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दर्शन शास्त्र के अध्येता डॉ. अनिल कुमार पाठक का काव्य-संग्रह 'पारस बेला' माता-पिता को शब्द-शब्द समर्पित है। अध्यवसाय से उपार्जित ज्ञानराशि से परिपूर्ण एवं उत्तम संस्कारों में पले-बढ़े कवि ने इस कृति में अपने माता-पिता के त्याग, स्नेह, ममत्व का ही वर्णन नहीं किया है, अपितु संपूर्ण सृष्टि की संतानों को सचेत भी किया है। 'पारस-बेला' की रचनाएँ वैयक्तिक न होकर सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक हैं, क्योंकि संसार में अगर कोई जीवंत ईश्वरीय सत्ता है तो वह केवल माता-पिता के रूप में ही है। कवि ने इस बात को अपने गीतों में हृदय की अतल गहराइयों से स्वीकार किया है। आज के भौतिकवादी युग में जहाँ विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक चैनल/प्रोडक्शन घरानों के द्वारा उत्पादित एवं प्रसारित धारावाहिक 'परिवार' जैसी प्राचीन, पारंपरिक एवं गौरवशाली संस्था की गरिमा पर कुठाराघात कर रहे हैं, वहीं 'परिवार' नामक संस्था डगमगा रही है तथा बच्चों का माता-पिता के प्रति भाव नकारात्मकता की ओर अग्रसर हो रहा है। ऐसे संक्रमण काल में 'पारस-बेला' कृति एक शीतल प्राणदायिनी मलयानिल की तरह है, जो प्रदूषित वातावरण में संजीवनी सिद्ध होती है। यदि इस कृति के पारायण से राष्ट्र की युवा पीढ़ी केवल माता-पिता के प्रति आदर-भाव को ही धारण कर लेगी तो कृति का अभीष्ट पूर्ण हो जाएगा। जीवन की आपा-धापी में भी माता-पिता के प्रति दायित्व का बोध सदैव बना रहे, यह भी कृति का उद्देश्य है__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमशुभाशंसा — 7प्रस्तावना — 15भूमिका — 21वंदन1. मैं गीत उन्हीं के गाता हूँ — 312. मात-पिता बिन सब रीता है — 33श्रवण3. सच में मैं नहिं श्रवण कुमार — 374. श्रवण कुमार कहाँ अब कोई... 39पारस-परस5. नया सवेरा, नई रोशनी लाए मेरे बाबूजी — 516. कोई मुझसे नहीं कहे, 'बाबूजी' मेरे नहीं रहे — 537. मुझको कोई बतलाए तो — 548. छोड़ गए यूँ हमें अकेले — 559. बाबूजी अब करो न देर — 5710. बाबूजी मेरे आएँगे — 5911. बाबू तेरे ही गम में — 6112. अपने प्यारे बाबूजी — 6213. बाबूजी मेरे रुके नहीं — 6314. बाबू मेरे कहते रहे — 6415. आशीष-स्नेह से आँचल मेरा भरा हुआ — 6516. या भूल गए? जो याद करें — 6617. बाबूजी चलते चले गए — 6718. कवलित काल नहीं कर सकता — 6819. सबसे न्यारे बाबूजी — 7020. बस तेरे खो जाने से — 7221. रोम-रोम में कण-कण में — 7422. बाँध प्रीति के धागे सबसे — 7623. बाबूजी को याद करें — 7824. आखिर कैसा यह नव प्रभात — 8025. कहाँ नहीं तुम बाबूजी — 8226. साथ भला यूँ छोड़ गए — 8427. आखिर ऐसा वादा यूँ — 8628. बाबूजी अब आते होंगे... 88बेला-स्मृति29. माँ तो केवल माँ होती है — 9730. सबसे न्यारी माई है — 10031. मेरी माँ — 10132. ममता की मूरत मेरी माँ — 10233. माँ है तेरे रूप अनेक — 10434. जननी जबसे तुमसे बिछुड़े — 10635. माँ — 10736. गाँव गया था माँ के पास — 10937. आखिर माँ यूँ सब सहती है — 11138. माँ ही है अनमोल रतन — 11439. माँ से प्यारा कौन जगत् में — 11540. माँ बहुत पुराना नाता है — 116विविधा41. यादें... 121

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