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उर्दू में दुनिया की अहम तरीन शायरी मौजूद है, मैंने बहुत सारी ज़बानों की शायरी पढ़ी है लेकिन उर्दू शायरी की ख़ूबसूरती और दिलकशी सबसे अलग है। नई उर्दू शायरी की मोतबर और तवाना आवाज़ों में अज़ीज़ नबील का नाम बहुत अहम है। उनकी शायरी में नाज़ुक ख्‍़यालात की ख़ुशबू, नए एहसासात की रोशनी और ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ इन्किशाफ़ात के रंग बख़ूबी देखे और महसूस किए जा सकते हैं। अज़ीज़ नबील की शायरी में जो बात सबसे ज़्यादा अपील करती है, वो ये है कि वह अपनी बातें सीधे-सीधे ना करते हुए अलामतों और तशबीहात के बहुत ख़ूबसूरत इस्तिमाल से करते हैं, जिसकी वजह से उनके एक शे’र से ब-यक-वक़्त कई-कई मतलब निकाले जा सकते हैं। एक और ख़ास बात ये है कि अज़ीज़ नबील की शायरी का डिक्शन और उस्लूब उनका अपना है। उन्होंने इस्तिमाल-शुदा रास्तों से बचते हुए अपने लिए कुछ इस तरह एक अलग राह निकाली है कि ज़िन्दगी को शायरी और शायरी को ज़िन्दगी में शामिल करके पेश कर दिया है।
—जस्टिस मार्कंडेय काटजू
इक्कीसवीं सदी तेज़ी से बदलते हुए अक़दार की सदी है, इस सदी में उर्दू शायरी की जो आवाज़ें बुलन्द हुई हैं, उनमें अज़ीज़ नबील का नाम तवज्जो का हामिल है। क्लासिकी अदब से वाबस्तगी और इस अहद की हिस्सियत की आमेज़िश ने उनकी शायरी को पुरकशिश बना दिया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सादा ज़बान और ख़ूबसूरत अलामतों के फ़नकाराना इस्तिमाल से पुर इस शायरी को क़ारईन पसन्द फ़रमाएँगे।
—जावेद अख़्तर Urdu mein duniya ki aham tarin shayri maujud hai, mainne bahut sari zabanon ki shayri padhi hai lekin urdu shayri ki khubsurti aur dilakshi sabse alag hai. Nai urdu shayri ki motbar aur tavana aavazon mein aziz nabil ka naam bahut aham hai. Unki shayri mein nazuk ‍yalat ki khushbu, ne ehsasat ki roshni aur zindagi ke mukhtlif inkishafat ke rang bakhubi dekhe aur mahsus kiye ja sakte hain. Aziz nabil ki shayri mein jo baat sabse zyada apil karti hai, vo ye hai ki vah apni baten sidhe-sidhe na karte hue alamton aur tashbihat ke bahut khubsurat istimal se karte hain, jiski vajah se unke ek she’ra se ba-yak-vakt kai-kai matlab nikale ja sakte hain. Ek aur khas baat ye hai ki aziz nabil ki shayri ka dikshan aur uslub unka apna hai. Unhonne istimal-shuda raston se bachte hue apne liye kuchh is tarah ek alag raah nikali hai ki zindagi ko shayri aur shayri ko zindagi mein shamil karke pesh kar diya hai. —jastis markandey katju
Ikkisvin sadi tezi se badalte hue aqdar ki sadi hai, is sadi mein urdu shayri ki jo aavazen buland hui hain, unmen aziz nabil ka naam tavajjo ka hamil hai. Klasiki adab se vabastgi aur is ahad ki hissiyat ki aamezish ne unki shayri ko purakshish bana diya hai. Mujhe puri ummid hai ki sada zaban aur khubsurat alamton ke fankarana istimal se pur is shayri ko qariin pasand farmayenge.
—javed akhtar

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क्रम

1. बे-सबब ही कभी, आवाज़ लगाओ तो सही - 13

2. मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ - 14

3. ख़ामुशी टूटेगी, आवाज़ का पत्थर भी तो हो - 15

4. ये किस मुक़ाम पे लाया गया ख़ुदाया मुझे - 16

5. जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी - 17

6. रात का तारीक जंगल और ये आवारगी - 18

7. राब्ते तोड़ कर जाने वाला गया, हमने रोका नहीं - 19

8. आसेब सा जैसे मिरे आसाब से निकला - 20

9. वही जो रिश्ता है कश्ती का सतह--आब के साथ - 21

10. हयातो- कायनात पर किताब लिख रहे थे हम - 22

11. सुबह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी - 23

12. सभी रिश्तों के दरवाज़े मुक़फ़्फ़ल हो रहे हैं - 24

13. ख़ाक चेहरे पे मल रहा हूँ मैं - 25

14. कोई फ़र्याद मुझे तोड़ के सन्न से निकली - 26

15. ये किस वहशत -ज़दा लम्हे में दाख़िल हो गए हैं - 27

16. बहता हूँ मैं दरिया की रवानी से कहीं दूर - 28

17. कुछ देर तो दुनिया मिरे पहलू में खड़ी थी - 29

18. बातों में बहुत गहराई है, लहज़े में बड़ी सच्चाई है - 30

19. सुबह और शाम के सब रंग हटाए हुए हैं - 31

20. जाने किस लम्स की तासीर से पत्थर हुआ मैं - 32

21. तिलिस्म--ख़्वाब में बे-ख़्वाब आईना है कोई - 33

22. सियाह शब के असर से निकल रहे हो क्या - 34

23. आईने की सिलवटों से फिर उभर आया हूँ मैं - 35

24. नए जहानों के ख़ाब आँखों में पल रहे हैं - 36

25. सर--सहरा--जाँ हम चाक-दामानी भी करते हैं - 37

26. सुनो मुसाफ़िर! सराय--जाँ को तुम्हारी यादें जला चुकी हैं - 38

27. ज़िंदगी ये क्या हुआ तू ही बता थोड़ा-बहुत - 39

28. बिखेरता है क़यास मुझको - 40

29. तुम नूर की वादी थे मैं नज्द का सहरा था - 41

30. लहज़े में रौशनी का समंदर लिए हुए - 42

31. उस की सोचें और उस की गुफ़्तगू मेरी तरह - 43

32. वो आसमान हो गया लग्ज़िश के - 44

33. मुसलसल तिश्नगी का सिलसिला है - 45

34. बावज़ूद - 46

35. आसमां तक मसअले फैले मिले - 47

36. तुम्हें अब चाँद कहना छोड़ दूँ क्या - 48

37. परिंदे झील पर इक रब्त--रूहानी में आए हैं - 49

38. मेरी बेसम्ती थी, मैं था, क़ाफ़िला कोई ना था - 50

39. हर इक लम्हा सँभलना पड़ रहा है - 51

40. मिरे अशआर में शामिल तिरी ख़ुशबू हो जाए - 52

41. बिखर रहा है मिरा अंग-अंग आलीजाह - 53

42. इक दिया दिल की हवेली में जला है शायद - 54

43. हमारे शेरों में ऐसा कमाल होता है - 55

44. लोग पत्थर के, शहर आतिश का - 56

45. तू कभी पूछ, तो फिर हाल बताऊँ तुझको - 57

46. आँखों के ग़म-कदों में उजाले हुए तो हैं - 58

47. क्या ख़बर कब गिर पड़े ये आसमां गर्दिश में है - 59

48. अगरचे ख़ुश हूँ मैं सबकी ख़ुशी में - 60

49. हम तिरे ज़िक्र की मेहराब में खो जाते हैं - 61

50. जुस्तजू हैरान बाज़ारों के बीच - 62

51. क्या जाने कौन ले गया बादल समेट कर - 63

52. वो हर्फ़ हूँ लबों पे जो उतरा नहीं कभी - 64

53. अब के बारिश ने किए रूह के शीशे ज़ख़्मी - 65

54. दुश्मन से सौदा कर लिया क्या? - 66

55. मिरे - 67

56. कैसे अजीब लोग हैं ग़मनाक भी नहीं - 68

57. वर्ना क्या है जो दस्तरस में नहीं - 69

58. आरज़ुओं के पर जलाएँ क्या - 70

 

1
बे- सबब ही कभी, आवाज़ लगाओ तो सही 
अपने होने का कुछ एहसास दिलाओ तो सही
साँस लेता हुआ हर रंग नज़र आएगा,
तुम किसी रोज़ मिरे रंग में आओ तो सही
ताकि फिर रात की तस्वीर उतारी जाए,
इन चराग़ों को ज़रा देर बुझाओ तो सही
जिंदगी जिस्म से बाहर भी नज़र आए कभी,
कोई हंगामा सर--राह उठाओ तो सही
हौसला है तो जज़ीरा भी तुम्हारा होगा,
ख़ौफ़' की कश्तियाँ साहिल पे जलाओ तो सही
मेरी मिट्टी में मुहब्बत ही मुहब्बत है 'नबील',
छू के देखो तो सही, हाथ लगाओ तो सही।

51
क्या जाने, कौन ले गया बादल समेट कर 
प्यासी ज़मीन सो गई आँचल समेट कर
फिर एक रोज़ मैंने हवा में उड़ा दिया,
वो याद जिसको रक्खा था पल-पल समेट कर
ले जाएगी ये उम्र--रवाँ' ख़ामुशी के साथ,
तेरे बदन के बाग़ से संदल समेट कर
ज़ालिम हमें ना छेड़ कि हम फ़र्त--जोश' में,
रख लेंगे अपनी ज़ेब में मक़तल समेट कर
आओ सफ़र की फिर से करें इब्तदा' 'नबील',
बैठे हैं कब से राह की दलदल समेट कर

 


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