Nirala Navmulyankan
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Item Weight | 0.26 |
ISBN | 978-9389742947 |
Author | Ed. Trivenidutt Shukla |
Language | Hindi |
Publisher | Lokbharti Prakashan, Sahitya Bhawan |
Pages | 172 |
Dimensions | 22*14*1 |
Edition | 1st |

Nirala Navmulyankan
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निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे केवल कवि ही नहीं, उच्चकोटि के गद्य-लेखक भी थे। उनके उपन्यास आधुनिक युग के उपन्यासों में अपना अलग महत्त्व रखते हैं। उनकी कहानियों में सत्य के साथ-साथ जीवन का सूक्ष्म निरीक्षण भी है। उनकी समालोचनाओं में पांडित्य और तर्क का चित्ताकर्षक सम्मिश्रण है। ‘प्रबन्ध प्रतिमा’ नामक उनका निबन्ध-संग्रह हिन्दी का एक अनूठा ग्रन्थ-रत्न है।निराला हिन्दी गद्य में एक नए यथार्थवाद के प्रवर्तक के रूप में दृष्टिगत होते हैं जिस प्रकार निराला की कविता भंगिमा, शिल्प और भाषा के स्तर पर नित्य नूतन प्रयोगधर्मी है; उसी प्रकार उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में भी नई यथार्थवादी गद्य का प्रयोग किया है। भाषा और शैली में आदि से अन्त तक एक उदात्त गरिमा अनुस्यूत है। डॉ. विजयेन्द्र स्नातक ने कहा है—“भाषा को सँवारने और प्रसंगानुकूल ढालने की कला तो निराला को बांग्ला और संस्कृत ज्ञान के कारण सिद्ध हो गई थी। जटिल, दुर्बोध, दुरूह, क्लिष्ट, सब प्रकार के शब्दों से अनमिल वाक्यावली बनाने की त्रुटि होने पर भी निराला की शक्तिमत्ता इसमें है कि वे भाव की जटिलता को तथा वर्णन की संश्लिष्टता को शब्दों के चयन से पूरा कर देते हैं।”निराला भारतीय समाज की उन्नति का मार्ग सांस्कृतिक एकता और अखंडता में देखते हैं। क्रान्ति और विप्लव की उनकी कल्पना अप्रत्याशित नहीं है। निराला अनुभव करते हैं कि अंग्रेज़ों का हमला मुख्यतः भारतीय इतिहास और संस्कृति की अस्मिता पर हुआ है। निराला इस समस्या का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं—वर्तमान समाज का जो रूप है, इसके भीतर इस नवीन रूप के निकाले बिना, उस समस्या की उलझन भी नहीं मिट सकती। दलितों का शोषण और उत्पीड़न निराला को दुखी करता है। रूढ़िवादी द्विज-समाज को बार-बार ललकारते हुए वे कहते हैं—“तुमसे कुछ न होगा, भारत का उद्धार शूद्र जातियाँ ही करेंगी।” इसी प्रकार एक स्थान पर वे लिखते हैं—“शूद्र शक्तियों से यथार्थ भारतीयता की किरणें फूटेंगी। निराला एक भविष्यद्रष्टा ऋषि की भाँति दलितों को भविष्य के ब्राह्मण, क्षत्रियों के रूप में देख रहे हैं।डॉ. रामविलास शर्मा ने ठीक ही कहा है—“जितने बड़े वह साहित्यकार थे, उससे भी बड़े वह मनुष्य थे।” वस्तुत: निराला की संस्कृति-चिन्ता भारतीय जाति के मुक्त प्रयासों से अनिवार्यतः जुड़ी हुई है। इसी संस्कृति-चिन्ता से निराला वृहत्तर सामाजिक और सांस्कृतिक यथार्थ से बार-बार टकराकर अपनी रचनात्मक प्रतिभा को विस्तारित करते हुए उसे समृद्ध करते हैं।प्रस्तुत पुस्तक ‘निराला : नवमूल्यांकन’ लेखों का संकलित रूप है। इस पुस्तक के सभी लेखक हिन्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान् और आचार्य हैं। इनकी रचनाओं से कृति की गरिमा में अभिवृद्धि हुई है। यह कृति निराला-साहित्य के मनन-परिशीलन का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम होगी। इसके अध्ययन-मनन से जिज्ञासु अनुसन्धित्सु एवं निराला साहित्य के अध्येता छात्र-छात्राएँ भी लाभान्वित होंगे, इसमें किंचित् सन्देह नहीं।
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