Police Vyavastha Par Vyangya
Author | Giriraj Sharan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9352664115 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1st |
Police Vyavastha Par Vyangya
राज्य-व्यवस्था चलाने के लिए पहले ' वरदीधारियों ' की एक ही जाति हुआ करती थी । सरकारी भाषा में उसे ' सिपाही ' कहा जाता था । लेकिन यह ' अंग्रेज श्री ' के भारत आने से पहले की बात है । अंग्रेज क्योंकि स्वभाव से ' विभाजन- प्रिय ' लोग हैं, सो उन्होंने अपनी इस विभाजन-प्रवृत्ति का परिचय देते हुए ' सिपाही जाति ' का रातोरात विभाजन कर दिया । उन्होंने इस जाति में से एक और प्रजाति निकाली, जिसका नाम रखा ' पुलिस ' ।विभाजन के बाद इनके कार्यक्रम अलग- अलग हो गए । सिपाही शत्रु के विरुद्ध युद्ध छिड़ने के अवसर पर मोरचा सँभालते हैं, तो पुलिस अपने लोगों के बीच लड़ाई के अवसर पर । पहला लड़ने का काम करता है तो दूसरा लड़ाने का । और आप भलीभांति जानते हैं कि लड़ने से कहीं अधिक मुश्किल काम है लड़ाने का ।बचपन में हम एक कहावत सुनते थे-' भाग रे सिपाही, चोर आया ' । तब हम नहीं समझते थे कि चोर के आने पर सिपाही का भाग जाना क्यों आवश्यक है! लेकिन अब समझते हैं और खूब समझते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे पुलिस-तंत्र विकास की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चोरों की दिलेरी और पुलिस की फरारी बढ़ रही है । इस झंझट से मुक्त होते हुए फिलहाल हम यह मुकदमा उन बुद्धिजीवी लेखकों के सुपुर्द करते हैं, जो इस सिद्धांत को नहीं मानते और पुलिस के अंदर झाँकने का बार-बार प्रयास करते हैं । आप इनसे मिलिए और पुलिस का चिट्ठा पढ़िए ।तिल-तिलकर तिलमिलाने और हास्य स्थलों पर ठहाका लगाने को विवश करते हैं ये व्यंग्य ।
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