Paritapt Lankeshwari
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Item Weight | 543 Grams |
ISBN | 978-9351861669 |
Author | Mridula Sinha |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2019 |
Edition | 1st |

Paritapt Lankeshwari
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मेरी आँखें बंद हो गईं। कान भी आगे कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। युद्ध, युद्ध, युद्ध। केवल युद्ध की तैयारी। यह कैसा वरदान। ब्रह्मा ने इस संसार की रचना की है। महेश इसके प्रतिपालक हैं। फिर अपने भक्तों को ऐसे वरदान क्यों देते हैं जो उनकी बसाई दुनिया को समाप्त करने की मनोकामना रखता हो? मेरे पुत्र को मिले वरदानों का उपयोग मात्र युद्धभूमि में ही हो सकता है। युद्धभूमि, जहाँ धन-जन की हानि होती है। पशु भी मारे जाते हैं। हजारों-लाखों विधवाएँ अपना जीवन विलाप कर ही बिताने के लिए बाध्य होती हैं। विध्वंस-ही-विध्वंस। निर्माण नहीं। रचना नहीं। मेरे मानस का प्रवाह मेरे पति की मनःस्थिति से बिलकुल विपरीत दिशा में हो रहा था। मेरे पति और देवर विभीषण को भी मेरे मानस की थाह थी। मेघनाद की जयघोष का उच्च स्वर था। सर्वत्र उत्साह और प्रसन्नता का वातावरण। मैं ही क्यों अवसाद में डूबी जा रही थी। मैंने मन को समझाया। दृढ़ किया। वर्तमान में जीने का संकल्प लिया। भूत और भविष्य की वीथियों में चल-चलकर थक गया था मन। इसीलिए तो वर्तमान में लौटना थोड़ा सुखद लगा।—इसी उपन्यास से
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