhta hai to kahin sabhi ka rasaynik ghol. . . . Ve anek vidhiyon se sanvegon ko aahut karte hain. . . . Prsad ne karuna ka aahvan anek sthlon par kiya hai. Mulya rup mein iski mahatta ko aaj bhi asvikar nahin kiya ja sakta. Balki aaj to iski aavashyakta aur badh gai hai. . . . Le chal mujhe bhulava dekar mein palayan ka mud hai to aplak jagti ho ek rat mein rahasya ka. Kintu in kshnon ko prsad ki mul chetna nahin kaha ja sakta. Ve samagrat: jagran ke kavi hain aur unki pratinidhi kavita hai—biti vibhavri jaag ri. Is sangrah mein prsad ki uparivarnit kavitaon ke saath lahar se kuchh aur kavitayen, tatha iske alava rajyashri, ajatshatru, skandgupt, chandrgupt va dhruvasvamini natkon mein pryukt kavitaon ko bhi sanklit kiya gaya hai.

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लहर से 

 2. उठ उठ री  लघु-लघु लोल लहर ..............10  
3. ले चल वहाँ भुलावा देकर .................. 12  
4. हे सागर संगम अरुण नील ................... 14  
5. उस दिन जब जीवन के पथ में ................ 17  
6. बीती विभावरी जाग री ..................... 20  
7. आह रे वह अधीर यौवन ..................... 22 
8. चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर ............ 25  
9. तुम्हारी आँखों का बचपन ................. 28 
10. अब जागो जीवन के प्रभात ................ 30  
11. कोमल कुसुमों की मधुर रात ............... 32  
12. कितने दिन जीवन जलनिधि में ............. 34  
13. कुछ दिन कितने सुंदर थे ................. 36  
14. मेरी आँखों की पुतली में ................ 38
15. अपलक जगती हो एक रात ................... 40  
16. काली आँखों का अंधकार ................. 42  
17. अरे कहीं देखा है तुमने ................ 44  
18. अरे आ गई है भूली-सी .................. 46  
19. निधरक तूने ठुकराया तब ................ 48 
20. ओ री मानस की गहराई ................... 50  

 

कामायनी से 

21. तुमुल कोलाहल कलह में ............................... 52

स्कंदगुप्त से 

22. आह ! वेदना मिली विदाई ............................ 55

राज्यश्री से   

23. आशा विकल हुई है मेरी .............................. 58

24. सम्हाले कोई कैसे प्यार ............................. 60

अज्ञातशत्रु से  

25. मीड़ मत खिंचे बीन के तार ......................... 62

स्कंदगुप्त से 

26. संसृति के वे सुंदरतम क्षण ........................ 64 

27. छेड़ना उस अतीत स्मृति से ....................... 66 

28. सब जीवन बीता जाता है ........................... 68 

29. माझी साहस है खे लोगे ............................. 70 

30. भाव-निधि में लहरियाँ तभी .......................... 72 

31. अगरु-धूम की श्याम लहरियाँ ....................... 74 

एक घूँट से 

32. खोल तू अब भी आँखें खोल ......................... 76 

33. जीवन में उजियाली है ............................... 78

34. जलधर की माला ..................................... 80

चंद्रगुप्त से

35. तुम कनक किरण के अंतराल में ................... 82

36. अरुण यह मधुमय देश हमारा ....................... 84 

37. प्रथम यौवन-मदिरा से मत्त ......................... 86

38. आज इस यौवन के माधवी कुंज में ................ 88 

39. -सीकर से नहला दो ................................. 90

40. मधुप कब एक कली का है ........................ 92

41. मेरी जीवन की स्मृति ........................ 94 

42.हिमाद्रि तुंग श्रृंग से ......................... 96 

43.सखे ! यह प्रेममयी रजनी ......................... 98 

ध्रुवस्वामिनी से

44.यह कसक अरे आँसू सह जा ......................... 100 

45.यौवन तेरी चंचल छाया ........................... 102 

46.अस्ताचल पर युवती संध्या की .................... 104 

चंद्रगुप्त से

47.निकल मत बाहर दुर्बल आह .......................106



उठ
उठ री लघु-लघु लोल लहर!
करुणा की नव अँगराई-सी,
मलयानिल की परछाईं-सी,
                               इस सूखे तट पर छिटक छहर!
शीतल कोमल चिर कंपन-सी,
दुर्ललित हठीले बचपन-सी,
तू लौट कहाँ जाती है री-
                               यह खेल खेल ले ठहर-ठहर!
उठ-उठ गिर-गिर फिर-फिर आती,
नर्तित पद-चिह्न बना जाती,
सिकता की रेखाएँ उभार-
                               भर जाती अपनी तरल- सिहर!
तू भूल  री, पंकज वन में,
जीवन के इस सूनेपन में,
 प्यार-पुलक से भरी दुलक!
                                चूम पुलिन के विरस अधर!

आशा विकल हुई है मेरी,
प्यास बुझी  कभी मन की रे!
                               दूर हट रहा सरवर शीतल,
                               हुआ चाहता अब तो ओझल,
                               झुक जाती हैं पलकें दुर्बल!
                               ध्वनि सुन  पड़ी नव घन की रे!
 बेपीर पीर ! हूँ हारी,
जाने दे, हूँ मैं अधमारी,
सिसक रही घायल दुखियारी-
गाँठ भूल जीवन-धन की रे!
                               आशा विकल हुई है मेरी,
                               प्यास बुझी  कभी मन की रे!

 

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