PAGDANDIYON KA RISHTA (LALIT NIBANDH)
ISBN | NA |
Language | Hindi |
Publisher | Bodhi Prakashan |
Pages | - |
Dimensions | NA |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

PAGDANDIYON KA RISHTA (LALIT NIBANDH)
हिन्दी निबंध की वैचारिक पृष्ठभूमि अत्यंत समृद्ध है। विचार उसके चिन्तन के केन्द्र में रहता है। हर युग में ललित निबंध लेखक कम ही हुए हैं। यह विधा साधना चाहती है। विजय कुमार दुबे का ललित निबंधकार पगडण्डियोंं पर चलता हुआ, राजपथ को दृष्टिगत करता हुआ, विश्व-पथ की $खबर रखता है। लगता है कि ललित निबंधकार नितांत अपनी बात कह रहा है; पर ऐसा है नहीं। उसके अपने घर, गाँव, आम, जामुन, वट, पीपल, नीम, महुआ, सर, सरिता, सरोवर, पोखर, कुएँ, बावड़ी, खेत-खलिहान, धान, मक्का, गाय, कोयल, पपीहा, टीआपाखी, मैना, मोर, हिरन, धरती, आकाश, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र सब है; परंतु यह सब निबंधकार के निजी संसार के होते हुए भी विश्व सदस्य हैं। विश्व सदस्य होने के नाते यह सब विजय कुमार दुबे के ललित निबंधों में जीवित सदस्यों और चेतन सत्ता के रूप में आये हैं। स्थानिकता की महत्ता का प्रतिपादन अपनी भूमि के प्रति लेखक का राग भाव और कृतज्ञता-भाव और सतर्कता-भाव स्पष्ट प्रकट करता है। बात साधारण से असाधारण चिन्तन के सोपान चढ़ती चली जाती है। धीरे-धीरे इतना विस्तार पा जाती है, जिसमें वेद, पुराण, इतिहास, उपनिषद्, पुरातत्व, लोक साहित्य, लोक संस्कृति, कला और अपने समकाल के अनेक संदर्भ झाँकने लगते हैं। नदियों, वनों, सरोवरों के निर्मल जल को प्रदूषित करना काला धुआँ विकास नहीं विनाश का बुलडोजर चला रहा है, इस बात की यह ललित निबंध गुहार लगा रहे हैं। इनकी पुकार को सुनना ही होगा। - डॉ. श्रीराम परिहार
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